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________________ गीता दर्शन भाग-3 भी! न घर में कार है, न टेलीविजन सेट है। कुछ भी नहीं है। बड़ी इसलिए वैराग्य की शर्त पीछे जोड़ दी कि वैराग्य की भावना हो, दीनता मालूम होती है। इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स पैदा हो रहा है | तो फिर ऐसी विधियां हैं, जिनके अभ्यास से आदमी मन को विश्राम हममें, स्कूल जाते हैं तो। दौड़ो। को पहुंचा सकता है। पूरी शिक्षा, पूरा समाज, पूरी व्यवस्था दौड़ने के एक ढांचे में ___संध्या हम वैराग्य के संबंध में और अभ्यास के संबंध में थोड़ी ढली हुई है। दिल्ली पहुंचो। दौड़ो, चाहे जान चली जाए, कोई फिक्र गहरी छान-बीन करेंगे। अभी तो पांच-सात मिनट के लिए सब राग नहीं। दौड़ते रहो। ठहरना भर मत। छोड़कर, एक पांच-सात मिनट कीर्तन के वैराग्य में क्योंकि अगर इतने सारे अभ्यास में आदमी का मन ठहरने का स्थान नहीं कीर्तन कहीं ले जाएगा नहीं। पाता, किसी विश्रामगृह में नहीं रुक पाता, भागता ही चला जाता एक युवक मेरे पास आया था। वह पूछ रहा था, कीर्तन से है; तो अगर अर्जुन एक दिन कह रहा है कृष्ण से कि यह मन बड़ा फायदा क्या होगा? सोचते हैं आप, वह पूछता है, कीर्तन से फायदा भागने वाला है, यह रुकता नहीं क्षणभर को, तो ठीक ही कह रहा क्या होगा? है। हम सब का मन ऐसा है। फायदा! फायदे की भाषा में जो सोचता है, वह कीर्तन नहीं कर लेकिन कृष्ण कहते हैं, यह मन का ढंग सिर्फ एक संस्कारित पाएगा। कीर्तन से फायदा होता है, लेकिन उसी को, जो फायदे की व्यवस्था है। अभ्यास से इसे तोड़ा जा सकता है। अभ्यास से नई भाषा छोड़ देता है। कीर्तन तो वैराग्य के मन की दशा है। और व्यवस्था दी जा सकती है। और वैराग्य से! क्यों? वैराग्य को क्यों | कीर्तन एक अभ्यास भी है; एक अभ्यास मन को ठहराने का। शरीर जोड़ दिया? क्या अभ्यास काफी न था? अभ्यास की विधि बता नाचेगा। शब्द वाणी से निकलेंगे। और भीतर कोई बिलकुल ठहरा देते कि इससे बदल जाओ। | रहेगा। नाच के बीच कोई बिलकुल ठहरा रहेगा। वैराग्य इसलिए जोड़ दिया कि अगर वैराग्य न हो, तो आप | आप भी साथ दें। साथ देंगे, तो ही अनुभव हो पाएगा। और विधियों का उपयोग न करेंगे। क्योंकि राग दौड़ाने की व्यवस्था है। | संकोच न करें, छोटे-से संकोच व्यर्थ ही बाधा डाल देते हैं। देखते राग के बिना कोई दौड़ता नहीं है। दिल्ली कोई ऐसे ही वैराग्य भाव | | हैं कि कहीं पड़ोस का आदमी क्या सोचने लगे! वह पहले ही से से नहीं दौड़ता। राग, कुछ उपलब्धि की आकांक्षा, कुछ पाने का | आपके बाबत बहुत अच्छा नहीं सोचता है। आप बिलकुल बेफिक्र खयाल दौड़ाता है। कोई लक्ष्य, कोई राग दौड़ाता है। रहें। तो राग चंचल होने का आधार है, तो वैराग्य विश्राम का आधार बनेगा। अभी हम सब राग में जीते हैं। हमारा पूरा समाज राग से भरा है। हमारी पूरी शिक्षा, समाज की व्यवस्था, परिवार, संबंध-सब राग पर खड़े हैं। इसलिए हम सब दौड़ते हैं। राग बिना दौड़े नहीं फलित हो सकता। राग यानी दौड़। चंचलता का बुनियादी आधार राग है। इसलिए ठहराव का बुनियादी आधार वैराग्य होगा। तो वैराग्य की शर्त जरूरी है, नहीं तो आप ठहरने को राजी नहीं होंगे। आप कहेंगे, ठहरकर मर जाएंगे। पड़ोसी तो ठहरेगा नहीं, वह तो दौड़ता रहेगा। आप मुझसे ही क्यों कहते हैं कि ठहर जाओ? अगर मैं ठहर गया, तो दूसरा तो ठहरेगा नहीं; वह पहुंच जाएगा! __जब तक आपको कहीं पहुंचने का राग है, जब तक कुछ पाने का राग है, तब तक मन अचंचल नहीं हो सकता, चंचल रहेगा। इसमें मन का क्या कसूर है! आप राग कर रहे हैं, मन दौड़ रहा है। मन आपकी आज्ञा मान रहा है। |248
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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