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गीता दर्शन भाग-3
था। बुद्ध से उसने दीक्षा ली।
आदमी से कोई आशा नहीं करता था। यह हत्या कर सकता है, मान और बुद्ध के समय दीक्षा ने जो शान देखी दुनिया में, वह फिर । सकते हैं। यह डाका डाल सकता है, मान सकते हैं। यह किसी की पृथ्वी पर दुबारा नहीं हो सकी। बुद्ध और महावीर के वक्त बिहार | स्त्री को उठाकर ले जा सकता है, मान सकते हैं। यह संन्यास लेगा, ने जो स्वर्णयुग देखा संन्यास का, वह पृथ्वी पर फिर कभी नहीं | यह कोई सपना नहीं देख सकता था! इसने ऐसा क्यों किया? बुद्ध हुआ। उसके पहले भी कभी नहीं हुआ था।
से लोग पूछने लगे। अदभुत दिन रहे होंगे। बुद्ध चलते थे, तो पचास हजार संन्यासी बुद्ध ने कहा, मैं तुम्हें इसके पुराने जन्म की कथा कहूं। एक बुद्ध के साथ चलते थे। जिस गांव में बुद्ध ठहर जाते थे, उस गांव छोटी-सी घटना ने आज के इसके संन्यास को निर्मित किया की हवाओं का रुख बदल जाता था! पचास हजार संन्यासी जिस | है-छोटी-सी घटना ने। उन्होंने पूछा, कौन-सी है वह कथा? तो गांव में ठहर जाएं, उस गांव में बुरे कर्म होने बंद हो जाते थे, बुद्ध ने कहा...। कठिन हो जाते थे, मुश्किल हो जाते थे। इतने शुभ धारणाओं से और बुद्ध और महावीर ने उस साइंस का विकास किया पृथ्वी भरे हुए लोग!
पर, जिससे लोगों के दूसरे जन्मों में झांका जा सकता है; किताब कथाएं कहती हैं कि बुद्ध जहां से निकल जाएं, वहां चोरियां बंद | की तरह पढ़ा जा सकता है। हो जातीं, वहां हत्याएं कम हो जातीं। आज तो कथा लगती है बात, तो बुद्ध ने कहा कि यह व्यक्ति पिछले जन्म में हाथी था, आदमी लेकिन मैं कहता हूं कि ऐसा हो जाता है। क्योंकि हत्याएं करता कौन | नहीं था। और तब पहली दफा लोगों को खयाल आया कि इसकी है? आदमी करता है। आदमी है क्या सिवाय विचारों के जोड़ के! चाल-ढाल देखकर कई दफा हमें ऐसा लगता था कि जैसे हाथी की
और बुद्ध जैसी कौंध बिजली की पास से गुजर जाए, तो आप वही चाल चलता है। अभी भी, इस जन्म में भी उसकी चाल-ढाल, के वही रह सकते हैं जो थे? आप नहीं रह सकते हैं वही के वही। उसका ढंग एक शानदार हाथी का, मदमस्त हाथी का ढंग था। इतनी बिजली कौंध जाए अंधेरे में, तो फिर आप वही नहीं रह जाते, बुद्ध ने कहा, यह हाथी था पिछले जन्म में। और जिस जंगल में जो आप थे।
| रहता था, हाथियों का राजा था। तो जंगल में आग लगी। गर्मी के थोड़ी भी झलक मिल जाती है रास्ते की, तो आदमी सम्हलकर दिन थे, भयंकर आग लगी आधी रात को। सारे जंगल के चलता है। अंधेरी रात है अमावस की, और बिजली चमक गई एक | पशु-पक्षी भागने लगे, यह भी भागा। यह एक वृक्ष के नीचे विश्राम क्षण को, फिर घुप्प अंधेरा हो गया, तो भी फिर आप उतनी ही करने को एक क्षण को रुका। भागने के लिए एक पैर ऊपर उठाया, भूल-चूक से नहीं चलते, जितना पहले चल रहे थे। अंधेरा फिर तभी एक छोटा-सा खरगोश वृक्ष के पीछे से निकला और इसके उतना ही है, लेकिन एक झलक मिल गई मार्ग की।
पैर के नीचे की जमीन पर आकर बैठ गया। एक ही पैर ऊपर उठा, बुद्ध जैसा आदमी पास से गुजरे, तो बिजली कौंध जाती है। और हाथी ने नीचे देखा, और उसे लगा कि अगर मैं पैर नीचे रखें, तो जिस गांव में पचास हजार भिक्षु और संन्यासी...। महावीर के यह खरगोश मर जाएगा। यह हाथी खड़ा-खड़ा आग में जलकर साथ भी पचास हजार भिक्षु और संन्यासी चलते। और दोनों मर गया। बस, उस जीवन में इसने इतना-सा ही एक महत्वपूर्ण करीब-करीब समसामयिक थे। परा बिहार संन्यास से भर गया। काम किया था. उसका फल आज इसका संन्यास है। उसको नाम ही बिहार इसलिए मिल गया। बिहार का मतलब है, रात वह राजकुमार सोया। जहां पचास हजार भिक्षु सोए हों, वहां भिक्षुओं का विहार-पथ। जहां संन्यासी गुजरते हैं, ऐसी जगह। अड़चन और कठिनाई स्वाभाविक है। फिर वह बहुत पीछे से दीक्षा जहां संन्यासी गुजरते हैं, ऐसे रास्ते। जहां संन्यासी विचरते हैं, ऐसा लिया था, उससे बुजुर्ग संन्यासी थे। जो बहुत बुजुर्ग थे, वे भवन स्थान। इसलिए तो उसका नाम बिहार हो गया।
के भीतर सोए। जो और कम बुजुर्ग थे, वे भवन के बाहर सोए। जो बुद्ध एक गांव में ठहरे हैं। उस गांव के सम्राट के बेटे ने आकर | और कम बुजुर्ग थे, वे रास्ते पर सोए। जो और कम बुजुर्ग थे, वे दीक्षा ली। उस सम्राट के लड़के से कभी किसी ने न सोचा था कि और मैदान में सोए। उसको तो बिलकुल आखिर में, जो गली वह दीक्षा लेगा। लंपट था, निरा लंपट था। बुद्ध के भिक्षु भी चकित राजपथ से जोड़ती थी बुद्ध के विहार तक, उसमें सोने को मिला। हुए। बुद्ध के भिक्षुओं ने कहा, इस निरा लंपट ने दीक्षा ले ली? इस रात भर! कोई भिक्षु गुजरा, उसकी नींद टूट गई। कोई कुत्ता भौंका,
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