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- वैराग्य और अभ्यास -
मत समझना कि आपके अभ्यास से मिल गया। कोई नहीं समझता | करना है, तो कहना ही फिजूल है किसी से कि जागो। ऐसा। जब परमात्मा मिलता है, तो ऐसा ही पता चलता है कि वह । अगर मैं आपसे कहता हूं, जागो, तो इसका मतलब यह हुआ तो मिला ही हुआ था। मेरे गलत अभ्यासों के कारण बाधा पड़ती | | कि मैं आपसे कह रहा हूं कि कुछ करो। वह करना कितना ही सूक्ष्म थी। ऐसा समझ लें कि एक झरना है, उसके ऊपर एक पत्थर रखा | हो. लेकिन करना ही पडेगा। अगर मैं यह भी कहता हं. नींद तोडो. है। पत्थर को हटा दें, तो झरना फट पडता है। झरने को फटने के तो क्या फर्क पड़ता है। गीता कहती है, राग तोड़ो। कोई कहता है, लिए कोई अभ्यास नहीं करना पड़ता। लेकिन पत्थर अगर अटा रहे नींद तोड़ो। कोई कहता है, मूर्छा तोड़ो। कोई कहता है, होश ऊपर, तो बाधा बनी रहती है।
लाओ। कोई कहता है, जागो। उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। एक तो झेन फकीर कहते हैं, आदमी की आदतें बाधाओं का काम | बात तय है कि कुछ करना पड़ेगा, समथिंग इज़ टु बी डन। या यह कर रही हैं, रुकावटों का।
भी अगर हम कहना चाहें, तो हम कह सकते हैं, समथिंग इज़ टु ऐसा समझें कि आप मकान के भीतर बैठे हैं, दरवाजा बंद करके। बी अनडन। लेकिन वह भी एक काम है। अगर हम यह कहें कि अगर मैं आपसे कहूं कि अगर आपको सूरज चाहिए, तो सूरज को कुछ करना ही पड़ेगा, या अगर हम यह कहें कि कुछ नहीं ही करना भीतर लाने का अभ्यास करना पड़ेगा! तो आप कहेंगे, यह कहीं हो | पड़ेगा, तो भी कुछ करने की जरूरत है। जैसे हम हैं, वैसे ही हम सकता है? सूरज को हम भीतर लाने का अभ्यास कैसे करेंगे? स्वीकृत नहीं हो सकते। 'झेन फकीर कहते हैं, भीतर लाने का कोई अभ्यास नहीं करने की अभ्यास का इतना ही अर्थ है कि आदमी जैसा है, ठीक वैसा जरूरत है; सिर्फ दरवाजा बंद करने का जो अभ्यास किया हुआ है, परमात्मा में प्रवेश नहीं कर सकता; उसे रूपांतरित होकर ही प्रवेश उसको छोड़िए। दरवाजा खला करिए, सूरज भीतर आ जाएगा। होना पड़ेगा। वह रूपांतरण कैसे करता है, इससे बहुत फर्क नहीं सूरज भीतर लाना नहीं पड़ेगा, सूरज आ जाएगा। आप सिर्फ पड़ता। हजार विधियां हो सकती हैं। हजार विधियां हो सकती हैं। दरवाजा बंद मत करिए।
हजार विधियां हैं। इसका यह मतलब हुआ कि हम चाहें तो अभ्यास से परमात्मा | जैसे पर्वत पर चढ़ने के लिए हजार मार्ग हो सकते हैं। और से वंचित हो सकते हैं। और चाहें तो अनभ्यास से, नो एफर्ट से, जरूरी नहीं कि आप बने-बनाए मार्ग से ही चढ़ें। आप चाहें, थोड़ी अभ्यास छोड़ देकर परमात्मा को पा सकते हैं। लेकिन अभ्यास को तकलीफ ज्यादा लेनी हो, तो बिना मार्ग के चढ़े। जहां पगडंडी नहीं छोड़ना अभ्यास करने से कम कठिन बात नहीं है। इसलिए झेन | है, वहां से चढ़े। पगडंडी बचाकर चढ़ें। आपकी मर्जी। लेकिन फकीर अभ्यास की विधियां उपयोग करते हैं।
पगडंडी बचाकर भी आप जब चढ़ रहे हैं, तब फिर एक पगडंडी लेकिन कष्णमर्ति ने एक कदम और हटकर बात कही है। वे का ही उपयोग कर रहे हैं. सिर्फ आप पहले आदमी हैं उसका कहते हैं. अभ्यास छोड़ने के भी अभ्यास की जरूरत नहीं है। अगर उपयोग करने वाले: इससे कोई फर्क नह कहीं से भी गीता के इस वक्तव्य के खिलाफ इस सदी में कोई वक्तव्य है, तो | चढ़ें, पहाड़ पर हजार तरफ से चढ़ा जा सकता है, लेकिन चढ़कर वह कृष्णमूर्ति का है। कृष्णमूर्ति कहते हैं, इतने भी अभ्यास की | एक ही पर्वत पर पहुंच जाना हो जाता है। जरूरत नहीं है—अभ्यास छोड़ने के लिए भी। कोई मेथड, किसी हजार विधियां हैं, अनंत विधियां हैं। दुनिया के सब धर्मों ने विधि की जरूरत नहीं है।
अलग-अलग विधियों का उपयोग किया है। और इन विधियों के लेकिन जो कृष्णमूर्ति को थोड़ा भी समझेंगे, वे पाएंगे, वे | कारण बहुत वैमनस्य पैदा हुआ है—बहुत वैमनस्य पैदा हुआ है। जिंदगीभर से एक विधि की बात कर रहे हैं। उस विधि का नाम है, क्योंकि प्रत्येक विधि की एक शर्त है; वह मैं आपसे कहूं, तो बहुत अवेयरनेस। उस विधि का नाम है, जागरूकता। वह मेथड है। उपयोगी होगी। सिर्फ इतना ही है कि वे उसको मेथड नहीं कहते हैं। कोई हर्जा नहीं, प्रत्येक विधि की यह शर्त है कि जिस आदमी को उस विधि का उसको नो-मेथड कहिए। कहिए कि यह अविधि है। इससे कोई उपयोग करना हो, उसे उस विधि को एब्सोल्यूट मानना चाहिए। फर्क नहीं पड़ता। मगर जागरूकता का अभ्यास करना ही पड़ेगा। प्रत्येक विधि की यह शर्त है कि जिस आदमी को उस विधि पर जाना जागना पड़ेगा ही। और अगर जागरूकता का कोई अभ्यास नहीं हो, उसे इस भाव से जाना चाहिए कि यही विधि सत्य है।
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