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________________ गीता दर्शन भाग-3 - है राग की असफलता में से, लेकिन उसका कोई अभ्यास न होने | __कभी आपने खयाल किया, अगर एक कमरे में दस पुरुष बैठकर से वह कहीं भी ठहर नहीं पाता; हमारे ऊपर रुक नहीं पाता; वह | | बात कर रहे हों और एक स्त्री आ जाए, तो उनके बोलने की सबकी बह जाता है। टोन फौरन बदल जाती है; वही नहीं रह जाती। बड़े मृदुभाषी, मधुर, इसलिए कृष्ण कहते हैं, वैराग्य और अभ्यास। | शिष्ट, सज्जन हो जाते हैं। क्या हो गया? क्या. हो क्या गया एक अभ्यास क्या है? वैराग्य तो इस प्रतीति का नाम है कि इस जगत स्त्री के प्रवेश से? उनको भी खयाल नहीं आएगा कि यह अभ्यास में बाहर कोई भी सुख संभव नहीं है। सुख असंभावना है। दूसरे से चल रहा है। यह अभ्यास है, बहुत अनकांशस हो गया, अचेतन किसी तरह की शांति संभव नहीं है। दूसरे से सब अपेक्षाएं व्यर्थ हो गया। इतना कर डाला है कि अब हमें पता ही नहीं चलता। हैं। इस प्रतीति को उपलब्ध हो जाना वैराग्य है। | इसकी हालत करीब-करीब ऐसी हो गई है, जैसे साइकिल पर लेकिन इस प्रतीति को हम सब उपलब्ध होते हैं, मैं आपसे कह आदमी चलता है, तो उसको घर की तरफ मोड़ना नहीं पड़ता रहा हूं। इससे आपको थोड़ी हैरानी होती होगी। हम सभी वैराग्य | हैंडिल, मुड़ जाता है। चलता रहता है, साइकिल चलती रहती है, को उपलब्ध होते हैं रोज। | जहां-जहां से मुड़ना है, हैंडिल मुड़ता रहता है। अपने घर के सामने कामवासना मन को पकड़ती है। लेकिन आपने देखा है कि आकर गाड़ी खड़ी हो जाती है। उसे सोचना नहीं पड़ता कि अब बाएं कामवासना के बाद आदमी क्या करता है? सिर्फ करवट लेकर | मुड़ें कि अब दाएं। अभ्यास इतना गहरा है कि अचेतन हो गया है। निढाल पड़ जाता है। वैराग्य पकड़ता है। साइकिल होश से नहीं चलानी पड़ती। बिलकुल मजे से वह गाना __हर कामवासना के बाद एक विषाद मन को पकड़ लेता है, एक | गाते, पच्चीस बातें सोचते, दफ्तर का हिसाब लगातें...चलता फ्रस्ट्रेशन। फिर वही! कुछ भी नहीं, फिर वही। कुछ भी नहीं, फिर रहता है। पैर पैडिल मारते रहते हैं, हाथ साइकिल मोड़ता रहता है। वही। और चित्त ग्लानि अनुभव करता है। चित्त को लगता है, यह | | यह बिलकुल अचेतन हो गया है। इतना अभ्यास हो गया कि मैं क्या कर रहा हूं! लेकिन तब आप चुपचाप करवट लेकर सो जाते अचेतन हो गया। हैं। चौबीस घंटे में फिर राग पैदा हो जाता है। कामवासना का अभ्यास इतना अचेतन है कि हमें पता ही नहीं वैराग्य को स्थिर करने का आपने कोई उपाय नहीं किया। जब होता कि जब हम कपड़ा पहनते हैं, तब भी कामवासमा का अभ्यास कामवासना व्यर्थ होती है, तब आपने उठकर ध्यान किया कुछ ? चल रहा है। जब आप आईने के सामने खड़े होकर कपड़े पहनकर तब आपने उठकर कोई अभ्यास किया कि यह वैराग्य का क्षण | देखते हैं, तो सच में आप यह देखते हैं कि आपको आप कैसे लग गहरा हो जाए! नहीं; तब आप चुपचाप सो गए। रहे हैं? या आप यह देखते हैं कि दूसरों को आप कैसे लगेंगे? और लेकिन कामवासना के लिए आप बहत अभ्यास करते हैं। राह अगर दसरों का थोडा खयाल करेंगे. तो अगर परुष देख रहा है चलते अभ्यास चलता है। फिल्म देखते अभ्यास चलता है। रेडियो | आईने में, तो दूसरे हमेशा स्त्रियां होंगी। अगर स्त्रियां देख रही हैं, सुनते अभ्यास चलता है। किताब पढ़ते अभ्यास चलता है। मित्रों | तो दोनों हो सकते हैं, पुरुष और स्त्रियां भी। क्योंकि स्त्रियों की से बात करते अभ्यास चलता है। मजाक करते अभ्यास चलता है। कामवासना ईर्ष्या से इतनी संयुक्त हो गई है, जिसका कोई हिसाब अगर कोई आदमी ठीक से जांच करे अपने चौबीस घंटे की, तो नहीं है। पुरुष होंगे कि कोई देखकर प्रसन्न हो जाए, इसलिए; और चौबीस घंटे में कितने समय वह कामवासना का अभ्यास कर रहा स्त्रियों की याद आएगी कि कोई स्त्री जल जाए, राख हो जाए, है, देखकर दंग हो जाएगा। अगर मजाक भी करता है किसी से, तो | इसलिए। मगर दोनों कामवासना के ही रूप हैं। दोनों के भीतर गहरे भीतर कामवासना का कोई रूप छिपा रहता है। में तो वासना ही चल रही है। दुनिया की सब मजाकें सेक्सुअल हैं, निन्यानबे परसेंट। यह अभ्यास चौबीस घंटे चल रहा है। तो फिर वैराग्य का जो निन्यानबे प्रतिशत मजाक सेक्स से संबंधित हैं, कामवासना से पक्षी आता है आपके पास, कोई जगह नहीं पाता जहां बैठ सके; संबंधित हैं। हंसता है, घूरकर देखता है, रास्ते पर चलता है; चलने | | व्यर्थ हो जाता है। आपने जो मकान बनाया है, वह वासना के पक्षी का ढंग, कपड़े पहनने का ढंग, उठने का ढंग, बोलने का ढंग, | | के लिए बनाया है। इसलिए सब तरफ से उसको निमंत्रण है, निवास अगर थोड़ा गौर करेंगे तो कामवासना से संबंधित पाएंगे। के लिए मौका है। 254
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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