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गीता दर्शन भाग-3
बर्फ बन जाता है। जो बर्फ था, वह पानी बन जाता है। जो पानी था, शरीर की गर्दन काट दे। प्रेमी अपने को मार डाल सकता है। प्रेम वह भाप बन जाता है। जो अभी पहाड़ पर जमा था, वह समुद्र में | | इतना हो सकता है गहन कि शरीर को तोड़ दे, जीवन को नष्ट कर पिघलकर बह जाता है। जो अभी शरीर था, वह कल खाद बन दे। तो वह प्रेम नहीं है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। वह है तो है ही। जाता है। जो अभी खाद है, वह कल शरीर बन जाता है। जो अभी | और कभी-कभी तो जीवन से भी ज्यादा वजनी हो जाता है। लेकिन पौधे में बीज की तरह प्रकट हुआ है, वह कल आपका खून बन | वह है क्या? जाता है। जो अभी आपके भीतर खून है, कल जमीन में समाकर | | वह संबंध है, रिलेशनशिप है। संबंध की एक खूबी है कि वह फिर किसी बीज में प्रवेश कर जाएगा। सब रूपांतरण हैं; लेकिन खो सकता है; बन भी सकता है, मिट भी सकता है। . मूल नहीं खोता है। मूल थिर है।
__इसलिए अर्जुन का यह खयाल कि वायु की तरह है यह मन, आइंस्टीन का खयाल स्वीकृत हुआ है, और वह यह कि इस | । ठीक नहीं है। उदाहरण करीब-करीब सूचक है, लेकिन ठीक नहीं जगत में जितनी वस्तु है, जितना मैटर है, वह सीमित है। क्योंकि है। प्रामाणिक नहीं है। जमता है, फिर भी बहुत गहरे में नहीं जमता उसमें नया नहीं जुड़ सकता और पुराना घट भी नहीं सकता। वह है। मन एक संबंध है। कितना ही विराट हो, लेकिन पदार्थ सीमित है। हम नाप पाएं कि न | | और यह भी बात अर्जुन की ठीक नहीं है-हम सबके मन में हैं नाप पाएं: हमारे नापने के साधन छोटे पड़ जाएं, लेकिन पदार्थ ये बातें, इसलिए मैं कह रहा हूं--यह भी बात अर्जुन की ठीक नहीं सीमित है, क्योंकि उसमें नया एडीशन नहीं हो सकता। एक पानी | | है कि इस मन को थिर नहीं किया जा सकता। क्योंकि एक और की बूंद ज्यादा नहीं जोड़ी जा सकती इस जगत में!
| गहरे नियम की आपको मैं बात कर दं, जो भी चीज चंचल हो आप कहेंगे, हम हाइड्रोजन और आक्सीजन को मिलाकर पानी | सकती है, वह थिर हो सकती है। और जो चीज थिर नहीं हो सकती, बना सकते हैं। बिलकुल बना सकते हैं। लेकिन हाइड्रोजन | वह चंचल भी नहीं हो सकती। जो भी दौड़ सकता है, वह खड़ा हो आक्सीजन को ही मिलाकर बना सकते हैं। वह हाइड्रोजन सकता है। और जो खड़ा भी नहीं हो सकता, वह दौड़ भी नहीं आक्सीजन का एक रूप है। वह कोई नई घटना नहीं है। आज तक सकता। अगर आप दौड़ सकते हैं, तो आप खड़े हो सकते हैं। एक रेत का टुकड़ा भी हम नया नहीं बना सकते हैं। न बना सके हैं | दौड़ने की क्षमता साथ में ही खड़े होने की क्षमता भी है। भला आप और न बना सकेंगे।
कभी खड़े न हुए हों, दौड़ते ही रहे हों, और अब ऐसी आदत बन पदार्थ जैसा है, है। जितना है, है। उतना ही है, उतना ही रहेगा। गई हो कि आपको खयाल ही न आता हो कि खड़े कैसे होंगे। बन लेकिन संबंध रोज नए बन सकते हैं, और रोज खो जा सकते हैं। जाता है।
इस जमीन पर जितने लोग रहे हैं, उनके शरीरों में जितना था, मैंने सुना है कि एक आदमी पक्षाघात से, पैरालिसिस से परेशान वह सब अभी इस जमीन में मौजूद है; जमीन का वजन कम-ज्यादा है दस साल से। घर के भीतर बंद पड़ा है; उठ नहीं सकता। लेकिन नहीं होता। हम कितने ही लोग पैदा हों, मर जाएं, जमीन का वजन एक दिन रात, आधी रात अंधेरे में आग लग गई। सारे घर के लोग
ही रहता है। हम जब जिंदा रहते हैं, तब भी उतना रहता है; बाहर निकल गए। वह पैरालिसिस से करीब-करीब मरा हुआ जब मर जाते हैं, तब भी जमीन का वजन उतना ही रहता है। हमारे आदमी, वह भी दौड़कर बाहर आ गया। जब वह दौड़कर बाहर शरीर में से कुछ खोता नहीं। हां, जमीन में गिर जाता है, रूप बदल | आया, तो लोग चकित हुए। वे तो हैरान थे कि अब क्या होगा, जाते हैं।
उसको निकाला नहीं जा सकता। लेकिन जब उसको लोगों ने दौड़ते लेकिन हमारे संबंधों का क्या होता है? कोई प्रेम किया था। कोई देखा, तो मकान की आग तो भूल गए लोग। दस साल से वह फरिहाद किसी शीरी को प्रेम किया था। उस प्रेम का क्या हुआ? | आदमी हिला नहीं था, वह दौड़ रहा है। जब वह प्रेम चल रहा था, तब भी जमीन पर कोई चीज बढ़ी नहीं | | लोगों ने कहा, यह क्या हो रहा है। चमत्कार, मिरेकल! आप, थी, और जब वह प्रेम नहीं है, तब भी जमीन पर कोई चीज घटी और दौड़ रहे हैं। उस आदमी ने नीचे झांककर अपने पैर देखे। उसने नहीं है। वह प्रेम क्या था? वह चला है, यह निश्चित है। क्योंकि कहा, मैं दौड़ कैसे सकता हूं! वापस गिर गया। मैं दौड़ ही कैसे वह प्रेम इतना बड़ा भी हो जाता है कभी कि कोई अपने पदार्थगत | सकता हूं? दस साल से...!
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