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सर्व भूतों में प्रभु का स्मरण -
ही था, जानता ही था। लेकिन चूक गया भजन एक क्षण को। मैं और थोड़ा खोदते, और थोड़ा खोदते, तो एक जगह आ जाती, जहां परमात्मा तुझ में नहीं देख पाया, तेरा फेंकना ही मुझे पहले दिखाई | पानी है ही। लेकिन पहले पानी हाथ नहीं लगता। पहले तो पड़ गया, यद्यपि फूल था। मैं तेरे फूल की वजह से नहीं रो रहा हूं; कंकड़-पत्थर हाथ लगते हैं। अब कंकड़-पत्थर से कोई भरोसा मेरा भजन चूक गया, उसकी वजह से रो रहा हूं। तुझसे अपेक्षा न | नहीं मिलता है कि आगे पानी होगा। कंकड़-पत्थर से क्या संबंध थी कुछ फेंकने की। कभी सोचा भी नहीं था, इसलिए चूक गया। है पानी का? लेकिन प्रभु को धन्यवाद कि उसने आखिरी क्षण में तुझसे एक फूल लेकिन आदमी खोदता है। फिर थोड़ी-सी जमीन तर मिलती है; फिंकवा दिया, तो मुझे पता चल गया कि मुझमें भी अभी कमी है। थोड़ी-सी पानी की झलक दिखाई पड़नी शुरू होती है। लगता है मेरा भजन पूरा नहीं है।
कि अब जमीन गीली होने लगी। आशा बढ़ जाती है, सामर्थ्य बढ़ इसलिए कोई कभी ऐसा न समझ ले अपने को कि भजन पूरा हो जाती है, हिम्मत बढ़ जाती है, और हुंकार करके आदमी खोदने में गया। सतत जारी रखना ही पड़ेगा। जब तक दूसरा दिखाई पड़ता | | लग जाता है। फिर धीरे-धीरे गंदा पानी झलकने लगता है। आशा है, तब तक उसमें परमात्मा को खोजने की कोशिश जारी रखनी ही | और घनी होने लगती है। और एक दिन आदमी उस जल-स्रोत पर पड़ेगी। एक घड़ी ऐसी आती है जरूर, जब दूसरा ही दिखाई नहीं | पहुंच जाता है, जो शुद्ध है। पड़ता। तब फिर भजन की कोई जरूरत नहीं रह जाती। जब ठीक ऐसे ही रूप में अरूप को खोदना पड़ता है। और जब हम परमात्मा ही दिखाई पड़ने लगता है, तब फिर परमात्मा को भजने | खोदने चलते हैं, तब रूप ही हाथ में मिलता है; अरूप तो सिर्फ की कोई जरूरत नहीं रह जाती। लेकिन जब तक वह नहीं दिखाई स्मरण रखना पड़ता है। जब रास्ते पर कोई आदमी मिलता है, तो पड़ता, तब तक उसका आविष्कार करना है, पर्ते तोड़नी हैं, सिर्फ स्मरण ही हम रख सकते हैं कि प्रभु होगा गहरे में भीतर; अभी उघाड़ना है।
कुछ पता तो नहीं। जब छुएंगे, तो आदमी की हड्डी-पसली हाथ में और आदमी के ऊपर रूप की पर्त-पर्त जमी हैं, जैसे प्याज पर आएगी। जब मिलेंगे, तो दोस्ती-दुश्मनी हाथ में आएगी; घृणा, जमी होती हैं—पर्त, और पर्त, और पत। एक पर्त उघाड़ो, दूसरी | | क्रोध, प्रेम हाथ में आएगा। ये सब कंकड़-पत्थर हैं। इन पर रुक पर्त आ जाती है। दूसरी उघाड़ो, तीसरी आ जाती है। लेकिन अगर नहीं जाना है, और इनको अंतिम नहीं मान लेना है। जो इनको हम प्याज को उघाडते ही चले जाएं तो एक घडी ऐसी आती है. | | अंतिम मान लेता है, वह प्रभु की खोज में रुक जाता है। जब शन्य रह जाता है, कोई पर्त नहीं रहती। प्याज बचती ही नहीं, आप मझे मिले और आपने मझे एक गाली दे दी। बस, मैंने शून्य रह जाता है। ठीक ऐसे ही एक-एक पर्त आदमी की उघाड़ेंगे, समझ लिया कि अंतिम बात हो गई। यह आदमी बुरा है। यह उघाड़ेंगे, और जब आदमी के भीतर सिर्फ शून्य रह जाएगा, तब अल्टिमेट हो गया मेरे लिए। यह गाली मेरे लिए चरम हो गई। मैंने भागवत चैतन्य का, तब भगवान का अनुभव होगा।
पहली पर्त को, कंकड़-पत्थर को कुएं की आखिरी स्थिति मान ली। लेकिन लंबी यात्रा है। जैसे कि कोई कुआं खोदता है। कुआं | जिससे गाली मिली है, उसके भीतर भी परमात्मा है। थोड़ा खोदता है, तो पानी एकदम से हाथ नहीं लग जाता। पहले तो | खोदना पड़ेगा। हो सकता है, थोड़ा ज्यादा खोदना पड़े। जिससे प्रेम कंकड़-पत्थर हाथ लगते हैं। लेकिन वह पानी का ध्यान रखकर मिला है, उसके भीतर थोड़े जल्दी परमात्मा मिल जाए। जिससे कुआं खोदता चला जाता है। मिट्टी हाथ लगती है, पत्थरों की चट्टानें घृणा मिली है, दो पर्त और ज्यादा आगे मिले। लेकिन इससे कोई हाथ लगती हैं। अभी पानी बिलकुल दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन | | फर्क नहीं पड़ता। पर्त कितनी ही हो, भीतर परमात्मा सदा मौजूद है। पानी का स्मरण रखकर खोदता चला जाता है। भरोसा ही है कि __परमात्मा यानी अस्तित्व, वह जो है। इसलिए वह सब जगह पानी होगा।
| मौजूद है। हम कहीं भी खोजेंगे, वह मिल जाएगा। कहीं भी और भरोसा सच है। क्योंकि कितनी ही गहरी जमीन क्यों न हो, | खोजेंगे, वह मिल जाएगा। और अगर हमने खोज न की, तो वह पानी होगा ही। दूरी कितनी ही हो सकती है, पानी होगा ही। भरोसा | कहीं भी न मिलेगा। झूठा भी नहीं है। हां, आपकी ताकत कम पड़ जाए और जमीन | | यह बड़े मजे की बात है कि परमात्मा, जो सदा और सर्वदा ज्यादा हो, तो बात अलग है। वह भी आपकी ताकत की कमी है। मौजूद है, हमारी बिना खोज के नहीं मिलेगा। प्रत्येक चीज के लिए
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