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________________ गीता दर्शन भाग-3 के जीवन में प्रवेश करा दे, तो आप यह मत सोचना कि आपने उसे | बनाई थी प्रतिमा ? उसी छेनी से तोड़ दो। रामकृष्ण ने कहा कि किस खोजा। आप न खोज पाएंगे। वही आपको खोजता है। छेनी से बनाई थी! मन के ही भाव से बनाई थी। तो तोतापुरी ने तोतापुरी निकले। तोतापुरी दो दिन से एहसास कर रहे थे कि | कहा, एक काम करो। आंख बंद करो, और मैं एक कांच का टुकड़ा किसी को मेरी बहुत जरूरत है। दक्षिणेश्वर के मंदिर के पास से उठाकर लाता हूं बाहर से, और मैं तुम्हारे माथे पर कांच के टुकड़े निकलते थे, रुक गए। किसी से पूछा कि मंदिर के भीतर कौन है ? | | से काढूंगा, और जब तुम्हें भीतर मालूम पड़े कि लहूलुहान तुम्हारा तो उन्होंने कहा कि रामकृष्ण मंदिर के भीतर साधना करते हैं। माथा हो गया तब हिम्मत करके, तलवार उठाकर दो टुकड़े कर देना तोतापुरी भीतर गए, देखा कि रामकृष्ण को उनकी जरूरत है; कोई प्रतिमा के। रामकृष्ण ने कहा, तलवार! निराकार की यात्रा पर धक्का दे दे। ___ तोतापुरी ने कहा, जब प्रतिमा तक तुम अपने मन से बना सके, ___ अदृश्य का जगत इतना ही बड़ा है। जो हमें दिखाई पड़ता है, वह तो तलवार न बना सकोगे? बना लेना। रामकृष्ण बड़े रोते हुए, क्षमा बहुत कम है। जो नहीं दिखाई पड़ता है, वह बहुत बड़ा है। न तो मांगते हुए कि बड़ी मुश्किल की बात है, भीतर गए। फिर तोतापुरी हम आकस्मिक किसी से मिलते हैं, न मिल सकते हैं। आकस्मिक ने माथे पर कांच से काट दिया। काटते वक्त उन्होंने हिम्मत की, ' हम किसी को सुन भी नहीं सकते। आकस्मिक किसी का शब्द भी | | तलवार उठाई, प्रतिमा दो टुकड़े होकर गिर गई। रामकृष्ण छः दिन के हमारे कान में नहीं पड़ सकता। बहुत कार्य-कारणों का जाल है। लिए गहन समाधि में खो गए। छः दिन के बाद जब वापस लौटे, तो तोतापुरी ने जाकर रामकृष्ण को हिलाया। आंख खोली रामकृष्ण उन्होंने कहा, अंतिम बाधा गिर गई—दि लास्ट बैरियर हैज फालेन ने। रामकृष्ण को लगा, आ गया वह आदमी। उन्होंने नमस्कार | अवे। आखिरी! वह प्रतिमा भी आखिरी बाधा बन गई थी। किया और कहा कि मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं। दो दिन से चिल्ला रहा जो हम निर्मित करते हैं, उसे मिटाना भी पड़ता है फिर। हमने राग हूं कि भेजो किसी को जो मुझे आकार से मुक्त कर दे। आ गए की प्रतिमाएं निर्मित की हैं, तो हमें विराग की तलवारें उठानी पड़ेंगी। आप! तोतापुरी ने कहा, आ गया मैं। लेकिन कठिनाई पड़ेगी, नहीं तो कृष्णमूर्ति ठीक कहते हैं। अगर राग निर्माण न किया हो, तो क्योंकि तुमने इतनी मेहनत से जो साकार निर्मित किया है, उसे विराग की तलवार उठाने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन जिसने राग तोड़ना भी पड़ेगा। रामकृष्ण ने कहा, मेरी काली को बचने दो। मेरी | निर्माण नहीं किया है, वह कृष्णमूर्ति को सुनने कहाँ जाता है। पूछने प्रतिमा को बचने दो, और मुझे निराकार में जाने दो। तोतापुरी ने कहां जाता है! वह जाता नहीं। और जिसने राग निर्माण किया है, वह कहा, तो लोट जाऊं। यह दोनों बात एक साथ न हो सकेगी। सुनने-पूछने जाता है। वह उससे कह रहे हैं कि कुछ न करना। कुछ तम्हें इस प्रतिमा को भीतर से तोडना पड़ेगा, जैसे तमने बनाया। करने की जरूरत नहीं है। अभ्यास व्यर्थ है। रामकृष्ण ने कहा, मैं तोड़ ही नहीं सकता। और तोडूंगा कैसे! भीतर तो वह जो रागी है, अपने अभ्यास को तो जारी रखता है राग के। कोई औजार भी तो नहीं है। बड़ा मजा यह है हमारे मन का। अगर वह यह भी मान ले कि तोतापुरी ने कहा, आंख बंद करो और तोड़ने की कोशिश करो। अभ्यास व्यर्थ है, तो राग का अभ्यास भी बंद कर दे। वह तो बंद रामकृष्ण आंख बंद करते। आनंदमग्न हो जाते। नाचने लगते। नहीं करता। उसको जारी रखता है। सिर्फ वैराग्य का अभ्यास बंद तोतापुरी रोकते और कहते, मैंने इसलिए आंख बंद करने को नहीं कर देता है। बंद कर देता है, कहना ठीक नहीं; शुरू नहीं करता। कहा। रामकृष्ण कहते, लेकिन जब प्रतिमा दिखाई पड़ती है, तोड़ने बंद कहां! उसने शुरू ही नहीं किया है। की बात कहां, मैं बचता ही नहीं। आनंदमग्न हो जाता हूं। तो लेकिन कृष्ण साधक की दृष्टि से बोल रहे हैं। वे कह रहे हैं, तोतापुरी ने कहा, फिर इस आनंद में तृप्त हो जाओ। तृप्त भी नहीं | अभ्यास से तोड़ना पड़ेगा। राग, अभ्यास से तोड़ना पड़ेगा! हो पाता, किसी और महाआनंद की तलाश है। तो तोतापुरी ने कहा, अभ्यास की विधियों के संबंध में आगे वे बात करेंगे, तो धीरे-धीरे फिर इस प्रतिमा को तोड़ो। रामकृष्ण कहने लगे, कैसे तोडूं न कोई हम उनको उघाड़ेंगे और समझने की कोशिश करेंगे। समझ पूरी तो हथौड़ी, न कोई छेनी, कुछ भी तो नहीं है! तोतापुरी ने जो कहा, वह तभी आएगी, जब कोई एकाध विधि पकड़कर आप प्रयोग में लग मैं आपसे कहता हूं। जाएंगे। प्रयोग के अतिरिक्त और कोई समझ नहीं है। उसने कहा, बनाई कैसे थी? छेनी थी भीतर? किस छेनी से अब हम एक विधि का उपयोग यहां भी करते हैं, अभी उसको |262
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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