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* तंत्र और योग
ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, कठिन है। सदियां बीत जाती हैं, | वह कहता है कि ठीक है; पक्का है कि मैं यहां कुछ दान करूं, तो तब कभी ऐसा आदमी उपलब्ध होता है।
स्वर्ग में उत्तर मिल जाएगा? पक्का है कि यहां एक मंदिर बना दूं, जिसके मन में कोई संशय नहीं है, वही तो दूसरे के संशय को | | तो भगवान के मकान के पास ही ठहरने की जगह मिलेगी? पक्का काट पाएगा। जिसके मन में स्वयं ही बहुत तरह के संशय हैं, वह | है? तो मैं कुछ त्याग कर सकता हूं। दूसरे के संशय को काटने भला जाए, और जड़ों को पानी सींचकर सांसारिक मन, पाने का पक्का हो जाए, तो छोड़ सकता है। पाने लौट आएगा।
के लिए ही छोड़ सकता है। बड़ा अदभुत है यह। बड़ा कंट्राडिक्टरी हम सब यही करते हैं। हम सब एक-दूसरे का संशय काटते हैं। है यह। यह हो नहीं सकता। अगर पाने के लिए ही छोड़ रहे हैं, तो बेटे का संशय बाप काट रहा है; और बाप खुद संदिग्ध है! उसे छोड़ना नहीं हो सकता। और कठिनाई यह है कि जो छोड़ता है, वही खुद पता नहीं कि मामला क्या है! बेटा पूछता है, यह पृथ्वी किसने पाता है। बनाई ? बाप कहता है, भगवान ने। और भीतर-भीतर डरता है कि | अब इस वक्तव्य को, इस पैराडाक्स को, इस उलटबांसी को बेटा अब आगे न पूछे कि भगवान किसने बनाए? और कहीं बेटा ठीक से समझ लेना चाहिए। जोर से न पूछ ले कि भगवान कहां है? देखा है? क्योंकि बेटे | | कबीर के पास लोग जाते थे, तो वे उलटबांसियां कहते थे। कोई आमतौर से नहीं पूछते, इसलिए बाप अपने झूठ कहे चले जाते हैं। | | उनसे पूछता था कि उलटी-सीधी बातें आप कहते हैं, हमारी कुछ ' लेकिन थोड़े ही दिन में बेटा जवान होगा और जान लेगा कि बाप | समझ में नहीं पड़ती! तो वे कहते, तुम जाओ। क्योंकि फिर आगे को भी पता नहीं है। लेकिन वह यह भी जान लेगा कि बेटों के | की जिस यात्रा पर मुझे तुम्हें ले जाना है, वे सब उलटबांसियां हैं। सामने जानने का मजा लिया जा सकता है। अपने बेटों के सामने | उलटबांसी का मतलब होता है, पैराडाक्स। वह भी लेगा। और ऐसा चलता है। गुरु असंदिग्ध भाव से जवाब | जैसे कबीर के पास कोई जाएगा और पूछेगा, परमात्मा है? तो देता मालूम पड़ता है, लेकिन भीतर संदेह खड़ा होता है। | कबीर उसको इसका उत्तर न देंगे। वे कहेंगे, समुंद लागी आगि,
कृष्ण जैसा आदमी अर्जुन को मिले, तो स्वाभाविक है उसका नदियां जल भईं राख। वह आदमी कहेगा, आप क्या कह रहे हैं! कहना कि हे महाबाहो, तुम जैसा आदमी फिर नहीं मिलेगा। तुम | | समुद्र में आग लग गई है और नदियां जलकर राख हो गई हैं?
ट ही डालो। अगर तुम न काट पाए मेरे संदेह को, तो फिर मैं कबीर कहेंगे, तू जा। अगर राजी हो, तो रुक। क्योंकि आगे फिर आशा नहीं करता कि कुछ हो सकता है। फिर मैं होपलेस हालत में और उपद्रव होगा। हो जाऊंगा, बिलकुल आशारहित। फिर मेरी कोई आशा नहीं है। ___ कोई आकर पूछेगा, आत्मा क्या है? और कबीर कहेंगे, जाग क्योंकि जैसा मैं अपने को जानता हूं, वैसा तो मैं इसी किनारे से बंधा कबीरा जाग। माछी चढ़ गई रूख! मछली जो है, वह झाड़ पर चढ़ रहूंगा। कम से कम कुछ तो मुट्ठी में है। और जो तुम कह रहे हो, । | गई है; कबीर जाग! वह आदमी कहेगा, मैं आत्मा के संबंध में वह बात जंचती है, लेकिन मेरे संशय को काट डालो। समझने आया। कहां की मछलियां! कहां के रूख! कभी मछलियां यहां दो-तीन बातें खयाल में ले लेनी जरूरी हैं।
झाड़ों पर चढ़ी हैं? कबीर कहेंगे, तू जा। क्योंकि आगे की बातें और एक तो बात यह खयाल में ले लेनी जरूरी है कि सांसारिक मन कठिन हैं। का यह लक्षण है कि वह किसी चीज को छोड़ सकता है किसी चीज | । यह जो कृष्ण से अर्जुन पूछ रहा है, उसका उत्तर, उसकी दुविधा के पाने के भरोसे। सहज नहीं छोड़ सकता। पाने का भरोसा हो, तो असल में यही है। दुविधा त्याग की यही है कि त्याग बिना पाने की छोड़ सकता है किसी चीज को। त्याग करने में सांसारिक मन आशा के किया जाए, तो होता है। और जो बिना पाने की आशा के मुश्किल नहीं पाता, लेकिन त्याग इनवेस्टमेंट होना चाहिए। त्याग त्याग करता है, वह बहुत पाता है। जो पाने की आशा से त्याग कुछ और पाने के लिए सिर्फ व्यवस्था बनाना चाहिए।
करता है, वह पाने की आशा से करता है, इसलिए त्याग नहीं हो और जब त्याग किसी और को पाने के लिए होता है, तो त्याग पाता। और चूंकि त्याग नहीं हो पाता, इसलिए वह कुछ भी नहीं नहीं होता, सिर्फ सौदा होता है। इसलिए सांसारिक मन त्याग को पाता है। समझ ही नहीं पाता, सिर्फ बार्गेनिंग समझता है, सौदा समझता है। जिसे पाना हो, उसे पाने की बात छोड़ देनी चाहिए। जिसे न पाना
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