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गीता दर्शन भाग-3
क्यों? क्योंकि हम इतने कमजोर लोग हैं कि अगर हमें जरा भी पता चल जाए कि बगल का रास्ता भी जाता है, उससे बगल का भी रास्ता जाता है, तो बहुत संभावना यह है कि दो कदम हम इस रास्ते पर चलें, दो कदम बगल के रास्ते पर चलें, दो कदम तीसरे रास्ते पर चलें। और जिंदगीभर रास्ते बदलते रहें, और मंजिल पर कभी न पहुंचें!
इसलिए दुनिया के प्रत्येक धर्म को डाग्मेटिक असर्सन्स करने पड़े। कुरान को कहना पड़ा, यही सही है; और मोहम्मद के सिवाय उस परमात्मा का रसूल कोई और नहीं है। एक ही परमात्मा और एक ही उसका पैगंबर है। इसका कारण यह नहीं है कि मोहम्मद
मेटिक हैं। इसका यह कारण नहीं है कि मोहम्मद पागल हैं और कहते हैं कि मेरा ही मत ठीक है।
लेकिन असलियत यह है कि यह मोहम्मद उन लोगों के लिए कहते हैं, जो सुन रहे हैं। क्योंकि उनको अगर यह कहा जाए, सब मत ठीक हैं, मुझसे विपरीत कहने वाले भी ठीक हैं, उलटा जाने वाले भी ठीक हैं; इस तरफ जाने वाले, उस तरफ जाने वाले भी ठीक हैं; तो वह जो कनफ्यूज्ड आदमी है, जो भ्रमित आदमी है, जो वैसे ही भ्रमित खड़ा है, वह कहेगा, जब सभी ठीक हैं, तो शक होता है कि कोई भी ठीक नहीं है । बहुत संभावना यह है कि जब हम कहें, सभी ठीक हैं, तो आदमी को शक हो ।
महावीर के साथ ऐसा ही हुआ ! इसलिए दुनिया में महावीर के मानने वालों की संख्या बढ़ नहीं सकी; और कभी नहीं बढ़ सकेगी। उसका कारण है। उसके कारण महावीर हैं। आज भी महावीर के मानने वालों की संख्या - मानने वालों की, सच में जानने वालों की नहीं; मानने वालों की संख्या – पैदाइशी मानने वालों की संख्या; अब पैदाइश से मानने का कोई भी संबंध नहीं है, लेकिन पैदाइशी मानने वालों की संख्या तीस लाख से ज्यादा नहीं है। महावीर को हुए पच्चीस सौ वर्ष हो गए हैं। अगर महावीर तीस दंपतियों को कनवर्ट कर लेते, तो तीस लाख आदमी पैदा हो जाते पच्चीस सौ साल में।
महावीर की बात कीमती है बहुत, लेकिन फैल नहीं सकी, क्योंकि महावीर ने नान - डाग्मेटिक असर्सन किया | महावीर ने कहा, यह भी ठीक, वह भी ठीक; उसके विपरीत जो है, वह भी ठीक। महावीर ने सप्तभंगी का उपयोग किया। अगर महावीर आप एक वाक्य का उत्तर पूछें, तो वे सात वाक्यों में जवाब देते । आप पूछें, यह घड़ा है? तो महावीर कहते हैं, हां, यह घड़ा है।
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| कहते हैं, रुको, दूसरी भी बात सुन लो। यह घड़ा नहीं भी है; क्योंकि मिट्टी है। रुको, चले मत जाना, तीसरी बात भी सुन यह घड़ा भी है, घड़ा नहीं भी है। आप भागने लगे, तो महावीर | कहेंगे कि जरा रुको, चौथी बात और सुन लो। यह घड़ा है भी, यह घड़ा नहीं भी है, और यह घड़ा ऐसा है कि वक्तव्य में कहा नहीं जा |सकता, रहस्य है । आप कहने लगे कि बस, अब मैं जाऊं ! तो वे कहेंगे, एक वक्तव्य और सुन लो, यह घड़ा है; अवक्तव्य है। नहीं है; अवक्तव्य है । है भी, नहीं भी है; अवक्तव्य है।
घड़ा को थोड़ा-बहुत समझते भी रहे होंगे, वह भी गया! अब आप घड़े में पानी भी मुश्किल से भर पाएंगे। क्योंकि सोचेंगे, घड़ा है भी, घड़ा नहीं भी है। पानी भरना कि नहीं भरना ! पानी बचेगा कि निकल जाएगा! आप दिक्कत में पड़ेंगे।
यद्यपि महावीर ने सत्य को जितनी पूर्णता से कहा जा सकता है, कहने की कोशिश की है। इतनी पूर्णता से कहने की कोशिश किसी की भी नहीं है, जितनी महावीर की है। लेकिन इतनी पूर्णता से कहकर वह किसी के काम का नहीं रह जाता। किसी के काम नहीं रह जाता। अगर वे चुप रह जाते, तो भी बेहतर था; शायद आप कुछ समझ जाते । उनकी इतनी बातों से, जो समझते थे, वह भी गड़बड़ हो गया । इसलिए महावीर को अनुगमन नहीं मिल सका।
कोई भी विधि, अगर चाहते हैं कि आपके काम पड़ जाए, तो उसे कहना पड़ेगा कि यही विधि ठीक है; कोई और विधि ठीक नहीं है। जानते हुए कि और विधियां भी ठीक हैं। इसलिए दुनिया का प्रत्येक धर्म अपनी विधि को आग्रहपूर्वक कहता है कि यह ठीक है । वह आग्रह आपके ऊपर करुणा है। आपके ऊपर करुणा है, इसलिए ।
वह करीब-करीब हालत वैसी है कि डाक्टर आपके पास आए। आप उसका प्रिस्क्रिप्शन लेकर कहें कि डाक्टर साहब, यही दवा ठीक है कि और दवाएं भी ठीक हैं? वह कहे कि और भी दवाएं | ठीक हैं। हकीम के पास जाओ, तो भी ठीक हो जाओगे। एलोपैथ के पास जाओ, तो भी ठीक हो जाओगे। आयुर्वेद के पास जाओ, तो भी ठीक हो जाओगे। किसी के पास न जाओ, साईं बाबा के पास जाओ, तो भी ठीक हो जाओगे। कहीं भी जाओ, ठीक हो जाओगे। तो आप उस डाक्टर से कहेंगे, फीस के बाबत क्या | खयाल है! आपको दूं कि न दूं ? नहीं, आपको देने का कोई कारण नहीं है।
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और ध्यान रखना, वह डाक्टर कितनी ही महत्वपूर्ण दवा दे जाए, वह कचरे की टोकरी में गिर जाएगी; आपके पेट में जाने वाली नहीं