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________________ 4 वैराग्य और अभ्यास > थोड़ा गौर से देखें। यह भी एक विधि है। अगर कीर्तन में इतने लीन हो जाएं कि आपको पता ही न रहे कि कौन नाच रहा है. कि कौन देख रहा है, कि ये हाथ किसके हिल रहे हैं—मेरे या किसी और के! यह वाणी किसकी निकल रही है—मेरी या किसी और की! अगर इतनी तल्लीनता आ जाए, तो आप वैराग्य की एक स्थिति को अभी अनुभव कर सकेंगे—यहीं। तो हमारे संन्यासी जाएंगे संकीर्तन में। उठकर कोई न जाए। और जिनको उठकर जाना होता हो, उन्हें आना ही नहीं चाहिए यहां। उन्हें आने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि मैं जो मेहनत कर रहा हूं, वह इसलिए कि आपको कोई विधि खयाल में आ जाए। आप उन नासमझों में से हैं कि सारी बात सुनकर जब विधि की बात उठती है, तब भागने की कोशिश करते हैं! बैठ जाएं अपनी जगह पर। कोई वहां से उठेगा नहीं। पांच मिनट कीर्तन चलेगा, फिर आप जाएंगे। और कीर्तन सिर्फ सुनें न, सम्मिलित हों। इतने लोग हैं, अगर कीर्तन जोर से हो, तो यह पूरा वायुमंडल पवित्र होगा और दूर-दूर तक उसकी किरणें पहुंच जाएंगी। ताली बजाएं। गीत दोहराएं। अपनी जगह पर डोलें भी। | 263
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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