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________________ - यह किनारा छोड़ें उसकी नींद टूट गई। कोई मच्छर काटा, उसकी नींद टूट गई। | आकर संन्यास ले गया! उससे मैंने पूछा कि तूने कब सोचा? उसने रातभर वह परेशान रहा। उसने सोचा कि सुबह मैं इस दीक्षा का कहा. मैंने सोचा नहीं। मेरे सास और ससर बात करते हैं तीन दिन त्याग करूं। यह कोई अपने काम की बात नहीं। से कि संन्यास लेना है। आपसे मिल भी गए हैं। सोच-विचार सुबह वह बुद्ध के पास जाकर, हाथ जोड़कर खड़ा हुआ। बुद्ध चलता है। मैं उनकी सुन-सुनकर, न मालूम क्या हुआ मुझे कि मैं ने कहा, मालूम है मुझे कि तुम किसलिए आए हो। उसने कहा कि चलकर ले लं। वह आकर संन्यास ले भी गया। अभी सास-ससर आपको नहीं मालूम होगा कि मैं किसलिए आया हूं। मैं कोई | सोचते ही हैं! साधना की पद्धति पूछने नहीं आया। क्योंकि कल मैंने दीक्षा ली, | ___ क्या हुआ? और फिर इस व्यक्ति का मुझसे कोई ज्यादा संबंध आज मुझे साधना की पद्धति पूछनी थी; उसके लिए मैं नहीं | | नहीं। फिर इस व्यक्ति की मेरे विचारों से ज्यादा पहचान नहीं। इसके आया। बुद्ध ने कहा, वह मैं तुझसे कुछ नहीं पूछता। मुझे मालूम | | सास-ससुर ही मुझसे ज्यादा परिचित और मेरे विचारों के ज्यादा है, तू किसलिए आया। सिर्फ मैं तुझे इतनी याद दिलाना चाहता हूं | | निकट हैं। इसको क्या हुआ? यह संन्यास का फूल इसकी जिंदगी कि हाथी होकर भी तूने जितना धैर्य दिखाया, क्या आदमी होकर में अचानक कैसे खिल गया? उतना धैर्य न दिखा सकेगा? ___ यह बीज पिछले जन्मों का है। यह कहीं पड़ा रहता है, चुपचाप उस आदमी की आंखें बंद हो गईं। उसको कुछ समझ में न आया प्रतीक्षा करता है। जैसे बीज गिर जाता है, फिर वर्षा की प्रतीक्षा कि हाथी होकर इतना धैर्य दिखाया! यह बुद्ध क्या कहते हैं, पागल करता है। महीनों बीत जाते हैं धूल में, धंवास में उड़ते, हवाओं की जैसी बात! उसकी आंख बंद हो गई। ठोकरें खाते, फिर वर्षा की प्रतीक्षा चलती है। फिर कभी वर्षा आती लेकिन बुद्ध का यह कहना, जैसे उसके भीतर स्मृति का एक द्वार | | है। शायद इन आठ महीनों में बीज भी भूल गया होगा कि मैं कौन खुल गया। आंख उसकी बंद हो गई। उसने देखा कि वह एक हाथी | हूं। बीज को पता भी कैसे होगा कि मेरे भीतर क्या पैदा हो सकता है। एक घने जंगल में आग लगी है। एक वृक्ष के नीचे वह खड़ा | है। फिर वर्षा आती है, बीज जमीन में दब जाता है और टूटकर है। एक खरगोश उसके पैर के नीचे आकर बैठ गया। इस डर से अंकुर हो जाता है, तभी बीज को पता चलता है। बीज भी चौंकता वह भागा नहीं कि मेरा पैर नीचे पड़े, तो खरगोश मर जाए। और होगा; चौंककर कहता होगा कि मैं सूखा-साखा सा, मुझमें इतनी जब मैं भागकर बचना चाहता हूं, तो जैसा मैं बचना चाहता हूं, वैसा | | हरियाली छिपी थी! मैं सूखा-साखा सा, कंकड़-पत्थर मालूम ही खरगोश भी बचना चाहता है। और खरगोश यह सोचकर मेरे | पड़ता था देखने पर, मुझमें ऐसे-ऐसे फूल छिपे थे! बीज को भी पैर के नीचे बैठा है कि शरण मिल गई। तो इस भोले से खरगोश | भरोसा न आता होगा। को धोखा देकर भागना उचित नहीं। तो मैं जल गया। हम भी सब बीज हैं और लंबी यात्राओं के बीज हैं। उसने आंख खोली, उसने कहा कि माफ कर देना, भूल हो गई। तो कृष्ण कहते हैं, शुभ का इरादा भी, शुभ कर्म की श्रद्धा भी, रात और भी कोई कठिन जगह हो सोने की, तो मुझे दे देना। अब | | दुर्गति में नहीं ले जाती है, कभी नहीं ले जाती है। सिर्फ श्रद्धा भी! मैं याद रख सकूँगा। उतना छोटा-सा, उतना छोटा-सा काम, क्या जरूरी नहीं कि एक आदमी ने अच्छा काम किया हो; इतना भी मेरे जीवन में इतनी बड़ी घटना बन सकता है? काफी है कि सोचा हो; इतना भी काफी है कि कोई सोचता हो, तो सब छोटे बीज बड़े वृक्ष हो जाते हैं। चाहे वे बुरे बीज हों, चाहे वे उसे सहयोग दिया हो। इतना भी काफी है कि कोई कर रहा हो, तो भले बीज हों, सब बड़े वृक्ष हो जाते हैं—सब बड़े वृक्ष हो जाते हैं। प्रशंसा से उसकी तरफ देखा हो, तो भी वह आदमी दुर्गति को प्राप्त हमें चूंकि कोई पता नहीं होता कि जीवन किस प्रक्रिया से चलता | नहीं होता है। है, इसलिए कठिनाई होती है। हमें कोई पता नहीं होता कि किस ___ महावीर जब किसी को दीक्षा देते थे, तो कुछ बातें कहलवाते थे। प्रक्रिया से चलता है। वे कहते थे कि तुम आश्वासन दो कि बुरा कर्म नहीं करोगे। वे कहते अभी यहां एक घटना घटी। एक मित्र और उनकी पत्नी संन्यास | । थे, तुम आश्वासन दो कि कोई बुरा कर्म करता होगा, तो तुम उसे लेना चाहते थे। वे काफी सोच-विचार में पड़े हैं। घर में बातचीत | प्रोत्साहन नहीं दोगे। आश्वासन दो कि कोई बुरा कर्म करता होगा, चलती थी, उनके दामाद ने सुन ली। वे अभी सोच ही रहे हैं, दामाद तो तुम उसकी तरफ प्रशंसा से देखोगे भी नहीं। 285
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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