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+कृष्ण का संन्यास, उत्सवपूर्ण संन्यास -
चलाने से कोई तट पर नहीं पहुंचता, जन्मों-जन्मों तक चलकर भी बैठोगे, तो सुख हो जाएगा। अगर आप जिस भांति दुकान पर बैठे कोई मंजिल पर नहीं पहुंचता, आकांक्षाएं करने से कोई आकांक्षाएं हो, उसी भांति मंदिर में बैठ गए, तो कोई सुख न होगा। आप ही पूरी होती नहीं हैं। लेकिन जो आदमी नाव चलाए और किनारे पर तो मंदिर में बैठ जाओगे! आप बाजार में थे; आप ही जंगल में बैठ पहुंचने का खयाल छोड़ दे, उसे बीच मझधार भी किनारा बन जाती | जाओगे। आपमें कोई फर्क न हुआ, तो जंगल में उतनी ही पीड़ा है, है। और जो आदमी कल की आशा छोड़ दे और आज कर्म करे, | | जितनी बाजार में दुकान पर थी। कर्म ही उसका फल बन जाता है, कर्म ही उसका रस बन जाता है। सवाल यह नहीं है कि जगह बदल ली जाए। जगह का कोई भी फिर कर्म और फल में समय का व्यवधान नहीं होता। फिर अभी | संबंध नहीं है। जहां आज आपकी दुकान है, कल कभी वहां जंगल कर्म और अभी फल।
रहा था। और कल कभी कोई संन्यास लेकर उस जंगल में आकर संन्यास जीवन का त्याग नहीं है कृष्ण के अर्थों में, जीवन का | बैठ गया होगा। जगह वही है; अब वहां दुकान है। जहां आज जंगल परम भोग है।
है, कल दुकान हो जाएगी। जहां आज दुकान है, कल जंगल हो जीवन का रहस्य ही यही है कि हम जिसे पाना चाहते हैं, उसे | जाएगा। जगहों में कोई अंतर नहीं है। जमीन ने तय नहीं कर रखा है हम नहीं पा पाते हैं। जिसके पीछे हम दौडते हैं. वह हमसे दर हटता कि कहां जंगल हो और कहां दुकान हो। दुकान तय होती है मन से, चला जाता है। जिसके लिए हम प्रार्थनाएं करते हैं, वह हमारे हाथ | | स्थान से नहीं। दुकान तय होती है मनःस्थिति से, परिस्थिति से नहीं। के बाहर हो जाता है। जीवन करीब-करीब ऐसा है, जैसे मैं मुट्ठी में कृष्ण कहते हैं, अगर तुम तुम ही रहे, तो तुम कहीं भी भाग हवा को बांधूं। जितने जोर से कसता हूं मुट्ठी को, हवा उतनी मुट्ठी | जाओ, दुख तुम्हारे साथ पहुंच जाएगा। वह तुम्हारे भीतर है, वह के बाहर हो जाती है। खुली मुट्ठी में हवा होती है, बंद मुट्ठी में हवा | | तुममें है, वह तुम्हारी वासना में है, वह तुम्हारी इच्छा में है। जहां नहीं होती। हालांकि जिसने मुट्ठी बांधी है, उसने हवा बांधने को | | इच्छा है, वहां दुख छाया की तरह पीछा करेगा। इसलिए भागो बांधी है।
जंगल में, गुफाओं में, हिमालय पर, कैलाश पर। दुख को तुम जीवन को जो लोग जितनी वासनाओं-आकांक्षाओं में बांधना | | पाओगे कि वह तुम्हारे साथ मौजूद है। खोलोगे आंख, पाओगे, चाहते हैं, जीवन उतना ही हाथ के बाहर हो जाता है। अंत में सिवाय | सामने खड़ा है। बंद करोगे आंख, पाओगे, भीतर बैठा है। रिक्तता, फ्रस्ट्रेशन, विषाद के कुछ भी हाथ नहीं पड़ता है। । दुख उस चित्त में निवास करता है, जो वासना में जीता है। । कृष्ण कहते हैं, खुली रखो मुट्ठी; आकांक्षा से बांधो मत, इच्छा फिर यह भी मजे की बात है कि जो आदमी संसार छोड़कर
से बांधो मत। जीओ, लेकिन किसी आगे भविष्य में कोई फल | | भागता है, वह भी वासनाएं छोड़कर नहीं भागता। वह भी किसी मिलेगा, इसलिए नहीं। फिर किसलिए? हम पूछना चाहेंगे कि फिर वासना के लिए संसार छोड़कर भागता है। इस बात को भी थोड़ा किसलिए जीओ?
ठीक से समझ लेना जरूरी है। वह पाना चाहता होगा मोक्ष, पाना कृष्ण कहते हैं, जीना अपने में ही आनंद है।
चाहता होगा परमात्मा, पाना चाहता होगा स्वर्ग. पाना चाहता होगा जीने के लिए कल की इच्छा से बांधना नासमझी है। जीना अपने | शांति, पाना चाहता होगा आनंद। लेकिन पाना जरूर चाहता है। में ही आनंद है। यह पल भी काफी आनंदपूर्ण है। और तब श्रम ही | नीत्शे ने कहीं बहुत व्यंग्य किया है उन सारे लोगों पर, जो जीवन अपने में आनंद हो जाए, कर्म ही अपने में आनंद हो जाए, तो कुछ | को छोड़कर भागते हैं। उसने कहा है कि तुम अजीब हो पागल! तुम आश्चर्य नहीं है।
कहते हो, हम इच्छाओं को छोड़कर भागते हैं, लेकिन मैंने एक भी लेकिन कृष्ण के समय तक सारा संन्यास भगोड़ा, एस्केपिस्ट | ऐसा आदमी नहीं देखा जो किसी इच्छा के लिए न भाग रहा हो। था, पलायनवादी था। हट जाओ। जहां-जहां दुख है, वहां-वहां से यहां इच्छाएं छोड़ता है, वहां इच्छाएं पाने के लिए भागता है! और हट जाओ। जहां-जहां पीड़ा है, वहां-वहां से हट जाओ। लेकिन | अगर किसी इच्छा के लिए ही इच्छा छोड़ी गई, तो इच्छा कहां छोड़ी कृष्ण कहते हैं, पीड़ा स्थान की वजह से नहीं है; पीड़ा वासना के गई है? ऐसे तो कोई भी छोड़ देता है। कारण है। वही उनकी बुनियादी खोज है।
___ एक आदमी को सिनेमा जाना होता है, तो दुकान छोड़कर जाता पीड़ा इसलिए नहीं है कि आप बाजार में बैठे हो; और जंगल में है। एक आदमी को वेश्या को खरीदना होता है, तो कुछ छोड़कर
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