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मन का रूपांतरण
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के बीच जो मैत्री हो गई है, उसका नाम मन है। शरीर और आत्मा | | है। उपमा में भूलें अक्सर हो जाती हैं। मन पदार्थ नहीं है, इसलिए के बीच जो राग है, उसका नाम मन है। शरीर और आत्मा के बीच | वायु जैसा नहीं है। इसलिए वायु तो किसी दिन पकड़ ली जाएगी, जो लेश्या है, उसका नाम मन है। शरीर और आत्मा के बीच जो | पकड़ ली गई; मन को किसी भी दिन नहीं पकड़ा जा सकेगा। संबंध संबंध है, रिलेशनशिप है, उसका नाम मन है।
को पकड़ने का कोई उपाय नहीं है। इसीलिए विज्ञान मन को मानने निश्चित ही, यह संबंध शरीर की तरफ से आत्मा की तरफ नहीं तक को राजी नहीं है। उसका कारण है कि उसकी लेबोरेटरी में, हो सकता, क्योंकि शरीर जड़ है। अगर मैं अपनी कार को प्रेम करने उसकी प्रयोगशाला में कहीं भी मन पकड़ा नहीं जा सकता। लगता हूं, तो भी मैं यह नहीं कह सकता कि मेरी कार मुझे प्रेम एक आदमी को काटकर, विज्ञान सब तरफ से डिसेक्ट करके करती है। कार की तरफ से मेरी तरफ कोई प्रेम नहीं हो सकता। | खोज लेता है। हड्डी मिलती है, मांस मिलता है, मज्जा मिलती है, इकतरफा है; वन वे ट्रैफिक है।
खून मिलता है, पानी मिलता है, लोहा, तांबा सब मिलता है। एक तो संबंध में भी एक बात खयाल रख लेना कि जब दो व्यक्तियों चीज नहीं मिलती, मन। इसलिए विज्ञान कहता है, हमने खोज के बीच मैत्री होती है, तो टू वे ट्रैफिक, डबल ट्रैफिक है। यहां से करके देख लिया, मन नहीं मिलता। और जो नहीं मिलता है, वह भी कुछ जाता है, वहां से भी कुछ आता है। लेकिन जब एक व्यक्ति | नहीं है। वही भूल तर्क की फिर हो रही है। क्योंकि जो नहीं मिलता, और एक वस्तु के बीच संबंध होता है, तो वन वे ट्रैफिक है। एक | | जरूरी नहीं है कि नहीं हो। हो सकता है, खोजने का ढंग ऐसा है ही तरफ से जाता है; दूसरी तरफ से कुछ आता नहीं।
कि वह नहीं मिल सकता। तो संबंध भी यह इस तरह का है, जैसा कि एक व्यक्ति और अगर आपके हृदय की काट-पीट करके हम खोजें कि प्रेम है या वस्तु के बीच होता है; दो व्यक्तियों के बीच नहीं। एक तरफ चेतना नहीं; और न मिले-नहीं मिलेगा; अब तक नहीं मिला। कभी नहीं है भीतर, और दूसरी तरफ पदार्थ है शरीर। चेतना की तरफ से ही मिलेगा। फेफड़ा खोलकर पूरा देख लेंगे। फुफ्फुस मिलेगा, हवा यह संबंध है।
को फेंकने का यंत्र मिलेगा। प्रेम-प्रेम नहीं मिलेगा। और ध्यान रहे, इकतरफा संबंध में एक सुविधा है, उसे तोड़ने | ___ इसलिए वैज्ञानिक कहते हैं कि फेफड़ा है, हृदय है ही नहीं। में सदा ही इकतरफा निर्णय काफी होता है। दो तरफा संबंध तोड़ने नाहक हृदय-हृदय की लोग बातें किए जा रहे हैं! एक कविता है में कठिनाई है। अगर मैं किसी व्यक्ति को प्रेम करूं, तो झंझट है हृदय, यह है नहीं। तोड़ते वक्त; क्योंकि दूसरी तरफ से भी कुछ लेन-देन हुआ है। लेकिन क्या आप मानने को राजी होंगे कि प्रेम नहीं है? सबका
और जब तक दोनों राजी न हो जाएं तोड़ने को, तब तक तोड़ने में | अनुभव है कि है। मां जानती है कि है। बेटा जानता है कि है। मित्र कठिनाई है, अड़चन है।
जानते हैं कि है। प्रेमी जानते हैं कि है। वस्तु के साथ संबंध तोड़ने में कोई भी अड़चन नहीं है, क्योंकि । अनुभव में सबके है प्रेम, लेकिन फिर भी प्रयोगशाला में सिद्ध इकतरफा है। मेरा ही निर्णय था कि संबंधित हूं। मेरा ही निर्णय है नहीं होगा। और अगर प्रयोगशाला के वैज्ञानिक से आपने जिद्द की, कि संबंधित नहीं है, बात समाप्त हो गई। वस्तु जाकर किसी तो आप ही गलत सिद्ध होंगे। असल में प्रयोगशाला जिन साधनों अदालत में मुकदमा नहीं करेगी कि यह आदमी मुझे डायवोर्स कर का उपयोग कर रही है, वे वस्तुओं के पकड़ने के साधन हैं, उनसे रहा है, कि यह तलाक मांगता है। वस्तु को कोई प्रयोजन नहीं है। संबंध पकड़ में नहीं आते। संबंध छूट जाते हैं। जब मेरा संबंध था, तब भी वस्तु का कोई संबंध मुझसे नहीं था। संबंध वस्तु नहीं है। और इसलिए संबंध की एक खूबी है कि
इसलिए ध्यान रखें कि मन एक संबंध है, पहली बात, वस्तु | | संबंध बन सकता है और विनष्ट हो सकता है। संबंध शून्य से पैदा नहीं। दूसरी बात, मन इकतरफा संबंध है-चेतना का शरीर की होता है और शून्य में विलीन हो जाता है। तरफ; शरीर से चेतना की तरफ नहीं। शरीर की तरफ से चेतना की इस बात को ठीक से समझ लें। तरफ कोई संबंध की धारा ही नहीं है। सारी धारा चेतना से शरीर की वस्तु कभी भी पैदा नहीं होती; वस्तु सदा है। और कभी नष्ट तरफ है।
नहीं होती; सदा है। न तो वस्तु का कोई सजन होता है और न कोई इसलिए अर्जुन जब कहता है, वायु जैसा है, तो कई भूलें करता विनाश होता है; सिर्फ रूपांतरण होता है। जो अभी पानी था, वह
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