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________________ गीता दर्शन भाग-3 बोल रहे हैं, वह मोनोलाग है, एकालाप। दूसरे से बात नहीं चल कहते हैं कि मैं तुम्हारे बिना बोलूंगा, तो मुझे भी सुनाई पड़ जाएगा, रही है; उसमें दूसरे का कोई सवाल ही नहीं है। आप न हों, तो भी | | | तो एक्सिडेंट है। मैं भी आता-जाता रहूंगा। मैं भी कोई सुनने के चलेगा। लिए उत्सुक नहीं हूं! मेरे एक शिक्षक थे, मेरे एक प्रोफेसर थे, बहुत अदभुत आदमी | | बहुत चौंके। कहने लगे, तुम आदमी कैसे हो? मैंने कहा कि थे। जब मैं उनके पास दर्शनशास्त्र पढ़ने गया विद्यार्थी की हैसियत | | आदमी ऐसा न होता, तो मैं आपके पास आता नहीं। छः साल से से, तो में उनका अकेला विद्यार्थी था, क्योंकि उनके पास विद्यार्थी कोई आया नहीं! फिर यह एकालाप चला दो साल तक। टिकते नहीं थे। कई साल से उनके पास कोई विद्यार्थी नहीं टिकता कभी-कभी मैं दस-दस, पंद्रह-पंद्रह मिनट के लिए बाहर चला था। कोई पांच-सात साल से वे खाली थे। टिकते इसलिए भी नहीं | जाता। लौटकर आता। मगर उन्होंने निभाया। वे पंद्रह मिनट बोलते थे कि उनका विद्यार्थी कभी एम.ए. पास नहीं हुआ। जो भी उनके रहते थे खाली कमरे में! पर ऐसे शिक्षक बहुत कम विद्यार्थियों के पास आया, फेल होकर गया। फिर आना लोगों ने बंद कर दिया। काम पड़ सकते हैं, नहीं के बराबर। उनका विषय ही कोई नहीं लेता था। कौन झंझट में पड़े! उसमें फेल ___ अगर शिक्षक अपने आनंद में बोले, तो ऐसा ही हो जाएगा। वह . होना पक्का ही था। आपको भल जाएगा। आपको याद रखे. तो नीचे उतरना ही पडेगा। उनसे कई बार पूछा गया कि आप सभी को फेल कर देते हैं? वे | | और आपको याद न रखे, तो बोलना व्यर्थ हो जाता है; बोलने का बोले कि मैं दो में से एक ही कर सकता हूं। अगर ईमानदारी से | | कोई मतलब नहीं रह जाता। फिर चुप ही हो जाना बेहतर है। जांचूं, तो वे फेल होते हैं। और अगर बेईमानी से जांचूं, तो पास हो | इसलिए बहुत-से शिक्षक इस पृथ्वी पर चुप भी रहे। और कोई सकते हैं। लेकिन बेईमानी से मैं जांच नहीं सकता। फेल होंगे। । कारण नहीं था। कुल कारण इतना ही था कि वे बोलते, तो एकालाप छः-सात साल से कोई नहीं गया था। मुझे भी मित्रों ने समझाया | होता। और अगर संवाद करना चाहते, तो उनको कहीं उस जगह कि वहां मत जाओ। पर मैंने कहा कि उस आदमी में कुछ खूबी तो से बात शुरू करनी पड़ती, जहां वे जानते थे, बात बेकार है। होनी ही चाहिए, जो कहता है, ईमानदारी से जांचेंगे, तो ही पास | लेकिन कृष्ण बहुत करुणावान हैं। वे अर्जुन की तरफ देखकर ही करेंगे। तो, ऐसे आदमी के पास पास होने का कोई मतलब है। मैं | | बोल रहे हैं। एक-एक शब्द उनका एड्रेस्ड है, वह डायलाग है। जाता हूं। ऐसे आदमी के पास फेल होने का भी कुछ मतलब है। | | गीता एक महानतम संवाद है, जिसमें शिक्षक विद्यार्थी को पूरे समय उन्होंने मुझे आते ही से समझाया कि दो-तीन बातें साफ समझ | | स्मरण रखे हुए है। इसलिए वह पूरी दफे उतार-चढ़ाव लेते हैं। जब लो। क्योंकि तुम अकेले हो, पांच-सात साल बाद आए हो, और वे अर्जुन को देखते हैं कि नहीं, यह समझ में नहीं आएगा, और मेरी आदत डायलाग की नहीं है, मेरी आदत मोनोलाग की है। क्या नीचे उतर आते हैं। जब वे समझते हैं कि अर्जुन की समझ थोड़ी मतलब आपका? उन्होंने कहा, मैं बोलूंगा, तुम से नहीं। मैं | चमक रही है, तब वे तत्काल ऊपर चले जाते हैं। बोलूंगा, तुम सुनना, यह दूसरी बात है। तुम्हारा मैं ध्यान नहीं । कृष्ण की गीता में बहुत उतार-चढ़ाव है। कृष्ण की गीता सपाट रखंगा, नहीं तो मेरे बोलने में गड़बड़ होती है। मुझे जो बोलना है, नहीं है। उसमें कई बार वह अर्जुन के बहुत निकट उन्हें आना पड़ता वह मैं बोलूंगा; तुम सुन लोगे, यह दूसरी बात। एक्सिडेंटल है यह है। बहुत छोटी बात कहनी पड़ती है, जो कि उन्हें नहीं कहनी चाहिए कि तुमने सुन लिया, सांयोगिक है। मैं तुम्हारे लिए नहीं बोल सकता थी, जो कि उन्होंने नहीं कहनी चाही होगी। लेकिन अर्जुन पर यह हूं, क्योंकि तुम्हारे लिए बोलूंगा, तो मुझे कुछ गलत, नीचे तल पर | | भरोसा रखकर कि इस तरह धीरे-धीरे उसे आगे ले जाकर कहीं वह उतरकर बोलना पड़ेगा। चीज प्रकट कर देंगे, जो कहनी है। और जब एक दफा वह उस मैंने कहा कि मैं भी आपसे कह दूं कि आप भूलकर मत समझना | | चीज को समझ लेगा, तो वह यह भी जान जाएगा कि पहले जो बातें कि मैं यहां मौजूद हूं। और अगर बीच-बीच में मैं उठकर चला | | कही थीं, वे मुझे ध्यान में रखकर कही थीं; वे कृष्ण की तरफ से जाऊं, तो आप बोलना बंद मत करना। आप जारी रखना बोलना। | नहीं थीं, मेरी तरफ से थीं। अर्जुन निमित्त है। इसलिए वैसी बात मैं फिर लौट आऊंगा। मेरी मौजदगी आप मानना ही मत। और रजिस्टर आप बंद कर दो; मेरी अटेंडेंस नहीं भरी जाएगी। जब आप | अभी इतना ही। फिर सांझ हम बैठेंगे। कही है। |220|
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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