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________________ 1 गीता दर्शन भाग-3 वह आदमी पूछता, मैं बुरा कर्म नहीं करूंगा। लेकिन ये दूसरी | | पूरा कर देना। संन्यास को भीतर साधते चले जाना, संसार को बाहर बातें क्या हैं, कि मैं प्रोत्साहन भी न दूंगा! कि मैं प्रशंसा से देखूगा | पूरा कर देना। भी नहीं! लेकिन पत्नी कहती है, और कुछ भी कर लो, चलेगा। यह नहीं एक आदमी रास्ते पर किसी को पीट रहा है। आप नहीं पीट रहे; चल सकता। क्या, मामला क्या है? हमें पता ही नहीं कि वह आपका कोई संबंध नहीं। आप सिर्फ रास्ते से गुजरते हैं। लेकिन व्यक्ति तो रातभर रोकर उतना फायदा ले लिया, जितना कि आपकी आंख की एक झलक उस पीटने वाले को कह जाती है कि संन्यासी को मिलना चाहिए। लेकिन इस पत्नी ने क्या किया? मेरी पीठ थपथपाई गई। बस, पाप हो गया, बीज बो दिया गया। इसका तो कुछ लेना-देना न था! इसने करीब-करीब एक संन्यासी ठीक महावीर ऐसे ही कहते थे, अच्छा कर्म करना। कोई अच्छा की हत्या से जो भी पुण्य मिल सकता है-पुण्य कह रहा हूं, ताकि कर्म करता हो, तो प्रोत्साहन देना। कोई अच्छा कर्म करता हो, कुछ पत्नी नाराज न हो जाए। यहीं कहीं मौजूद होगी! उसने नाहक पुण्य न बन सके, तो अपनी आंख से, अपने इशारे से सहारा देना। बटोर लिया। जमाने बदले। वक्त बहुत अदभुत थे कभी। महावीर लेकिन एक आदमी को संन्यास लेना हो, तो आप सब मिलकर | का एक संस्मरण आपसे कहूं। क्या करेंगे? आप कहेंगे, क्या कर रहे हो! पागल हो गए हो? बुद्धि एक युवक बैठा है स्नानगृह में। उसकी पत्नी उबटन लगाती है। ठिकाने है? आपको पता नहीं कि वह आदमी तो संन्यास की भावना उबटन लगाते वक्त, स्नान करवाते वक्त, अपने पति को वह कहती करके भी न भी ले पाए. तो भी सदगति की व्यवस्था कर रहा है। है कि मेरे भाई ने संन्यास लेने का विचार किया है। वह पति पछता और आप अकारण, आप कोई न थे बीच में, आप कह रहे हैं, है, कब लेगा तुम्हारा भाई संन्यास? उसकी पत्नी कहती है, एक पागल हो गए हो? दिमाग खराब हो गया? बुद्धि खो दी? आपको | महीने बाद का तय किया है। वह पति ऐसे ही मजाक में पूछता है पता भी नहीं है कि आप व्यर्थ ही बीज बो रहे हो, जो आपको | कि एक महीना जीएगा, पक्का है? पत्नी कहती है, किस तरह की भटकाने का कारण हो जाएंगे। अपशकुन की बातें बोलते हो अपने मुंह से! यह शोभा नहीं देता। लेकिन हमें खयाल ही नहीं होता कि हम क्या कर रहे हैं! हमें ऐसा सोचते ही क्यों हो? उसने कहा, सोचता नहीं हूं, लेकिन एक खयाल ही नहीं होता। महीना जीएगा, यह पक्का है? ये ढंग संन्यास लेने के नहीं हैं। संन्यास लेना चाहते हैं। रातभर रोते रहे हैं कल पत्नी क्योंकि जो आदमी स्थगित करता है, उसके भीतर वह जो के चरणों में बैठकर। लेकिन पत्नी सख्त है। वह कहती है कि मर | संन्यास-विरोधी कर्मों का भार है, भारी है। जाओ, वह बेहतर। सास कहती है, मर जाओ, वह बेहतर। शराब | वह युवक ऐसे ही कह रहा है। तो उसकी पत्नी ने सिर्फ मजाक पीने लगो. जआ खेलो. कछ भी करो-चलेगा: संन्यास का नाम में और व्यंग्य में कहा कि अगर तुमको संन्यास लेना हो, तो क्या मत लेना। और इस संन्यास में न वे घर छोड़कर जा रहे हैं, न वे करोगे? आधी उबटन लगी थी शरीर पर, आधी धुल गई थी। वह पत्नी को छोड़कर जा रहे हैं, न वे बच्चों को छोड़कर जा रहे हैं।। युवक नग्न था, खड़ा हो गया। पत्नी ने कहा, कहां जाते हो? उसने सिर्फ संन्यास के भाव को ही तो ले रहे हैं, और क्या कर रहे हैं? दरवाजा खोला। पत्नी ने कहा, कहां निकलते हो? लोग क्या कोई जंगल नहीं जा रहे हैं, कोई पहाड़ नहीं जा रहे हैं। किसी को | कहेंगे? नग्न हो तुम! वह दरवाजे के बाहर हो गया। पत्नी ने कहा, छोड़ नहीं रहे, किसी को नंगा नहीं छोड़ रहे, भूखा नहीं छोड़ रहे; तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न! पर उसने कहा, मैंने संन्यास ले काम-धंधा करेंगे। लिया। बात खतम हो गई। पुराने संन्यास से नया संन्यास कठिन है। क्योंकि संन्यासी भी महावीर उसकी कथा जगह-जगह कहते थे। हो जाएंगे; पति भी होंगे, पिता भी होंगे, सारी जिम्मेवारी होगी, उसने कहा कि संन्यास भी कहीं पोस्टपोन किया जाता है! कल सारा दायित्व होगा। कोई दायित्व तोड़ना नहीं है। क्योंकि मैं मानता | लेंगे? अगर जो आदमी मौत को पोस्टपोन कर सकता हो, उसको हूं, वह भी हिंसा है। क्योंकि मैं मानता हूं, किसी को बीच में संन्यास पोस्टपोन करने का हक है; बाकी किसी को हक नहीं है। छोड़कर जाना, वह भी दुख देना है। उतना भी क्यों देना? उसको | कृष्ण कहते हैं, सदभाव भी! करने की कामना भी! खेल समझकर पूरा कर देना कि ठीक है। उसको नाटक समझकर अभी बंबई में एक वृद्ध महिला को संन्यास लेना था। एक दिन 286
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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