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________________ < अहंकार खोने के दो ढंग - होना चाहें, दरवाजा बंद कर देंगे वे कि धर्म-निरपेक्ष! तुम यां कहां | होना है। आपका भी नाम तो केवल शब्द है। आपका भी भगवान आ रहे हो! देवी-देवताओं की यहां कोई जरूरत नहीं, यहां सिर्फ | | होना ही सत्य होना है। लेकिन उसका स्मरण दिलाने के लिए गधों के लिए द्वार खुला है! प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। तो बच्चे को सिखाना पड़ता है, ग गणेश का, या ग गधे का। इसलिए कृष्ण कह रहे हैं, मुझ वासुदेव को। ग का गधे से या गणेश से कोई लेना-देना है? ग तो गंवार का भी अर्जुन इसको समझ पाएगा कि ठीक है। और अर्जुन इसको होता है। ग तो अनेकों का होता है। ग का गधे से या गणेश से क्या | इसलिए भी समझ पाएगा कि इन वासुदेव से उसका बड़ा प्रेम है; ठेका? लेकिन बच्चे को कहीं से तो शुरू करना पड़ेगा। वन हैज टु | परात्पर ब्रह्म से कोई प्रेम भी नहीं है। सुखद होगा उसे कि मैं तुम्हें बिगिन समव्हेयर। सबमें देख पाऊं। सुख होगा उसे कि मैं तुम्हें सबमें पा पाऊं। सुख ___ अगर हम कहें कि ग सब का, तो बच्चे की कुछ समझ में न | | होगा उसे कि तुम भी मुझे देख पाओगे; तुम वासुदेव कृष्ण, तुम मुझे आएगा। बच्चे को तो कहीं से शुरू करना पड़ेगा। फिर धीरे-धीरे | | देख पाओगे, मैं तुम्हें देख पाऊंगा! यह उसकी समझ में पड़ेगी बात। हम कहेंगे, ग गणेश का भी और ग गधे का भी और ग गंवार का | लेकिन यह सिर्फ प्रलोभन है। यह सिर्फ शिक्षक के द्वारा दिया भी। और तब बच्चे को धीरे-धीरे समझ में आएगा कि ग का किसी | गया प्रलोभन है। इस प्रलोभन के आसरे उसको कृष्ण इंच-इंच से कोई लेना-देना नहीं। ग सबका हो सकता है। फिर वह गधे को | सरकाएंगे। भी भूल जाएगा, गणेश को भी भूल जाएगा। ग रह जाएगा। कभी-कभी कोई शिक्षक ऊबकर, परेशान होकर इस तरह की ठीक वैसे ही कृष्ण को भी बच्चे के साथ बात करनी पड़ रही है। | प्रक्रिया छोड़ देता है। कभी-कभी कोई शिक्षक ऐसी प्रक्रिया छोड़ इस पृथ्वी पर बुद्ध को, महावीर को, या कृष्ण को, या क्राइस्ट को, | | देता है। जैसे कि नागार्जुन एक बौद्ध शिक्षक हुआ, अदभुत। ठीक या मोहम्मद को बच्चों के साथ बात करनी पड़ रही है। उम्र से भला | | उतना ही जानने वाला, उतनी ही गहराई में, जैसे कृष्ण। लेकिन वह बूढ़े हों; ज्ञान से तो बच्चे ही हैं, जिनसे बात करनी पड़ रही है। ।। | यह प्रक्रिया उपयोग न करेगा। वह शिक्षक की भाषा बोलेगा। वह और बच्चों के साथ बात करनी इतनी कठिन नहीं होती, क्योंकि | विद्यार्थी की भाषा बोलेगा ही नहीं। तो एक आदमी के काम नहीं बच्चों को खयाल होता है कि वे बच्चे हैं। बूढ़ों के साथ और | | पड़ सका। कठिनाई हो जाती है, क्योंकि वे समझते हैं, वे बूढ़े हैं। होते बच्चे। जैसे कृष्णमूर्ति। वे शिक्षक की भाषा बोल रहे हैं, विद्यार्थियों की नहीं। और आध्यात्मिक शिक्षकों का कोई टीचर्स ट्रेनिंग कालेज तो इसलिए दुनिया के सारे शास्त्र बच्चों के लिए हैं। जो जानने की है नहीं कि जहां आध्यात्मिक शिक्षकों के सामने भाषण किया जा यात्रा पर थोड़ा आगे जाएगा, जैसा ग गधे से छूट जाता है, ऐसे ही सके। कोई कबीर और नानक तो सुनने आते नहीं। अगर कबीर बुद्धि शास्त्र से छूट जाती है। सब शास्त्र क ख ग हैं। उनमें सिर्फ सुनने आते हों कृष्णमूर्ति को, तो ठीक है! लेकिन वे समझकर चल यात्रा का प्रारंभ है, अंत नहीं है। हां, अंत की झलक देने की रहे हैं कि कबीर सुनने आते हैं! और क ख ग सुन रहे हैं! उनकी जगह-जगह कोशिश होती है कि शायद थोड़ी-सी झलक खयाल | | पकड़ में कुछ नहीं आ रहा! लेकिन फिर भी सुनते-सुनते भ्रम पैदा में आ जाए, तो आदमी यात्रा पर निकल जाए। हो जाएगा कि पकड़ में आ गया, फिर मौत हुई। तो कृष्ण जो कह रहे हैं, मुझ वासुदेव को। अर्जुन यही समझ | नहीं; विद्यार्थी की भाषा बोलनी पड़ेगी। शिक्षाशास्त्र कहता है सकता है। अगर कृष्ण कहें कि मुझ परात्पर ब्रह्म को, तो अर्जुन || कि ठीक शिक्षक वही है, जिसकी क्लास के विद्यार्थी, जो अंतिम कहेगा, महाराज, आप मेरे सारथी। परात्पर ब्रह्म! वर्ग है विद्यार्थी का या जो अंतिम विद्यार्थी है, जो उसे समझ पाए, एक-एक इंच उसको सरकाना पड़ेगा। एक-एक इंच। एक-एक | अंतिम विद्यार्थी जिस शिक्षक को समझ पाए, वही योग्य शिक्षक इंच कृष्ण अपने को प्रकट करेंगे-वाणी से, व्यक्तित्व से, जीवन | | है। अगर आप सिर्फ प्रथम विद्यार्थी के लिए बोल रहे हैं, तो बाकी से। एक-एक इंच प्रकट करेंगे और उस जगह लाएंगे, जहां अर्जुन | | उनतीस को छुट्टी कर दें! के सामने वे भगवान की तरह प्रकट हो सकें। वही उनका होना सत्य । मगर यहां तो कुछ शिक्षक ऐसे भी हो जाते हैं पृथ्वी पर, जो सिर्फ होना है। कृष्ण होना तो सिर्फ शब्द है। भगवान होना ही उनका सत्य अपने लिए बोल रहे हैं, मोनोलाग। डायलाग नहीं है। कृष्णमूर्ति जो 1219
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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