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________________ गीता दर्शन भाग-3> नहीं है। लेकिन तुम बिलकुल बिना उसके न रह सकोगी, इस पर | अभ्यास के संबंध में कुछ दो-तीन बातें और आपसे कहूं। भरोसा मत करना। क्योंकि मैंने कई लोगों को मैं बढा आदमी एक तो यह कि कछ लोगों का खयाल है कि परमात्मा को पाने हूं-मैंने कई लोगों को मरते और कई लोगों को यही बात करते | के लिए किसी अभ्यास की कोई भी जरूरत नहीं है। जैसा कि सुना। और सब बिना उसके रह लेते हैं। जापान में कुछ झेन फकीर कहते हैं कि परमात्मा को पाने के लिए नहीं; वह नहीं मानी। उसने कहा, वे और और होंगे; मैं और हूं। | कोई भी अभ्यास की जरूरत नहीं। यद्यपि वे ऐसा कहते ही हैं, हर आदमी को यही खयाल है कि मैं एक्सेप्शन हूं। वे और और। अभ्यास पूरी तरह करते हैं। पर वे उसको नाम देते हैं, अभ्यासरहित होंगे, मैं और हूं। मैं मर जाऊंगी, एक क्षण न जी सकूँगी। लाओत्से | | अभ्यास, एफर्टलेस एफर्ट, प्रयत्नरहित प्रयत्न। ' ने कहा, अब तक किसी को मरते नहीं देखा। इस गांव में मैं बहुत | ठीक है। उनके कहने में कुछ अर्थ है। अगर गीता का यह वचन दिन से हूं। हालांकि यही बात बहुतों को कहते सुना। और जितने उन्हें बताया जाए, तो वे कहेंगे, अभ्यास से नहीं मिलेगा परमात्मा। जोर से तुम कहती हो, इतने ही जोर से कहते सुना। लेकिन उस स्त्री क्योंकि स्वभाव अभ्यास से नहीं मिलता। अभ्यास से आदतें ने कहा, आप औरों की बात कर रहे हैं। मेरी बात करिए। लाओत्से | मिलती हैं। ने कहा, वक्त आएगा; तो तुझसे मुलाकात करूंगा। इसको थोड़ा समझना पड़ेगा। स्वभाव अभ्यास से नहीं मिलता; पति मर गया। तो उन दिनों चीन में एक प्रथा थी कि पति की कब्र अभ्यास से आदतें मिलती हैं। स्वभाव तो मिला ही हुआ है। और पर गीली मिट्टी लगाते थे और उस पर थोड़ी दूब उगाते थे। और परमात्मा को पाना कोई आदत नहीं है कि आप अभ्यास कर लें। रिवाज यह था कि जब तक पति की कब्र की गीली मिट्टी सूखकर | जैसे किसी को धनुर्विद्या सीखनी हो, तो अभ्यास करना पड़ेगा। कड़ी न हो जाए और उस पर दूब पूरी छा न जाए, तब तक उस स्त्री | | क्योंकि धनुर्विद्या एक आदत है, स्वभाव नहीं। अगर न सिखाया को दूसरा विवाह-कम से कम तब तक नहीं करना चाहिए। | जाए, तो आदमी कभी भी धनुर्विद न हो सकेगा। जैसा मैंने सुबह लाओत्से ने देखा कि वह मर गया आदमी। पांच-सात दिन के | कहा, किसी को भाषा सीखनी हो, तो अभ्यास करना पड़ेगा। बाद वह कब्रिस्तान के पास से गुजरता था, तो देखा कि वह औरत क्योंकि भाषा एक आदत है, एक हैबिट है, स्वभाव नहीं है। लेकिन कब्र पर पंखा कर रही है। उसने सोचा कि यह औरत ठीक ही कहती | श्वास तो चलेगी आदमी की बिना अभ्यास के, कि उसका भी थी कि यह एक्सेप्शनल है, यह विशेष। हद! मरे हुए पति को हवा अभ्यास करना पड़ेगा! खून तो बहेगा बिना अभ्यास के, कि उसका कर रही है! आश्चर्य! लाओत्से ने कहा, मुझसे गलती हो गई। भी अभ्यास करना पड़ेगा! हड्डियां तो बड़ी होती रहेंगी बिना निश्चित गलती हो गई। जिंदा आदमियों को पत्नियां हवा नहीं अभ्यास के, कि उनका भी अभ्यास करना पड़ेगा! करतीं, मरे हुए आदमी को पत्नी हवा कर रही है! मुझसे गलती हो तो झेन फकीर कहते हैं, परमात्मा को पाना तो स्वभाव को पाना गई। यह औरत निश्चित ही विशेष है। है, इसलिए अभ्यास की कोई भी जरूरत नहीं। तो हम कह सकते लाओत्से पास गया और कहा कि देवी, मैं प्रणाम करता हूं। मुझे हैं, हम तो कोई अभ्यास कर ही नहीं रहे, तो फिर हमको परमात्मा भरोसा नहीं आया कि कोई मुर्दा पति को हवा करेगा। क्यों नहीं मिलता? झेन फकीर कहेंगे, आप नहीं कर रहे, ऐसा मत उसने कहा कि भरोसे की जरूरत नहीं है। हवा पति को नहीं कर कहिए। आप परमात्मा को खोने का अभ्यास कर रहे हैं। अभ्यास रही हूं, कब्र जल्दी सूख जाए! वह एक आदमी मेरे पीछे पड़ा है, | | आप कर रहे हैं परमात्मा को खोने का। तो झेन फकीर कहते हैं, उसके मैं प्रेम में पड़ गई हूं। और यह कब्र सूखने में देर ले रही है। | सिर्फ परमात्मा को खोने का अभ्यास मत करिए, और आप आकाश में बादल घिरे हैं; कहीं बरसा न हो जाए! परमात्मा को पा लेंगे। ऐसा है आदमी का मन! मत सोचना किसी और का! अगर किसी मगर परमात्मा को खोने का अभ्यास न करना, बहुत बड़ा और का सोचा, तो राग का अभ्यास होगा। अगर जाना कि मेरा भी, | अभ्यास है। उसमें सारा वैराग्य साधना पड़ेगा। और सारी विधियां तो विराग का अभ्यास होगा। फिर से दोहरा दूं। अगर सोचा कि और साधनी पड़ेगी। का होगा ऐसा, तो राग का अभ्यास कर रहे हैं आप। अगर सोचा कि लेकिन झेन फकीर संगत हैं। उनकी बात का अर्थ है। वे यह जोर मेरा भी ऐसा ही है, तो वैराग्य का अभ्यास होता है। देना चाहते हैं कि जब परमात्मा आपको मिल जाए, तो आप ऐसा 258
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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