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< वैराग्य और अभ्यास >
जीवन दोनों देता है आपको, वैराग्य भी और राग भी। लेकिन । राग का रास्ता वही है, जो वैराग्य का। सिर्फ आपका चेहरा उलटी राग का अभ्यास है, इसलिए राग टिक जाता है। वैराग्य का । तरफ होगा। जिन-जिन चीजों में आपने रस लिया था, उन-उन चीजों अभ्यास नहीं है, इसलिए वैराग्य नहीं टिकता है। जीवन में अंधेरा में विरस। जिन-जिन चीजों के लिए दीवाने हुए थे, उन-उन चीजों भी है, उजेला भी। राग भी, विराग भी। यहां क्रोध भी आता है, की व्यर्थता। जैसे-जैसे दौड़े थे, वैसे-वैसे विपरीत यात्रा। पश्चात्ताप भी। लेकिन क्रोध के लिए पूरा इंतजाम है, पूरी मशीनरी किस-किस चीज में रस लिया है? किस-किस चीज में रस लिया है आपके पास। पश्चात्ताप की कोई मशीनरी नहीं है। आ जाता है, है? उस-उस चीज के यथार्थ को देखना जरूरी है। क्योंकि यथार्थ चला जाता है। उसकी कोई गहरी आप पर पकड़ नहीं छूट जाती। उसके विरस को भी उत्पन्न कर देता है। किस चीज का आकर्षण है?
जीवन आपको पूरे अवसर देता है। लेकिन जिस चीज का किसी प्रियजन का हाथ बहुत प्रीतिकर लगता है, हाथ में लेने जैसा अभ्यास है, आप उसी का उपयोग कर सकते हैं। करीब-करीब लगता है। तो लेकर बैठ जाएं, लेकिन लेकर भूलें न। हाथ हाथ में ऐसा समझिए कि आप पैदल चल रहे हैं और रास्ते में आपको पड़ी| ले लें और अब थोड़ा ध्यान करें कि क्या रस मिल रहा है? सिवाय हुई कार मिल जाए, बिलकुल ठीक। जरा स्विच आन करना है कि | | पसीने के कुछ भी मिलता नहीं है। थोड़ी ही देर में मन होगा कि अब कार चल पड़े। लेकिन अगर आपका कोई अभ्यास नहीं है, तो आप | यह हाथ छोड़ना चाहिए। वैराग्य अपने आप ही आता है! पैदल ही चलते रहेंगे। और खतरा एक है कि कहीं कार का मोह लेकिन खुद के ही राग में किए गए वायदे दिक्कत देते हैं। राग पकड़ जाए, तो गले में रस्सी बांधकर, कार से बांधकर उसको | में हम कहते हैं कि तेरा हाथ हाथ में आ जाए, तो दुनिया की कोई खींचने की कोशिश करेंगे, उसमें और झंझट में पड़ेंगे। उससे तो | ताकत छुड़ा नहीं सकती। दुनिया की ताकत की बात दूर है, पैदल ही तेजी से चल लेते।
पांच-सात मिनट के बाद दुनिया की कोई ताकत दोनों के हाथ साथ 'अभ्यास जो है, वही आप कर पाएंगे। जिसका अभ्यास नहीं है, नहीं रख सकती, इकट्ठा नहीं रख सकती। पांच-सात मिनट के बाद वह आप नहीं कर पाएंगे। इसलिए कृष्ण ने वैराग्य को नंबर दो पर पसीना-पसीना ही रह जाता है! बदबू-बदबू ही छूट जाती है।
बाक पर वैराग्य आपको समझाया। कष्ण पांच-सात मिनट के बाद कोई बहाना खोजकर हाथ अलग करना के सूत्र में अभ्यास पहले और वैराग्य बाद में उन्होंने कहा है। उन्होंने | पड़ता है। कहा, जिसे अभ्यास और वैराग्य...।
जरा गौर से देखना कि जब हाथ अलग करते हैं, तब मन में वैराग्य को नंबर दो पर कृष्ण ने क्यों रखा? वैराग्य है तो प्रथम। वैराग्य का एक क्षण है। उस क्षण को थोड़ा गहरा करने की जरूरत क्योंकि वैराग्य न हो, तो अभ्यास नहीं हो सकता। लेकिन नंबर दो है, पहचानने की जरूरत है। क्योंकि नहीं तो कल फिर हाथ हाथ में पर रखने का कारण है। और वह कारण यह है कि वैराग्य तो रोज | | लेने की आकांक्षा पैदा होगी। अभी वैराग्य का क्षण है, अभ्यास कर आता है, लेकिन अभ्यास न हो तो टिक नहीं सकता। अभ्यास क्या लें। थोड़ा गौर से देखें। और दो मिनट ज्यादा लिए रहें हाथ को, हो वैराग्य का?
| और थोड़ा गौर से सोचें कि क्या दुबारा फिर हाथ को हाथ में लेने जैसे आपने कामवासना का अभ्यास किया है, वैसे ही वैराग्य की आकांक्षा पैदा करेगा मन? अगर करता हो, तो अब इस हाथ का भी अभ्यास करना पड़े। जैसे आपने राग का अभ्यास किया है, | को जिंदगीभर हाथ में ही लिए रहें! अब जल्दी क्या है? हाथ हाथ वैसे ही वैराग्य का अभ्यास करना पड़े। जिस तरह आप काम का | में है, हम रुक जाएं। मन को थोड़ा मौका दें कि वह वैराग्य को भी चिंतन करते हैं, उसी तरह निष्काम का चिंतन करना पड़े। ठीक वही पहचाने। जल्दी न करें। क्योंकि जल्दी खतरनाक है। जल्दी के बाद करना पड़े, उलटे मार्ग पर। जैसे कि आप यहां तक आए अपने घर वैराग्य थिर न हो पाएगा। से, तो जिस रास्ते से आए हैं, उसी से वापस लौटिएगा न! और तो भोजन बहुत अच्छा लग रहा है, तो खा लें जरा; खाते चले कोई उपाय नहीं है। मुझ तक जिस रास्ते से आप आए हैं, लौटते | | जाएं। फिर रुकें मत, जब तक कि प्राण संकट में न पड़ जाएं। रुकें वक्त उसी रास्ते से वापस लौटिएगा। एक ही फर्क होगा, रास्ता वही | | मत। और जरा देख लें कि इस सब स्वाद का क्या फल हो सकता होगा, आप वही होंगे, एक ही फर्क होगा कि आपका चेहरा उलटी | | है! और जब स्वाद पूरा ले चुकें, तो जब मुंह में किसी चीज को, तरफ होगा। और तो कोई फर्क होने वाला नहीं है।
| जिसकी लोग कल्पना करते हैं...। खाने वाले प्रेमी हैं...।
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