________________
<< यह किनारा छोड़ें >
हो जाएगा।
| बिजली नहीं बुझती। बिजली तो ऊर्जा है। ऊर्जा नष्ट नहीं होती। कृष्ण कहते हैं, चेतना का कोई विनाश नहीं है, इसलिए तू निर्भय भीतर ऊर्जा है जीवन की, चेतना की। शरीर तक आने के रास्ते हो। पापी चेतना का भी कोई विनाश नहीं है, इसलिए पुण्यात्मा हैं। मन उसका रास्ता है, जिससे शरीर तक आती है। जब सिर पर चेतना के विनाश का तो कोई सवाल नहीं है। चेतना का ही विनाश कोई डंडा मारता है, तो आपका मन बुझ जाता है; बीच का सेतु टूट नहीं है।
जाता है: खबर आनी बंद हो जाती है। भीतर आप उतने ही चेतन __ अर्जुन ने पूछा है, कहीं ऐसा तो न होगा कि हवाओं के झोंके में होते हैं, जितने थे; और शरीर उतना ही अचेतन होता है, जितना जैसे कोई छोटी-सी बदली बिखर जाए और खो जाए अनंत सदा था। सिर्फ आत्मा से जो चेतना शरीर में प्रतिबिंबित होती थी, आकाश में, कहीं ऐसा तो न होगा कि इस कूल से छूटूं और वह वह प्रतिबिंबित नहीं होती है। किनारा न मिले, और मैं एक बदली की तरह बिखरकर खो जाऊं! | चेतना के बुझने का, नष्ट होने का कोई सवाल नहीं है। पापी की
तो कृष्ण कह रहे हैं, इस भांति होना असंभव है, क्योंकि चेतना चेतना का भी सवाल नहीं है। पापी भी कितना ही पाप करे और अविनश्वर है, तत्व है, वह नष्ट नहीं होती। तो पापी की चेतना भी | कितना ही बुरा कर्म करे और कितना ही संसार को पकड़े रहे, कुछ नष्ट नहीं होती। नष्ट होने का उपाय नहीं है। विनाश की कोई भी करे, चेतना नहीं मिटेगी। हां, चेतना विकृत, दुखद, संतापों से संभावना नहीं है। तो पहली बात तो वे यह कहते हैं कि चेतना ही | | घिर जाएगी; नर्कों में जीएगी; पीड़ा में, कष्ट में, गहन से गहन नष्ट नहीं होती, न इस लोक में, न परलोक में, कहीं भी। चेतना का | संताप में गिरती चली जाएगी–नष्ट नहीं होगी। नष्ट होने का कोई कोई विनाश नहीं है।
| उपाय नहीं है। ठीक ऐसे ही, जैसे आप एक रेत के टुकड़े को नष्ट लेकिन हमें शक पैदा होगा। हम एक आदमी को एनेस्थेसिया नहीं कर सकते। कोई उपाय नहीं है। का इंजेक्शन दे देते हैं, वह बेहोश हो जाता है। एक आदमी के सिर वैज्ञानिक कितना काम कर पा रहे हैं! एटामिक एनर्जी खोज ली पर चोट लग जाती है, वह बेहोश होकर गिर जाता है। लोग कहते है, चांद पर पहुंच सकते हैं, पांच मील गहरे प्रशांत महासागर में हैं, उसकी चेतना चली गई। चेतना नहीं जाती। लोग कहते हैं, डुबकी ले सकते हैं, सब कर सकते हैं, लेकिन एक रेत का अचेतन हो गया। अचेतन भी कोई नहीं होता है। जब बेहोश होता छोटा-सा कण नहीं बना सकते। नहीं बना सकते, इसलिए नहीं कि है कोई, तब फिर, न तो आत्मा बेहोश होती है और न शरीर बेहोश वैज्ञानिक कमजोर हैं। नहीं बना सकते हैं इसलिए कि पदार्थ न तो होता है। क्योंकि शरीर तो बेहोश हो नहीं सकता, उसके पास कोई निर्माण होता है, न विनष्ट होता है। वैज्ञानिक किसी दिन मनुष्य की होश नहीं है। आत्मा बेहोश नहीं हो सकती, क्योंकि वह पूर्ण होश | आत्मा भी नहीं बना सकेंगे। यद्यपि इस तरफ काफी काम चलता है। फिर होता क्या है? जब एक आदमी के सिर पर चोट लगती है | है। और रोज खबरें आती हैं कि कुछ और खोज लिया गया, जिससे . और वह बेहोश पड़ जाता है, तब होता क्या है ? तब फिर वही बीच संभावना बनती है कि इस सदी के पूरे होते-होते आदमी की आत्मा का संबंध शिथिल होता है। शरीर तक आत्मा से जो चेतना आती को वैज्ञानिक पैदा कर लेगा। थी, उसका प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है।
अभी जो आदमी का जेनेटिक, जो उसका प्रजनन का मूल कोष्ठ समझ लें कि मैंने बटन दबा दी है और बिजली का बल्ब बुझ है, उसको भी तोड़ लिया गया। जैसे अणु तोड़ लिया गया और गया। तो क्या आप कहेंगे, बिजली बझ गई? इतना ही कहिए कि परमाण की शक्ति उपलब्ध हई. वैसे ही अब मनष्य के जीवकोष्ठ बिजली के बल्ब तक वह जो बिजली की धारा आती थी, अब नहीं को भी तोड़ लिया गया है, और उस जीवकोष्ठ का भी मूल आती है। बिजली नहीं बुझ गई, बल्ब बुझ गया। बटन फिर आप | रासायनिक रहस्य समझ में आ गया है। और अब इस बात की पूरी आन कर देते हैं, बल्ब फिर जल उठता है। अगर बिजली बुझ गई| संभावना है कि हम आज नहीं कल प्रयोगशाला में मनुष्य के शरीर होती, तो फिर बल्ब नहीं जल सकता था। और अगर आपका मेन को जन्म दे सकेंगे। स्विच भी बस्ती का आफ हो गया हो, तब भी बल्ब ही बुझते हैं, अभी एक वैज्ञानिक पत्रिका में, जो मनुष्य के जीवन के संबंध में बिजली नहीं बुझती। और अगर आपका पूरा का पूरा बिजलीघर भी ही समस्त शोध छापती है, एक बहुत बड़ा कार्टून छापा है। वह ठप्प होकर बंद हो गया हो, तब भी बिजलीघर ही बंद होता है, कार्टून मुझे बहुत प्रीतिकर लगा। इस सदी के पूरे होने के समय
281