SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८सर्व भूतों में प्रभु का स्मरण - बहुत आशा से भरा हुआ वह नास्तिक एकनाथ के पास पहुंचा। हैं! एकनाथ ने कहा कि यह ही नहीं कह रहा हूं कि मैं ही ब्रह्म हूं, सुबह थी। कोई सुबह के आठ, साढ़े आठ, नौ बज रहे थे। धूप यह भी कह रहा हूं कि तू भी ब्रह्म है। फर्क इतना ही है कि तुझे अपने घनी थी, सूरज ऊपर निकल आया था। गांव में पूछता हुआ गया, होने का पता नहीं, मुझे अपने होने का पता है। तो लोगों ने कहा कि एकनाथ के बाबत पूछते हो! नदी के किनारे | __उसने कहा, छोड़िए इस बात को। यह भी आपसे पूछ लूं कृपा मंदिरों में देखना, अभी कहीं सोता होगा! उसके मन में थोड़ी-सी | करके कि शंकर की पिंडी पर पैर रखकर सोना कौन-सा तुक है! चिंता हुई। साधु तो ब्रह्ममुहूर्त में उठ आते हैं। नौ बज रहे हैं; कहीं एकनाथ कहने लगे, मैंने सब जगह पैर रखकर देखा, शंकर को ही सोता होगा! पाया। कहीं भी पैर रखें, फर्क क्या पड़ता है! जहां भी पैर रखं, वही गया जब मंदिर में, तो देखकर और मुश्किल में पड़ गया। है। शंकर की पिंडी पर रखें, तो वही है, अगर ऐसा होता, तो एक क्योंकि एकनाथ शंकर के मंदिर में सोए हैं, पैर दोनों शंकर की पिंडी बात थी। जहां भी पैर रखू, वही है। तो फिर मैंने फिक्र छोड़ दी। से टिके हैं: आराम कर रहे हैं। सोचा कि नास्तिक हं मैं. अगर इतना उस आदमी ने कहा, तो मैं जाऊं। क्योंकि अभी हम भी इस महानास्तिक मैं भी नहीं हूं। शंकर को पैर लगाते मेरी भी छाती कंप हालत पर नहीं पहुंचे कि शंकर की पिंडी पर पैर रख सकें! हम तो जाएगी। कहीं हो ही अगर! कहता हूं कि नहीं है। लेकिन पक्का | कुछ ज्ञान लेने आए थे। आस्तिक होने आए थे। आप महानास्तिक भरोसा नहीं है नहीं होने का। कहीं हो ही अगर? और पैर लग जाए, | मालूम पड़ते हो। एकनाथ ने कहा, अब इतनी धूप चढ़ गई, जाओगे तो कोई झंझट खड़ी हो जाए। किसके पास मुझे भेज दिया। लेकिन कहां। भोजन बनाता हूं, भोजन कर लो, फिर जाना। जब अब आ ही गया हूं, तो इससे दो बात कर ही लेनी चाहिए। और एकनाथ गांव में जाकर आटा मांग लाए। फिर उन्होंने वैसे बेकार है। यह मुझसे भी गया-बीता मालूम पड़ता है! बाटियां बनाईं। और जब वे बाटियां बनाकर रख रहे थे, तो एक और जो आदमी शंकर की पिंडी पर पैर रखकर सो रहा है, कुत्ता आकर एक बाटी लेकर भाग गया। तो एकनाथ हंडी लेकर घी उसको उठाने की हिम्मत न हो सकी। पता नहीं नाराज हो, क्या करे! की उसके पीछे भागे। ऐसे आदमी का भरोसा नहीं। बैठकर प्रतीक्षा की। कोई दस बजे उस आदमी ने समझा कि यह दुष्ट, कुत्ते से भी बाटी छुड़ाकर एकनाथ उठे। लाएगा। अजीब संन्यासी मिल गया! ले गया कुत्ता एक बाटी, तो उस आदमी ने कहा कि महाराज, आया था पूछने कुछ ज्ञान; ले जाने दो। अब तो कोई जरूरत न रही पूछने की। क्योंकि आप मुझसे भी आगे यह भी उसके पीछे दौड़ा कि देखें, यह करता क्या है? एक मील गए हुए मालूम पड़ते हैं! पूछने कुछ और आया था, अभी पहले तो | | दौड़ते-दौड़ते एकनाथ बामुश्किल उस कुत्ते को पकड़ पाए और मैं यह पूछना चाहता हूं, यह कोई उठने का समय है? साधु-संत | | पकड़कर कहा कि राम, हजार दफे समझाया कि बिना घी की बाटी ब्रह्ममुहूर्त में उठते हैं! हमको पसंद नहीं है खानी; तुमको भी नहीं होगी। नाहक एक मील एकनाथ ने कहा कि ब्रह्ममुहूर्त ही है। असल में जब साधु-संत | दौड़वाते हो। हम घी लगाकर थोड़ी देर में रखते; फिर उठाकर ले जा उठते हैं, तभी ब्रह्ममहर्त! न हम अपनी तरफ से सोते हैं, न अपनी सकते थे। छड़ाकर बाटी, घी की हंडी में डालकर-कुत्ते के मुं तरफ से उठते हैं। जब वह सो जाता है. सो जाता है. जब वह उठता जठी बाटी वापस डालकर_घी में परा सराबोर करके मंह में लगा है, तब उठ जाता है। तो हमने तो एक ही जाना कि जब नींद खुल | | दी और कहा कि आइंदा खयाल रखना, नहीं तो हड्डी-पसली तोड़ गई ब्रह्म की, तो ब्रह्ममुहूर्त है! हम अपनी तरफ से सोते भी नहीं, | देंगे। न इस राम को पसंद है, न उस राम को पसंद है! जब हम बाटी अपनी तरफ से जागते भी नहीं। ब्रह्म को जब सोना है, सो जाता है; | में घी लगा लें, तभी ले जाया करें। नाहक एक मील दौड़वाया! ब्रह्म को जब जगना है, जग जाता है। यह ब्रह्ममुहूर्त है, क्योंकि ब्रह्म ___ उस आदमी ने सोचा कि बड़े मजे का आदमी है! शंकर की पिंडी उठ रहे हैं! पर पैर रखकर सोता है, कुत्ते को राम कहता है! उसने कहा, गजब की बात कह रहे हैं आप भी। और मुश्किल । __अगर ठीक से समझें, तो यह भजन चल रहा है। ये दोनों ही में डाल दिया। हम तो पूछने आए थे, ब्रह्म है या नहीं? अब हम भजन के रूप हैं। अगर प्रभु सब जगह है, ऐसा स्मरण आ जाए, और मश्किल में पड़ गए। क्योंकि आप तो कह रहे हैं, आप ही ब्रह्म तो शंकर की पिंडी को अलग कैसे करिएगा! और अगर सब जगह 225
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy