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________________ < अहंकार खोने के दो ढंग - पति में परमात्मा देख पाए, तो पति इतना विराट हो जाएगा धीरे-धीरे आ सकेगा। और जब किसी ने बुद्ध से पूछा कि ऐसा आप क्यों कि सब, एक में अनेक समा जाएगा। अगर देख पाए। वही उसकी कहते हैं? तो उन्होंने कहा, मैं स्त्रियों को दीक्षा दिया हूं। पांच साल साधना बन सकती है। न देख पाए, तो भी वह किसी को खोजेगी। | भी बहुत है कि मेरी पद्धति शुद्ध रह जाए, स्त्रियां उसको बदल जैसा व्यक्ति जो कहता है. कोई परमात्मा नहीं है, देंगी। क्योंकि स्त्रैण चित्त। उसके पास भी...। महावीर के पास पचास हजार संन्यासी थे, तो और बदल डाला, बिलकुल बदल डाला! केवल आठ हजार संन्यासी पुरुष थे, बयालीस हजार संन्यासिनियां चित्त हमारा दो प्रकार का है। लेकिन किसी भी चित्त के पार जाना स्त्रियां थीं। महावीर कहते हैं. कोई परमात्मा नहीं है। लेकिन हो. तो इंद्रियों के पार जाना जरूरी है। लेकिन जाने की विधि में थोडे लीस हजार स्त्रियां कहती हैं. तम हमारे लिए परमात्मा हो. फर्क होंगे। स्त्री चित्त समर्पण से जाएगा। समर्पण कर दिया अपना भगवान हो! महावीर के चरण में भी उन्होंने परमात्मा को खोज | प्रभु के लिए, तो सब इंद्रियां समर्पित हो गईं, स्वयं भी समर्पित हो लिया। महावीर कितना ही कहें, वह महावीर के चरण में भी | | गए। खुला आकाश, विराट आकाश उपलब्ध हो गया। परमात्मा को खोज लिया। __पुरुष समर्पण से नहीं, संकल्प से जाएगा। संकल्पपूर्वक बुद्ध ने इनकार किया, कोई परमात्मा नहीं है। और इसलिए बुद्ध | एक-एक इंद्रिय के ऊपर उठेगा। ने बहुत दिन तक जिद्द की कि मैं स्त्रियों को दीक्षा न दूंगा। बहुत __ भेद ऐसा है, रामकृष्ण के पास एक आदमी आया। एक हजार मजेदार घटना है। बुद्ध ने बहुत दिन जिद्द की कि मैं स्त्रियों को दीक्षा | | स्वर्ण-मुद्राएं जाकर उसने रामकृष्ण के पैर में जोर से पटकीं। जोर से, नहीं दूंगा। एक अर्थ में जिद्द ठीक थी, क्योंकि बुद्ध का पथ | | ताकि घाट पर इकट्ठे लोगों को सोने की खनखनाहट का पता चल बिलकुल पुरुष का पथ है। और मजा यह है कि पुरुष के पथ पर | जाए कि किसी ने आकर सोना दान किया! दानी जब करता है, तो स्त्री को लाओ, तो स्त्री न बदलेगी, पथ को बदल लेगी। इसलिए घोषणा से ही करता है! उसी में दान बेकार हो जाता है यद्यपि।। बुद्ध बहुत इनकार किए कि क्षमा करो। बहुत मजबूरी में, बहुत | रामकृष्ण ने कहा, इतने जोर से भाई क्यों पटकता है? दान दबाव में, और बड़ी एक तार्किक घटना के कारण बुद्ध को दीक्षा चुपचाप भी कर सकता है! उस आदमी को कुछ होश आया। उसने देने के लिए राजी होना पड़ा। कहा, क्षमा करें, भूल हो गई। अनजाने हो गया। स्वीकार करके बुद्ध की वृद्ध एक रिश्तेदार है, गौतमी। बुद्ध से उम्र में बड़ी है। | मुझे कृतार्थ करें। रामकृष्ण ने कहा, स्वीकार कर लेता हूं। क्योंकि रिश्ते में चाची लगती है। गौतमी बुद्ध के पास आई। जब सैकड़ों | कोई मुझे गालियां देने आए, तो वह भी स्वीकार कर लेता हूं, तू तो स्त्रियों को बुद्ध इनकार कर चुके, तो गौतमी बुद्ध के पास आई। स्वर्ण की मुद्राएं लाया! मैंने स्वीकार कर लीं। अब मेरी तरफ से उसने यह नहीं कहा, मुझे दीक्षा दो। उसने यह कहा कि क्या स्त्रियां जाकर इनको गंगा में फेंक आ। सत्य को नहीं पा सकेंगी? बुद्ध ने कहा, जरूर पा सकेंगी। क्या ___ तो वह आदमी मुश्किल में पड़ा। एक हजार स्वर्ण-मुद्राएं! गया स्त्रियों के लिए सत्य का द्वार बंद है? बुद्ध ने कहा, नहीं, द्वार बंद | | गंगा के किनारे। बड़ी देर लगा दी। लौटा नहीं। रामकृष्ण ने कहा, नहीं है। क्या स्त्रियां ऐसी अपवित्र हैं कि सत्य के निकट न पहुंच | | भाई, जरा देखो, वह आदमी कहां है? बड़ी देर लग गई। फेंकने को सकें? बुद्ध ने कहा कि नहीं-नहीं, स्त्रियां उतनी ही पवित्र हैं, कहा था! एक सेकेंड का काम था। फेंककर चलकर आ गया होता। जितने पुरुष। तो गौतमी ने कहा कि फिर बुद्ध हमें दीक्षा क्यों नहीं __लोग देखने गए। और उन्होंने आकर बताया कि वह एक-एक देते हैं? क्या हम वंचित रह जाएं बुद्ध की मौजूदगी से? फिर हमें | अशर्फी को बजाकर देख रहा है। और बजाकर फेंकता है और कब दूसरा बुद्ध मिलेगा? उसका कोई वचन है? उसका कोई | कहता है, आठ सौ दस, आठ सौ ग्यारह, आठ सौ बारह...! वह आश्वासन है? और अगर हम नहीं पहुंच पाए सत्य तक, तो | | गिन-गिनकर फेंक रहा है! भीड़ इकट्ठी है वहां भारी।। जिम्मेवार आप भी होंगे। जब वह आदमी लौटा, पसीना-पसीना, घंटों की मेहनत के बाद। बुद्ध कठिनाई में पड़ गए। बुद्ध ने कहा, मैं दीक्षा देता हूं। लेकिन रामकृष्ण ने कहा, तू बड़ा पागल है। जो काम एक ही कदम में किया साथ ही यह भी घोषणा करता हूं कि मेरा जो धर्म पांच हजार वर्ष जा सकता था, वह तूने हजार कदम में किया! फेंकनी ही थीं, जोड़नी तक लोगों के काम आता, अब पांच सौ साल से ज्यादा काम नहीं तो नहीं थीं। जोड़ते वक्त गिनती की कोई सार्थकता भी है। फेंकते 213
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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