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- वैराग्य और अभ्यास -
है। क्योंकि यह डाक्टर भरोसे का नहीं रहा। यह डाक्टर आपके | ___ गीता अपने में पूरी ठीक है, कुरान अपने में पूरा ठीक है। गीता भीतर वह जो एक कनविक्शन, वह जो एक आस्था, एक निष्ठा के ठीक होने से कुरान गलत नहीं होता। कुरान के ठीक होने से जन्माता, इसने नहीं जन्मायी। हालांकि बेचारा ठीक कह रहा था।
| गीता गलत नहीं होती। सत्य इतना बड़ा है कि अपने विरोधी सत्य लेकिन निष्ठा आपके भीतर नहीं आई। यह डाक्टर की दवा कितनी को भी आत्मसात कर लेता है। सत्य इतना महान है कि अपने से ही ठीक हो, यह डाक्टर थोड़ा-सा गलत साबित हुआ। यह डाक्टर | विपरीत को भी पी जाता है। और सत्य के इतने द्वार हैं। लेकिन कृपा डाक्टर जैसा लगा ही नहीं। यह भरोसा पैदा नहीं करवा पाया। तब | करके ऐसा मत कहो कि दोनों द्वार एक हैं। नहीं तो वह आदमी फिर दवा काम नहीं करेगी। दवा को लिया भी न जा सकेगा। | दिक्कत में पड़ेगा। न इससे निकल पाएगा, न उससे निकल उपयोग भी संदिग्ध होगा। संदिग्ध उपयोग खतरों में ले जाएगा। | पाएगा। द्वार से तो एक से ही निकलना पड़ेगा।
इसलिए प्रत्येक धर्म अपनी विधि के बाबत आग्रहपूर्ण है। वह | | अगर मैं किसी मंदिर में प्रवेश करता हूं, उसके हजार द्वार हैं, तो कहता है, यही विधि ठीक है। और जो इस आग्रहपूर्ण विधि का भी दो द्वार से प्रवेश नहीं हो सकता। प्रवेश एक ही द्वार से करना उपयोग करेगा, वह एक दिन जरूर उस जगह पहुंच जाता है, जहां पड़ेगा। हां, भीतर जाकर मैं जानूंगा कि सब द्वार भीतर ले आते हैं। वह जानता है. और विधियों के लोग भी पहुंच गए। लेकिन यह लेकिन फिर भी मैं आने वालों से कहंगा कि तम किसी एक से ही अंतिम अनुभव है; यह अंतिम अनुभव है।
प्रवेश करना। दो से प्रवेश करने की कोशिश में डर यह है कि दोनों तो मैं पसंद नहीं करता कि कोई पढ़े, अल्लाह-ईश्वर तेरे नाम। | दरवाजों के बीच में जो दीवाल है, उससे सिर टकरा जाए, और कुछ यह बहुत कनफ्यूजिंग है। कोई ऐसा बैठकर याद करे, | | न हो। दो नावों पर यात्रा नहीं होती, दो धर्मों में भी यात्रा नहीं होती, अल्लाह-ईश्वर तेरे नाम, तो गलत है। अल्लाह का अपना उपयोग दो विधियों में भी यात्रा नहीं होती। है, राम का अपना उपयोग है। राम का करना हो, तो राम का करना। लेकिन विधि का उपयोग अनिवार्य है। क्यों अनिवार्य है? अल्लाह का करना हो, तो अल्लाह का करना। क्योंकि दोनों के | अनिवार्य इसलिए है कि हमने जो कर रखा है अब तक, उसको स्वर विज्ञान हैं, और दोनों की अपनी गहरी चोट है। राम की चोट | काटना जरूरी है। हमने जो कर रखा है अब तक, उसे काटना अलग है, अल्लाह की चोट अलग है।
जरूरी है। जो आदमी कह रहा है, अल्लाह-ईश्वर तेरे नाम, वह एक छोटी-सी कहानी कहूं, उससे मेरी बात खयाल में आ जाए, पालिटिक्स में कह रहा हो, तो ठीक है। धर्म की दुनिया में बात न | फिर हम सुबह बात करेंगे। करे, क्योंकि राम का पूरा का पूरा वैज्ञानिक रूप भिन्न है; राम की रामकृष्ण बहुत दिन तक साकार उपासना में थे; सगुण साकार चोट भिन्न है। अलग केंद्र पर, अलग चक्रों पर उसकी चोट है। और की उपासना में लीन थे। काली के भक्त थे। मां की उन्होंने अगर इन दोनों का एक साथ उपयोग किया, तो खतरा है कि आप | पूजा-अर्चना की थी। और मां की साकार प्रतिमा को भीतर अनुभव पागल हो जाएं। लेकिन वे जो लोग उपयोग करते हैं, वे ऊपर-ऊपर | | कर लिया था। मनुष्य के मन की इतनी सामर्थ्य है कि वह जिस पर उपयोग करते हैं। पागल भी नहीं होते, चर्खा चलाते रहते हैं, | | भी अपने ध्यान को पूरा लगा दे, उसकी जीवंत प्रतिमा भीतर उत्पन्न अल्लाह-ईश्वर तेरा नाम कहते रहते हैं।
हो जाती है। लेकिन फिर भी रामकृष्ण को तृप्ति नहीं थी। क्योंकि अगर भीतर उपयोग करें, तो पागल हो जाएंगे। दोनों शब्दों का | | मन से कभी तृप्ति नहीं मिल सकती। मन के ऊपर ही संतृप्ति का एक साथ उपयोग नहीं किया जा सकता। यह
लोक है। तो बहत बेचैन थे। अब बडी मश्किल में पड़ गए थे। जहां आयुर्वेद की दवा ले लें, ठीक है। एलोपैथी की ले लें, ठीक है। तक साकार प्रतिमा ले जा सकती थी, पहुंच गए थे। लेकिन कोई लेकिन कृपा करके दोनों का मिक्सचर न बनाएं। यह मिक्सचर है। तृप्ति न थी, तो तलाश करते थे कि कोई मिल जाए, जो निराकार
और ये नासमझों के द्वारा प्रचलित बातें हैं। जिनको धर्म की साइंस में धक्का दे दे। का कोई भी बोध नहीं है। तो कुरान भी ठीक, गीता भी ठीक! दोनों । तो एक संन्यासी गुजरता था। गुजरता था कहना शायद ठीक नहीं में से खिचड़ी इकट्ठी तैयार करो। वह किसी के काम की नहीं है। | | है, रामकृष्ण की पुकार के कारण निकला वहां से। इस जगत में जब वह जहर है।
आप किसी ऐसे व्यक्ति को खोज लेते हैं, जो आपको किसी विधि
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