SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ << गीता दर्शन भाग-3> टाइप हैं लोगों के अलग-अलग। कुछ हैं, जिनको सब चीज छूट कोई सौदा करने जा रहा है जिसमें लाभ होने वाला है, या कोई नेता जाए, लेकिन भोजन का रस कठिनाई दे जाए। कुछ हैं, जिन्हें सब | | वोटर से वोट मांगने जा रहा है, तब उनकी टपकती हुई लार देखें! छूट जाए, लेकिन काम का रस कठिनाई दे जाए। कुछ हैं, जिन्हें तब उनके चेहरे से जो झलक रहा है, वह देखें! वह हम सबके ऊपर काम, भोजन किसी चीज की चिंता नहीं। सिर्फ अहंकार का रस है, | उतरता है वैसा ही। लेकिन जब विरक्ति का क्षण पीछे आता है, यश का। वे भूखे रह सकते हैं, जेल जा सकते हैं, लेकिन कोई पद तब? तब हम विरक्ति के क्षण को जल्दी से गुजारने की कोशिश पर बिठा दो! तो वे सब कर सकते हैं। पत्नी छोड़ सकते हैं, बच्चे करते हैं। छोड़ सकते हैं। सब जीवन भारी तपश्चर्या में गुजार सकते हैं। बस ___ अभी एक महिला मुझे मिलने आईं; उनके पति चल बसे। तो इतना ही पक्का कर दो कि कोई कर्सी पर...। और ऐसा भी जरूरी | मुझसे वे कहने लगी, हमने बहुत सुख पाया। साथ रहे। बहुत सुख नहीं है कि वे पहले ही से कहें, कुर्सी पर बिठा दो। हो सकता है, | | पाया। अब मुझे बहुत पीड़ा है, बहुत दुख है। मुझे कुछ सांत्वना उनको भी पक्का पता न हो कि कुर्सी पर बैठने के लिए जेल जा रहे | चाहिए। मैंने कहा, तुम गलत जगह आ गई हो। मैं सांत्वना नहीं हैं। चित्त बड़ा अचेतन काम करता है। लेकिन जब जेल से छूटेंगे, दूंगा। सुख तुमने पाया, सांत्वना मैं दूं? मेरा क्या कसूर है? मेरा . तब सबको पता चल जाएगा कि वे जेल किसलिए गए थे। इसमें कोई हाथ ही नहीं है। उसने कहा, नहीं-नहीं; आपका तो कोई जो त्यागी दिखाई पड़ते हैं, उनमें भी सौ में से मुश्किल से एकाध | हाथ नहीं है। लेकिन कई संतों-महात्माओं के पास इसीलिए जा रही आदमी होता है, जो वैराग्य को उपलब्ध होता है। त्याग भी हूं कि सांत्वना मिल जाए। मैंने कहा, किन्हीं ने दी? उन्होंने कहा, इनवेस्टमेंट की तरह काम करता है। इधर त्याग करते हैं, उधर कुछ बहुतों ने दी। तो मैंने कहा, फिर मेरे पास किसलिए आईं? अगर उनकी भोग की इच्छा है। लेकिन हम पहचान नहीं पाते। यह हो मिल गई. तो खतम करो अब यह बात। उसने कहा. नहीं. मिलती सकता है कि मैं गोली खाने को राजी हो जाऊं, अगर फूलमाला मेरे नहीं। मैंने कहा, मिलेगी भी नहीं। सुख तुम पाओगी, तो जब दुख ऊपर पड़ने को हो। यह हमें दिखाई नहीं पड़ेगा, कि कौन फूलमाला | | का क्षण आएगा, उसे कौन पाएगा? राग तुम भोगोगी, जब विराग पड़ने के लिए गोली अपने ऊपर डलवाएगा! यह वह आदमी कह | का क्षण आएगा, उसे कौन भोगेगा? अब तुम इस तरकीब में लगी रहा है, जिसको यश की आकांक्षा और पकड़ नहीं है। जिसको है, | हो कि तुमने राग तो भोग लिया, अब यह जो विराग की उतरती वह पूरा जीवन इस पर दांव पर लगा सकता है। धारा है, इसको कोई भुलाने की तरकीब दे दे। यह नहीं होगा। लेकिन यह जो चित्त की व्यवस्था है, इसमें जब वैराग्य का क्षण मैंने कहा, मैं तो तुमसे प्रार्थना करूंगा कि तुम एक काम करो; आता है, उस वक्त ठहरने की जरूरत है। उस अंतराल में रुकने की यह कीमती होगा। जितना पति का साथ रहना कीमती नहीं हआ. जरूरत है। तो अभ्यास की शरुआत हो जाएगी। जैसे समद्र में पानी उससे ज्यादा पति की मत्य कीमती हो सकती है। क्योंकि पति के बढ़ता है, फिर गिरता है, ठीक वैसे ही चित्त में राग आता है, फिर | साथ से कुछ मिल गया हो, ऐसा मैं नहीं मानता। तुम फिर ईमानदारी गिरता है। जब राग आता है, तब आप बड़ा इंतजाम करते हैं। और | से मुझसे कहो कि सच में सुख था? जब वैराग्य आता है, जब गिरता है राग, तब आप कुछ नहीं करते।। वह महिला थोड़ी बेचैन हुई। उसने कहा कि नहीं; कहने को तब आप कोई व्यवस्था नहीं करते कि वह विराग थिर हो जाए। उस कहते हैं। सुख तो क्या था; ठीक था, सो-सो; ऐसा ही ऐसा था! विराग को थिर करने के लिए वैराग्य के क्षणों का उपयोग करिए। मैंने कहा, और थोड़ा गौर से सोचो। क्योंकि पहले तो तुम बिलकुल और जिंदगी में जितने क्षण राग के हैं, उतने ही विराग के हैं। आश्वस्त थीं कि बहुत सुख पाया। अब तुम कहती हो, सो-सो, जितने दिन हैं, उतनी ही रातें हैं। उसमें कोई अंतर नहीं है। वह | ऐसा-ऐसा। थोड़ा और जरा भीतर जाओ। उसने कहा, लेकिन आप अनुपात बराबर है। हर राग के साथ विराग आएगा ही, इसलिए क्यों दबे हुए घाव उघाड़ना चाहते हैं? मैं नहीं उघाड़ना चाहता। मैं अनुपात बराबर है। पर उस उतरते हुए क्षण का आप उपयोग नहीं तुम्हें दिखाना चाहता हूं कि स्थिति सच में क्या है। कहीं ऐसा तो करते हैं। उसका कैसे उपयोग करें? जैसा आपने चढ़ते हुए क्षण का नहीं कि अब तुम कल्पना कर रही हो कि तुमने सुख भोगा। यह उपयोग किया था। कितना रस लिया था! कल्पना, अतीत में सुख भोगने की, वैराग्य के क्षण को गंवा दोगी। अगर कोई प्रेमी अपनी प्रेयसी से मिलने जा रहा है, या कोई धनी | | ठीक से देखो कि तुमने सुख भोगा? 256
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy