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+ वैराग्य और अभ्यास -
सकता है कि ऐसा कोई सुख न हो, जिससे मैं अपरिचित होऊ, जिसे थे कि कल और मिल जाए, तो मैं सुख पा लूँ! ययाति ने कहा, पा लूं तो सुखी हो जाऊं! कौन कह सकता है? गाना है
| मिला कल भी, लेकिन जिन सुखों को खोजा उनसे दुख ही पाया। __ मृत्यु ने कहा, तो फिर एक उपाय है कि तुम्हारे बेटे हैं दस। एक | और अभी फिर योजनाएं मन में हैं। क्षमा कर, एक और मौका! पर
बेटा अपना जीवन दे दे तुम्हारी जगह, तो उसकी उम्र तुम ले लो। मौत ने कहा, फिर वही करना पड़ेगा। मैं लौट जाऊं। पर मुझे एक को ले जाना ही पड़ेगा। ___ इन सौ वर्षों में ययाति के नए बेटे पैदा हो गए: पुराने बेटे तो मर
बाप थोड़ा डरा। डर स्वाभाविक था। क्योंकि बाप सौ वर्ष का चुके थे। फिर छोटा बेटा राजी हो गया। ऐसे दस बार घटना घटती होकर मरने को राजी न हो, तो कोई बेटा अभी बीस का था, कोई है। मौत आती है, लौटती है। एक हजार साल ययाति जिंदा रहता है। अभी पंद्रह का था, कोई अभी दस का था। अभी तो उन्होंने और मैं कहता हं, यह तथ्य नहीं है, लेकिन सत्य है। अगर हमको भी भी कुछ भी नहीं जाना था। लेकिन बाप ने सोचा, शायद कोई उनमें | | यह मौका मिले, तो हम इससे भिन्न न करेंगे। सोचें थोड़ा मन में कि राजी हो जाए। शायद कोई राजी हो जाए। पूछा, बड़े बेटे तो राजी | मौत दरवाजे पर आए और कहे कि सौ वर्ष का मौका देते हैं, घर में न हुए। उन्होंने कहा, आप कैसी बात करते हैं! आप सौ वर्ष के कोई राजी है ? तो आप किसी को राजी करने की कोशिश करेंगे कि होकर जाने को तैयार नहीं। मेरी उम्र तो अभी चालीस ही वर्ष है। नहीं करेंगे! जरूर करेंगे। क्या दुबारा मौत आए, तो आप तब तक अभी तो मैंने जिंदगी कुछ भी नहीं देखी। आप किस मुंह से मुझसे | | समझदार हो चुके होंगे? नहीं, जल्दी से मत कह लेना कि हम कहते हैं?
समझदार हैं। क्योंकि ययाति कम समझदार नहीं था। सबसे छोटा बेटा राजी हो गया। राजी इसलिए हो गया जब हजार वर्ष के बाद भी जब मौत ने दस्तक दी तो ययाति वहीं था बाप से उसने कहा कि मैं राजी हं. तो बाप भी हैरान हआ। ययाति जहां पहले सौ वर्ष के बाद था। मौत ने कहा, अब क्षमा करो। किसी ने कहा, सब नौ बेटों ने इनकार कर दिया, तू राजी होता है। क्या चीज की सीमा भी होती है। अब मुझसे मत कहना। बहुत हो गया! तुझे यह खयाल नहीं आता कि मैं सौ वर्ष का होकर भी मरने को | | ययाति ने कहा, कितना ही हुआ हो, लेकिन मन मेरा वहीं है। कल राजी नहीं, तेरी उम्र तो अभी बारह ही वर्ष है!
अभी बाकी है, और सोचता हूं कि कोई सुख शायद अनजाना बचा उस बेटे ने कहा, यह सोचकर राजी होता हूं कि जब सौ वर्ष में | हो, जिसे पा लूं तो सुखी हो जाऊं! भी तुमने कुछ न पाया, तो व्यर्थ की दौड़ में मैं क्यों पडूं! जब मरना __अनंत काल तक भी ऐसा ही होता रहता है। तो फिर वैराग्य पैदा ही है और सौ वर्ष के समय में भी मरकर ऐसी पीड़ा होती है, जैसी | नहीं होगा। अगर एक राग व्यर्थ होता है और आप तत्काल दूसरे तुमको हो रही है, तो मैं बारह वर्ष में ही मर जाऊं। अभी कम से | | राग की कामना करने लगते हैं, तो राग की धारा जारी रहेगी। एक कम विषाद से तो बचा हूं। अभी मैंने दुख तो नहीं जाना। सुख नहीं | | राग का विषय टूटेगा, दूसरा राग का निर्मित हो जाएगा। दूसरा जाना, दुख भी नहीं जाना। मैं जाता हूं।
| टूटेगा, तीसरा निर्मित हो जाएगा। ऐसा अनंत तक चल सकता है। फिर भी ययाति को बुद्धि न आई। मन का रस ऐसा है कि उसने ऐसा अनंत तक चलता है। वैराग्य कब होगा? कल की योजनाएं बना रखी थीं। बेटे को जाने दिया। ययाति और वैराग्य उसे होता है, जो एक राग की व्यर्थता में समस्त रागों की सौ वर्ष जीया। फिर मौत आ गई। ये सौ वर्ष कब बीत गए, पता व्यर्थता को देखने में समर्थ हो जाता है। जो एक सख के गिरने में नहीं। ययाति फिर भूल गया कि मौत आ रही है। कितनी ही बार | समस्त सुखों के गिरने को देख पाता है। जिसके लिए कोई भी मौत आ जाए, हम सदा भूल जाते हैं कि मौत आ रही है। हम सब | फ्रस्ट्रेशन, कोई भी विषाद अल्टिमेट, आत्यंतिक हो जाता है। जो बहुत बार मर चुके हैं। हम सब के द्वारों पर बहुत बार मौत दस्तक | मन के इस राज को पकड़ लेता है जल्दी ही कि यह धोखा है। क्यों? दे गई है।
क्योंकि कल मैंने जिसे सुख कहा था, वह आज दुख हो गया। आज ययाति के द्वार पर दस्तक हुई। ययाति ने कहा, अभी! इतने | | जिसे सुख कह रहा हूं, वह कल दुख हो जाएगा। कल जिसे सुख जल्दी! क्या सौ वर्ष बीत गए? मौत ने कहा, इसे भी जल्दी कहते | | कहूंगा, वह परसों दुख हो जाएगा। जो इस सत्य को पहचानने में हैं आप! अब तो आपकी योजनाएं पूरी हो गई होंगी? समर्थ हो जाता है, जो इतना इंटेंस देखने में समर्थ है, जो इतना गहरा
ययाति ने कहा, मैं वहीं का वहीं खड़ा हूं। मौत ने कहा, कहते देख पाता है जीवन में...।
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