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________________ मन का रूपांतरण तो रास्ता, नेता ने कहा कि सूत्र सरल है। जिस तरकीब से मैं जाता रहा, वही तरकीब तू भी उपयोग कर। क्योंकि वह अनुभव में लाई गई तरकीब है। तरकीब उसने बता दी कि जब अमीर कोई दिखाई पड़े, अमीर कुत्ता...! कुत्तों में भी अमीर और गरीब होते हैं। अमीर कुत्ता आपने देखा होगा ; कार में भी चलता है; सुंदरतम स्त्रियों की गोद में भी बैठता है; शानदार गलीचों पर विश्राम भी करता है। आदमी को रोटी न मिले, उसको तो विशेष भोजन मिलता है। वह अमीर कुत्ता है। तो उसने कहा, जब अमीर कोई कुत्ता दिखे, तो कहना कि सावधान। गरीब कुत्ते इकट्ठे हो रहे हैं; तुम्हारे लिए खतरा है। मैं तुम्हारी रक्षा कर सकता हूं। और जब कोई गरीब कुत्ता दिखे, तो फौरन कहना कि मर जाओगे। लूटे जा रहे हो। शोषण किया जा रहा है। लाल झंडा हाथ में लो। मैं तुम्हारा नेता हूं। इन अमीरों को ठीक करना जरूरी है। और जब तक — जैसा कि अहमदाबाद की सड़कों पर मैंने दो-चार जगह लिखा देखा : जनता जागे, सेठिया भागे – उसने कहा होगा, कुत्ते जागे, सेठिया भागे। तैयार हो जाओ! पर उस कुत्ते ने कहा कि महाराज, यह तो ठीक है। लेकिन अमीर और गरीब कुत्ते दोनों साथ मिल जाएं, तो मैं क्या करूं? तो कहना, मैं सर्वोदयी हूं। मैं सबके उदय में विश्वास करता हूं। गरीब का भी उदय हो, अमीर का भी उदय हो। सूरज पूरब से भी निकले, पश्चिम से भी साथ निकले। हम सर्वोदयी हैं। सूत्र पूरा हो गया । कुत्ते ने प्रचार शुरू कर दिया। और नेता ने कहा, ध्यान रखना, जोर से बोले चले जाना। कुत्ते ने कहा, यह तो अभ्यास है हमारा। इसमें कोई चिंता न करें। इसमें हम नेताओं को मात दे देते हैं। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। हम चिल्लाते रहेंगे। नेता ने कहा, अगर चिल्लाते रहे, तो दिल्ली पहुंच जाओगे । बस, चिल्लाने में कुशलता चाहिए। इसकी फिक्र मत करना कि क्या चिल्ला रहे हो। जोर से चिल्ला रहे हो, इसका खयाल रखना। दूसरे को दबा देना चिल्लाने में, बस ! कुत्ते ने शुरू कर दिया काम | महीने पंद्रह दिन में उसने काशी के कुत्तों को राजी कर लिया । नेता से कहा कि अब मैं जाता हूं। आप वहां खबर करवा दें दिल्ली में कि मैं आ रहा हूं। ठहरने का इंतजाम, सब व्यवस्था करवा दें। कितनी देर लगेगी, नेता ने पूछा, तेरे पहुंचने में? कुत्ते ने कहा कि कुत्ते की चाल से जाऊंगा; और सर्वोदयी कहकर फंस गया । तो वे कुत्ते कह रहे हैं, पैदल जाओ। झंझट हो गई। वे कहते हैं, सर्वोदयी, पैदल जाओ, पदयात्रा करो ! फंस गया झंझट में; नहीं तो ट्रेन में निकल जाता। अब तो पैदल ही जाना पड़ेगा। कम से कम महीनाभर लग जाएगा। खबर कर दी गई। दिल्ली के कुत्ते बड़े प्रसन्न हुए। काशी का | कुत्ता आता है; धर्मतीर्थ से आता है। जरूर कुछ ज्ञान लेकर आता | होगा! काम पड़ेगा। लेकिन बड़ी मुश्किल तो यह हुई कि एक महीने के बाद उन्होंने स्वागत का इंतजाम किया, द्वार - दरवाजे बनाए । लेकिन कुत्ता सात ही दिन में पहुंच गया। वे तो इंतजाम कर रहे थे एक महीने बाद का, कुत्ता सात दिन में दिल्ली पहुंच गया। बड़े चकित हुए। उन्होंने कहा, बिलकुल समझ नहीं तुम्हें। बेवक्त आ गए। हम सब इंतजाम किए थे। मेयर को राजी किए थे। फूलमाला पहनवाते । यह तुमने क्या किया ! सब विरोधी पार्टी के नेताओं को इकट्ठा कर | रहे थे कि फूलमाला पहनाते । तुम यह क्या किए? इतनी जल्दी आ गए बेवक्त। कोई तैयारी नहीं है। उस कुत्ते ने कहा कि मैं क्या कर सकता हूं? काशी से निकला; एक मिनट रुक नहीं सका कहीं । जिस गांव में पहुंचा, उसी गांव के कुत्ते इस बुरी तरह पीछे लग जाते कि मैं जान बचाकर गांव के बाहर होता। वे दूसरे गांव के बाहर तक जब तक मुझे छोड़ते, तब तक दूसरे गांव के कुत्ते मेरे पीछे लग जाते। मैं ठहरा ही नहीं, रुका ही नहीं, विश्राम नहीं किया। बस, भागता ही चला आ रहा हूं! और कहते हैं, इतना ही कहकर वह कुत्ता मर गया, क्योंकि इतना थक 247 गया था। दिल्ली आमतौर से कब्र बनती है पहुंचने वालों की। बड़ी कब्र है। दौड़-दौड़कर किसी तरह पहुंचते हैं वहां ; गिरकर मर जाते हैं। शायद मरने के लिए पहुंचते हैं या किसलिए पहुंचते हैं, कुछ कहना कठिन है। मर गया वह कुत्ता । पर एक राज की बात बता गया कि ठहर नहीं पाया कहीं; दौड़ाते ही रहे लोग । हम भी एक-एक आदमी के मन को बचपन से दौड़ा रहे हैं। सब मिलकर दौड़ा रहे हैं । सब मिलकर दौड़ा रहे हैं। बाप दौड़ा रहा है कि नंबर एक आओ। मां दौड़ा रही है कि क्या कर रहे हो, बगल | के पड़ोसी का लड़का देख रहे हो ? स्पोर्ट्स में नंबर एक आ गया। मां-बाप किसी तरह पीछा छोड़ेंगे, तो एक पत्नी उपलब्ध होगी। वह कहेगी, दौड़ो । देखते हो, बगल का मकान बड़ा हो गया । बगल की पत्नी के पास हीरों की चूड़ियां आ गईं। तुम देखते रहोगे ऐसे ही बैठे दौड़ो । किसी तरह दौड़-दाड़कर और थोड़ी उम्र गुजारता | है, तो बच्चे पैदा हो जाते हैं। वे कहते हैं कि क्या बाप मिले तुम
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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