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________________ गीता दर्शन भाग-3 इससे अच्छा तो यह होता कि वह सड़क पर नग्न खड़ी हो जाती; है। अभी तो आकार की भाषा में ही अर्जुन से बात की जा सकती क्योंकि जब वह सभी जगह देख ही रहा है! कपड़े के पार भी उसकी | | है। नहीं तो डायलाग, संवाद नहीं होगा। आंख चली ही जाती होगी, जब ईंट-पत्थर के पार चली जाती है। ___ हां, जब कृष्ण धीरे-धीरे तैयार कर लेंगे अर्जुन को, तो अपना और हड्डी के पार भी चली जाती होगी! | निराकार रूप भी दिखा देंगे। तब वे वासुदेव नहीं रह जाएंगे, तब सभी जगह वह देख रहा है, फिर भी हम उसकी पकड़ में आने | वे परात्पर ब्रह्म हो जाएंगे। तब वे कृष्ण नहीं रह जाएंगे, स्वयं जगत वाले नहीं हैं। उसकी आंख बहुत बड़ी है और हम बहुत छोटे हैं। | की सत्ता हो जाएंगे। तब वे अपने सब आकारों को उतारकर नीचे वह बहुत निराकार है, हम बहुत साकार हैं। वह बिलकुल निर्गुण रख देंगे और विराट को खुला छोड़ देंगे। है, हम बिलकुल सगुण हैं। वह बिलकुल शून्यवत है और हम | लेकिन तब भी अर्जुन कहां पूरा तैयार हो पाया था? कैसा घबड़ा अहंकार हैं। इसलिए पकड़ में हम न आएंगे। हम गजरते रहेंगे गया। और कहा कि बंद करो यह रूप। बंद करो। घबड़ाते हैं प्राण। आर-पार उसके। उसके ही आर-पार गुजरते रहेंगे—उसमें ही | घबड़ाएगा ही। जीएंगे, उसमें ही जगेंगे, उसमें ही सोएंगे, उसमें ही पैदा होंगे, उसमें कृष्ण को तो अर्जुन के पास आना है, तो सागर की भाषा नहीं ही मरेंगे और फिर भी वह हमें नहीं देख पाएगा। बोलनी पड़ेगी, बूंद की ही भाषा बोलनी पड़ेगी। नहीं तो अर्जुन तो अभी हमारी पात्रता भी नहीं कि वह हमें देखे। हमारी पात्रता की समझेगा ही नहीं। और अगर प्रयोजन यही है कि अर्जुन समझे, तो घोषणा उसी क्षण होती है, जिस क्षण हम उसे देख लेते हैं। | अर्जुन की ही भाषा का उपयोग करना उचित है। कृष्ण का यह सूत्र कीमती है, समझने जैसा है। | ध्यान रहे, इस पृथ्वी पर जो शिक्षक अपनी भाषा का उपयोग करते हैं, वे किसी के काम नहीं पड़ते। जो शिक्षक आपकी भाषा का उपयोग करते हैं, वे ही काम पड़ते हैं। मगर दुर्भाग्य ऐसा है कि प्रश्न : भगवान श्री, इस श्लोक में कृष्ण कहते हैं, मुझ | जो शिक्षक अपनी भाषा का उपयोग करते हैं, वे आपको खूब जंचते वासुदेव को देखता है। यह वासुदेव शब्द का उपयोग | हैं। और जो शिक्षक आपकी भाषा का उपयोग करते हैं, वे आपको यहां किस अर्थ में है? बहुत जंचते नहीं। क्योंकि आपकी भाषा का उपयोग करने के साथ ही गलतियां शुरू हो जाती हैं। आपमें गलतियां हैं. आपकी भाषा में गलतियां हैं। जब कृष्ण कहते हैं, मुझ वासुदेव को देखता है, मुझ ___ हां, अगर शिक्षक अपनी ही भाषा का उपयोग करे, तो गलतियां UI कृष्ण को देखता है, मुझे देखता है, तो कृष्ण जब अपने | कभी न होंगी; लेकिन बात इतनी सही होगी कि आपकी बुद्धि में न लिए वासुदेव या मैं या कृष्ण, मामेकं-इस तरह के | पड़ेगी। आपकी बुद्धि में पड़ने के लिए बात को थोड़ा गैर-सही शब्दों का प्रयोग करते हैं, तब ध्यान रखना कि इन सब शब्दों का होना जरूरी है। प्रयोग अर्जुन के निमित्त है। इन सब शब्दों का प्रयोग अर्जुन के | कृष्ण जो कह रहे हैं, उसमें गलती है। गलती अर्जुन के कारण निमित्त है। है, कृष्ण उसके लिए दोषी नहीं हैं। हां, कृष्ण की करुणा भर दोषी अर्जुन समझ ही नहीं पाएगा, अगर कृष्ण कहें कि मुझ निराकार | हो सकती है। क्योंकि वह अर्जुन को चाहते हैं, वह समझ ले। को देखता है। या कहें कि मुझ में शून्य को देखता है। या कहें कि इसलिए उसकी भाषा का उपयोग कर रहे हैं। उसे देखता है, जो मेरे भीतर है ही नहीं! | आप एक छोटे बच्चे को सिखाते हैं। सिखाते हैं, ग गणेश का; अगर कृष्ण निगेटिव शब्दों का उपयोग करें, जो कि ज्यादा सही | | या अभी सिखाते हैं, ग गधे का! सेकुलर, धर्म-निरपेक्ष राज्य होने होंगे, तो अर्जुन बिलकुल समझ न पाएगा। बात ठीक होगी, लेकिन | की वजह से गणेश का ग तो कह नहीं सकते, तो ग गधे का! गणेश अर्जुन की समझ के बाहर पड़ जाएगी। को लाने में सेकुलर बुद्धि को ज्यादा तकलीफ होती है; गधा आ अर्जुन तो कृष्ण को ही समझता है, वासुदेव को समझता है, | जाए, तो ज्यादा तकलीफ नहीं होती! धर्म-निरपेक्ष राज्य है, कोई अर्जुन तो अभी कृष्ण के रूप को समझता है, आकार को समझता | | गधा एम.पी. होना चाहे, अक्सर होना चाहते हैं; हो जाते हैं। गणेश 218|
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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