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________________ < गीता दर्शन भाग-3 > वक्त तो गिनती की कोई सार्थकता नहीं है। आदमी तिजोड़ी में जोड़ता चली जाएगी। इसलिए पुरुष के सब मार्ग आत्मा की घोषणा करेंगे। है, तो एक-एक गिनकर जोड़ता है। जोड़ने के वक्त तो गिनती की स्त्री का मार्ग है, विसर्जन। कोई चीज पानी की तरह तरल होकर सार्थकता है। क्योंकि जोड़ने वाला चित्त अगर गिनेगा नहीं, तो पता | बह जाएगी। इसलिए स्त्री के मार्ग परमात्मा की घोषणा करेंगे। कैसे चलेगा कि कितना जोड़ा? लेकिन छोड़ते वक्त गिनती की । एक में देख लें सबको या सबमें देख लें एक को। थोड़े विधियों कौन-सी आवश्यकता है? तू इकट्ठा ही झोला फेंक देता! के भेद होंगे। लेकिन इंद्रियों से पार उठना पड़ेगा। या तो एक-एक एक-एक करके फेंका उसने। संकल्प एक-एक करके ही फेंक | इंद्रिय के साक्षी बनकर पार उठे, या समस्त इंद्रियों को एक बार ही पाता है। समर्पण इकट्ठा फेंक देता है। समर्पण का मतलब है कि प्रभु के चरणों में सौंप दें। तुम्ही सम्हालो ये इंद्रियां; तुम्ही सम्हालो ये सब कुछ। तुम्हारे चरणों | आप सोचते होंगे, बड़ा सरल है; एक बार जाकर प्रभु के चरणों में रख दिया सिर, तुम जानो। इकट्ठा फेंक देता है। संकल्प में सौंप दें; झंझट से छूटे। अगर आपके मन में ऐसा खयाल आया एक-एक इंद्रिय से लड़ेगा। एक-एक इंद्रिय से लड़ेगा, एक-एक हो कि एक बार जाकर प्रभु के चरणों में सौंप दें, झंझट से छूटे, तो इंद्रिय को छोड़ेगा। परिणाम वही होता है। पुरुष का रास्ता थोड़ा | आप सौंप न पाएंगे। आप सौंप न पाएंगे, क्योंकि आप झंझट से . लंबा है। स्त्री का रास्ता शार्टकट है। लेकिन पुरुष के लिए शार्टकट | छूटने को सौंप रहे हैं। झंझट आप ही हैं। नहीं है, बहुत लंबा हो जाएगा। स्त्री का रास्ता बहुत निकटतम | लेकिन अगर आपको ऐसा खयाल आया कि यह तो बात है-छलांग का। बिलकुल ठीक है; छोड़ दिया। छोड़ देंगे नहीं; कल छोड़ देंगे नहीं। अपने चित्त की तलाश कर लेनी चाहिए। जरूरी नहीं है कि आप | वह पुरुष चित्त का लक्षण है—जाऊंगा, करूंगा, छोडूंगा। वह पुरुष हैं, तो आपके पास पुरुष चित्त हो। इस भ्रम में मत पड़ना कि | | छोड़ने में भी करना करेगा। समर्पण भी उसके लिए एक संकल्प ही पुरुष होने से पुरुष चित्त होता है। स्त्री हों, तो स्त्री चित्त हो, इस भ्रम | होगा। वह कहेगा, मैं तैयारी कर रहा हूं, संकल्प कर रहा हूं कि में मत पड़ना। समर्पण कर दूं! अगर समर्पण भी आएगा, तो संकल्प के ही द्वार इसकी तलाश कर लेना कि आपके चित्त का ढंग क्या है ? | से आएगा। अगर वह प्रभु के चरणों में अपने को झुकाएगा भी, तो समर्पण का ढंग है या संकल्प का ढंग है? आपकी सामर्थ्य अपने | | यह बड़े व्यायाम और कसरत का फल होगा। भारी कसरत करेगा! को किसी के हाथ में छोड़ देने की है? नदी से अगर सागर तक | और कसरत से कोई झुका है? अकड़ना हो, तो कसरत ठीक है। पहुंचना हो, तो आप तैरकर पहुंचिएगा कि बहकर पहुंचिएगा? झुकना हो, तो नहीं। लेकिन अकड़ना हो, तो पूरे अकड़ जाएं। इसकी जरा ठीक से खोज कर लेना। बड़े मजे की बात है कि अगर पूरे अकड़ जाएं, तो एक दिन __ अगर बहकर पहुंच सकते हों, तो समर्पण मार्ग है। फिर नदी के | | अचानक पाएंगे कि सब बिखर गया। यह मुट्ठी है मेरी, इसको मैं हाथ में छोड़ दिया कि ले चल। नदी तो सागर जा ही रही है, ले | | बांधता चला जाऊं और इतना बांधूं, इतना जितना कि मेरी ताकत जाएगी। लेकिन अगर आप तैरने वाले आदमी हैं, तो तैरेंगे सागर | है। फिर एक क्षण आ जाएगा कि यह मुट्ठी खुल जाएगी-जिस की तरफ। नदी तो मेहनत कर ही रही है, आप भी मेहनत करेंगे। | क्षण मेरी ताकत चुक जाएगी बांधने की। और ताकत चुक जाएगी; जरूरी नहीं है कि तैरकर आप थोड़ी जल्दी पहुंच जाएंगे। हो सकता । ताकत सीमित है। है, थोड़ी देर से ही पहुंचें, क्योंकि तैरने में नाहक शक्ति व्यय होगी। | आप करके देखना। बांधते जाना, बांधते जाना, पूरी ताकत लगा नदी सागर की तरफ बह ही रही है, आप सिर्फ बह गए होते, तो भी देना। एक क्षण आप अचानक पाएंगे कि अब आप और नहीं बांध पहुंच गए होते। लेकिन आप पर निर्भर है। सकते हैं, और देखेंगे कि अंगुलियां खुल रही हैं! हां, कुनकुना बांधे पुरुष चित्त को बहने में रस न आएगा। वह कहेगा, यह भी क्या | | रहें, धीरे-धीरे, तो जिंदगीभर बांधे रह सकते हैं। हो रहा है! तैरने का कोई मौका ही नहीं! तो पुरुष चित्त अक्सर नदी । अकड़ना ही हो, तो पूरे अकड़ जाना। कहना, कोई ब्रह्म नहीं है, से उलटा तैरने लगता है, क्योंकि उलटा नदी में तैरने में ज्यादा मैं ही ब्रह्म हूं। लेकिन फिर इसको इस घोषणा से कहना कि पूस संकल्प को मौका मिलता है, क्रिस्टलाइजेशन। पुरुष का मार्ग है, जीवन इस पर लगा देना। एक क्षण आएगा कि यह बिखराव क्रिस्टलाइजेशन। सख्त हीरे की तरह भीतर कोई चीज मजबूत होती उपलब्ध हो जाएगा। लेकिन तनाव से विश्राम आएगा पुरुष को। थू 214
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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