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________________ गीता दर्शन भाग-31 का कार्टून है। दो हजारवां वर्ष आ गया है। एक लड़का एक जिन्हें आत्मा का कोई पता नहीं है, ऐसे बहुत-से आत्मवादी हैं। प्रयोगशाला के पास से गुजर रहा है, उस प्रयोगशाला के पास से, सच तो यह है कि आत्मवादियों में बहुत-से ऐसे हैं, जिन्हें आत्मा जिसके टेस्ट-टयूब में वह पैदा हुआ था। टेस्ट-ट्यूब प्रयोगशाला का कोई पता नहीं। वे ऐसी बातें सुनकर बड़े बेचैन हो जाते हैं। के दरवाजे से दिखाई पड़ रही है। वह लड़का रास्ते से कहता है, उनका एक ही उत्तर होता कि यह कभी हो नहीं सकता। मैं उनसे डैडी! नमस्कार! मैं स्कूल जा रहा हूं। | कहता हूं, वे समझ लें, यह होगा। और आपके कहने से कि यह दो हजारवें वर्ष में इस बात की करीब-करीब संभावना है- | कभी हो नहीं सकता, सिर्फ इतना ही पता चलता है कि आपको कुछ शायद दस साल और पहले यह घटित हो जाएगा कि हम बच्चे पता नहीं है। यह होगा। पर बड़ी घबड़ाहट होती है कि अगर यह के शरीर को प्रयोगशाला की परखनली में पैदा कर लेंगे। तब जो | हो जाएगा, तो फिर आत्मा का क्या हुआ? साधारण बुद्धि के आत्मवादी हैं, बड़ी मुश्किल में अभी पड़ गए __ मैं आपसे कहता हूं, इससे आत्मा पर कोई आंच नहीं आती है। हैं वे मुश्किल में बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। अगर किसी दिन | इससे सिर्फ इतना ही सिद्ध होता है कि मां-बाप के शरीर जो काम प्रयोगशाला में आदमी का शरीर पैदा हो गया, तो फिर आत्मा का करते थे गर्भ में शरीर के निर्माण करने का, वह वैज्ञानिक क्या होगा? और अगर वह आदमी हमारे ही जैसा आदमी हआ, | प्रयोगशाला में वैज्ञानिक कर देंगे। आत्मा जैसे मां-बाप के गर्भ में और वैज्ञानिक कहते हैं, हम से बेहतर होगा, क्योंकि वह ठीक से | प्रवेश करती थी, वैसे ही वैज्ञानिक प्रयोगशाला के शरीर में प्रवेश कल्टिवेटेड होगा। हमारी पैदाइश तो बिलकुल ही अवैज्ञानिक है। | करेगी। इससे आत्मा का कोई संबंध नहीं है। इससे कुछ भी सिद्ध उसमें कोई नियम और गणित और कोई व्यवस्था तो नहीं है। उसमें नहीं होता। सारी व्यवस्था होगी। __ आज से हजार साल पहले हम बिजली नहीं जला सकते थे; वैज्ञानिक कहते हैं कि वह जो शरीर हम निर्मित करेंगे, हम जानेंगे | हमारे पास पंखे नहीं थे, बल्ब नहीं थे। लेकिन आकाश में तो कि इसे कितने वर्ष की जिंदगी देनी है। सौ वर्ष की? तो वह ठीक | बिजली चमकती थी। आकाश में बिजली चमकती थी। बिजली सौ वर्ष की गारंटी का सर्टिफिकेट लेकर पैदा होगा। क्योंकि हम सदा से थी। आज हमने बल्ब जला लिए, तो क्या हम सोचते हैं, उतना रासायनिक तत्व उसमें डालेंगे, जो सौ वर्ष तक स्वस्थ रह | | जो बिजली हमारे बल्बों में चमक रही है, वह कोई दूसरी है? वह सके। अगर हम चाहते हैं कि वह आइंस्टीन जैसा बुद्धिमान हो, तो वही है, जो आकाश में चमकती थी। हमने अभी भी बिजली नहीं बुद्धि के तत्व की उतनी ही मात्रा उसमें होगी। अगर हम चाहते हैं बनाई है! अभी भी हमने बिजली को प्रकट करने के उपाय ही बनाए कि वह मजदूर का काम करे, तो उस तरह की मसल्स उसमें होंगी। हैं। बिजली हम कभी न बना सकेंगे। सिर्फ जहां-जहां बिजली अगर हम चाहते हैं कि वह संगीतज्ञ का काम करे, तो उसके गले | अप्रकट है, वहां से हम प्रकट होने के उपाय खोज लेते हैं। और उसकी आवाज का सारा रासायनिक क्रम वैसा होगा। __ अगर किसी दिन हमने आदमी का शरीर बना लिया, जो कि बना और फिर वे यह भी कहते हैं कि हम हर बच्चे को बनाते वक्त ही लिया जाएगा, तो उस दिन भी हम आदमी को नहीं बना रहे हैं, उसकी एक डुप्लीकेट कापी भी बना लेंगे। क्योंकि कभी भी जिंदगी सिर्फ शरीर को बना रहे हैं। और जिस तरह आत्माएं गर्भ के शरीर में किसी की किडनी खराब हो गई, तो उसको बदलने की दिक्कत में प्रवेश करती रही हैं, वे आत्माएं मनुष्य द्वारा निर्मित शरीर में भी पड़ती है। तो उस डुप्लीकेट कापी से उसकी किडनी निकालकर प्रवेश कर पाएंगी। इसमें कोई अड़चन नहीं है, इसमें कोई कठिनाई बदल देंगे। किसी की आंख खराब हो गई! तो एक डुप्लीकेट कापी | भी नहीं है। शरीर विज्ञान से निर्मित हुआ कि प्रकृति से निर्मित हुआ, उस शरीर की जिंदा, प्रयोगशाला में रखी रहेगी। डीप फ्रीज, काफी | | कोई भेद नहीं पड़ता। आत्मा अप्रकट चेतना है। प्रकट होने का गहरी ठंडक में रखी रहेगी, कि सड़ न जाए। और जब भी आपमें | | माध्यम मिल जाए, आत्मा प्रकट हो जाती है। कोई गड़बड़ होगी, तो पार्ट बदले जा सकेंगे। लेकिन न तो चेतना का कोई निर्माण हो सकता है और न कोई उनका कहना है कि जब एक दफे हमें सूत्र मिल गया, तो हम | | विनाश हो सकता है। जब आप किसी की छाती में छुरा भोंकते हैं, एक जैसे हजार शरीर भी पैदा कर सकते हैं, कोई कठिनाई नहीं है। तब भी आत्मा नहीं मरती। और जिस दिन प्रयोगशाला की फिर क्या होगा! आत्मवादियों का क्या होगा? लेबोरेटरी में हम परखनली में आदमी का शरीर बना लेंगे, उस दिन 282
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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