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4 गीता दर्शन भाग-3
प्रश्नः भगवान श्री, सुबह के श्लोक में चंचल मन को राग नहीं है, जिसके प्रति हम रोज विकर्षण से नहीं भर जाते। प्रत्येक शांत करने के लिए अभ्यास और वैराग्य पर गहन राग के पीछे खाई छूट जाती है विषाद की; प्रत्येक राग के पीछे चर्चा चल रही थी, लेकिन समय आखिरी हो गया पश्चात्ताप गहन हो जाता है। लेकिन तब ऐसा नहीं कि हम विराग था, इसलिए पूरी बात नहीं हो सकी। तो कृपया | की तरफ चले जाते हों, तब सिर्फ इतना ही होता है कि हम नए राग अभ्यास और वैराग्य से कृष्ण क्या गहन अर्थ लेते हैं, | की खोज में निकल जाते हैं। इसकी व्याख्या करने की कृपा करें।
वैराग्य कोई नई घटना नहीं है। एक स्त्री से विरक्त हो जाना सामान्य घटना है। लेकिन स्त्री से विरक्त हो जाना बहुत असामान्य
घटना है। एक सुख की व्यर्थता को जान लेना सामान्य घटना है, - गहै संसार की यात्रा का मार्ग संसार में यात्रा का लेकिन सुख मात्र की व्यर्थता को जान लेना बहत असामान्य घटना रा मार्ग। वैराग्य है संसार की तरफ पीठ करके स्वयं के है। और असामान्य इसीलिए है कि हमारे हाथ में एक ही सुख होता
__ घर की ओर वापसी। राग यदि सुबह है, जब पक्षी है एक बार में। एक सुख व्यर्थ हो जाता है, तो तत्काल मन कहता घोंसलों को छोड़कर बाहर की यात्रा पर निकल जाते हैं, तो वैराग्य है कि नए सुख का निर्माण कर लो; दूसरे सुख की खोज में निकल सांझ है, जब पक्षी अपने नीड़ में वापस लौट आते हैं। जाओ। ठहरो मत; यात्रा जारी रखो। यह सुख व्यर्थ हुआ, तो
वैराग्य को पहले समझ लें, क्योंकि जिसे वैराग्य नहीं, वह जरूरी नहीं कि सभी सुख व्यर्थ हों! अभ्यास में नहीं जाएगा। वैराग्य होगा, तो ही अभ्यास होगा। ययाति की बहुत पुरानी कथा है, जिसमें ययाति सौ वर्ष का हो वैराग्य होगा, तो हम विधि खोजेंगे—मार्ग, पद्धति, राह, गया। बहुत मीठी, बहुत मधुर कथा है। तथ्य न भी हो, तो भी सच टेक्नीक—कि कैसे हम स्वयं के घर वापस पहुंच जाएं? कैसे हम है। और बहुत बार जो तथ्य नहीं होते, वे भी सत्य होते हैं। और लौट सकें? जिससे हम बिछुड़ गए, उससे हम कैसे मिल सकें? बहुत बार जो तथ्य होते हैं, वे भी सत्य नहीं होते। जिसके बिछुड़ जाने से हमारे जीवन का सब संगीत छिन गया, यह ययाति की कथा तथ्य नहीं है, लेकिन सत्य है। सत्य इसलिए जिसके बिछुड़ जाने से जीवन की सारी शांति खो गई, जिसके कहता हूं कि उसका इंगित सत्य की ओर है। तथ्य नहीं है इसलिए बिछुड़ जाने से, खोजते हैं बहुत, लेकिन उसे पाते नहीं; उस आनंद | | कहता हूं कि ऐसा कभी हुआ नहीं होगा। यद्यपि आदमी का मन को किस विधि से, किस मेथड से हम पाएं? यह तो तभी सवाल | ऐसा है कि ऐसा रोज ही होना चाहिए। उठेगा, जब वैराग्य की तरफ दृष्टि उठनी शुरू हो जाए। तो पहली ___ ययाति सौ वर्ष का हो गया, उसकी मृत्यु आ गई। सम्राट था। तो बात, वैराग्य को समझें, फिर हम अभ्यास को समझेंगे। सुंदर पत्नियां थीं, धन था, यश था, कीर्ति थी, शक्ति थी, प्रतिष्ठा __ वैराग्य का अर्थ है, राग के जगत से वितृष्णा, फ्रस्ट्रेशन। थी। मौत द्वार पर आकर दस्तक दी। ययाति ने कहा, अभी आ गई? जहां-जहां राग है, जहां-जहां आकर्षण है, वहां-वहां विकर्षण पैदा | अभी तो मैं कुछ भोग नहीं पाया। अभी तो कुछ शुरू भी नहीं हुआ हो जाए। जो चीज खींचती है, वह खींचे नहीं, बल्कि विपरीत हटाने था! यह तो थोड़ी जल्दी हो गई। सौ वर्ष मुझे और चाहिए। मृत्यु ने लगे। जो चीज बुलाती है, बुलाए नहीं, बल्कि द्वार बंद कर ले। कहा, मैं मजबूर हूं। मुझे तो ले जाना ही पड़ेगा। ययाति ने कहा, मालूम पड़े कि द्वार बंद कर लिया, और द्वार में प्रवेश से इनकार कोई भी मार्ग खोज। मुझे सौ वर्ष और दे। क्योंकि मैंने तो अभी तक कर दिया।
कोई सुख जाना ही नहीं। विकर्षण हम सभी को होता है। अगर ऐसा मैं कहूं, तो आप थोड़े मृत्यु ने कहा, सौ वर्ष आप क्या करते थे? ययाति ने कहा, जिस हैरान होंगे कि हम सभी रोज वैराग्य को उपलब्ध होते हैं। लेकिन | सुख को जानता था, वही व्यर्थ हो जाता था। तब दूसरे सुख की खोज वैराग्य को उपलब्ध होकर हम अभ्यास की तरफ नहीं जाते। वैराग्य | | करता था। खोजा बहुत, पाया अब तक नहीं। सोचता था, कल की को उपलब्ध होकर, पुराने राग तो गिर जाते हैं, हम नए राग के योजना बना रहा था। तेरे आगमन से तो कल का द्वार बंद हो जाएगा। निर्माण में लग जाते हैं।
अभी मुझे आशा है। मृत्यु ने कहा, सौ वर्ष में समझ नहीं आई। आशा हम सभी वैराग्य को उपलब्ध होते हैं, रोज, प्रतिदिन। ऐसा कोई अभी कायम है? अनुभव नहीं आया? ययाति ने कहा, कौन कह
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