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गीता दर्शन भाग-3 -
जाती है—आंसू आ जाते हैं, रूमाल भीग जाता है, छाती धड़कने | | कोई पुरुष है नहीं; बाकी तो सब स्त्रियां हैं। लगती है, हृदय भारी हो जाता है, दुखी हो जाते हैं, सुखी हो जाते . पुजारी ने चिट्ठी पढ़ी, घबड़ाया कि पता नहीं कौन आ गया! उस
न चित्त की जिस फिल्म को आप अनंत जन्मों से देख रहे | पुजारी को पता भी न होगा कि कभी कोई शद्ध स्त्री आ सकती है. हैं, अगर उसमें ऐसा तादात्म्य गहन हो गया हो, तो आश्चर्य नहीं | | जिसे सिर्फ एक ही पुरुष है। माफी मांगी और कहा, भीतर आ है। वहां वह पूरे वक्त चल रहा है। सोते-जागते, मन के पर्दे पर | | जाओ, क्योंकि मुझसे ज्यादती हो गई कि मैंने भी पुरुष होने का दावा फिल्म जारी है। इसमें कभी अंतराल नहीं आया, गैप नहीं पड़ा। किया। कृष्ण के मंदिर में पुरुष होने का दावा करने वाला पुजारी इसलिए भयंकर तादात्म्य हो गया है। जैसे कोई आदमी जिंदगीभर गलत पुजारी है। सिनेमा में ही बैठा रहे और भूल जाए कि मैं हूं। सिनेमा ही हो जाए! भक्ति का मार्ग स्त्रैण चित्त का मार्ग है-समर्पण का, किसी के ऐसी हमारी स्थिति है।
चरणों में सब रख देने का, और एक ही चरण में पूरे जगत के चरणों इसे तोड़ना पड़े। इसे तोड़ने के लिए जरूरी है जानना कि मैं | | को उपलब्ध कर लेने का। मूर्तियां स्त्रियों ने विकसित की हैं, भला दर्शक हूं। बस, यह स्मरण कि मैं द्रष्टा हूं।
पुरुषों ने बनाई हों। मूर्ति स्त्रैण चित्त के निकट है। कृष्ण की सारी साधना पद्धति द्रष्टा की है। मैं दर्शक हूं, मैं द्रष्टा महावीर शुद्ध पुरुष चित्त हैं। वे कहते हैं, कोई परमात्मा नहीं है। हूं। इसका स्मरण कि मैं देख रहा हूं। विचारो, मैं तुम्हारे साथ एक | महावीर का यह कहना कि कोई परमात्मा नहीं है, आत्मा ही नहीं हूं; तुम से दूर खड़ा देख रहा हूं।
परमात्मा है, पुरुष की शुद्धतम घोषणा है। पुरुष किसी परमात्मा को यह स्मरण गहरा हो जाए, तो विचार भी बंद हो जाएंगे। आंख | | मान नहीं सकता। क्योंकि मानेगा, तो समर्पण करना पड़ेगा। पुरुष भी बंद हो गई, बाहर का आकाश दिखाई पड़ना बंद हो गया। समर्पण नहीं कर सकता। पुरुष संकल्प कर सकता है, साधना कर विचार भी बंद हो गए, बाहर के आकाश के बने प्रतिबिंब भी बंद सकता है, गौरीशंकर पर चढ़ सकता है। महावीर कहते हैं, कोई हो गए। और जिस दिन यह होगा, उसी दिन आप अंतर के लोक | परमात्मा नहीं है। प्रत्येक परमात्मा है। स्वयं को जान लिया, तो से पुनः उस विराट आकाश में पहुंच जाएंगे, जिस पर कोई खिड़की | | परमात्मा को जान लिया। किसी दूसरे को नहीं जानना है। नहीं है। और जिस दिन आप उस विराट आकाश को जान | पुरुष स्वयं में जीता है; स्त्री सदा दूसरे में जीती है। कभी वह बेटे लेंगे-चौखटे से रहित, फ्रेमलेस—उसी दिन आपको अनेक में | | में जीती है, कभी पति में जीती है, पर सदा दूसरे में जीती है। दूसरे एक और एक में अनेक दिखाई पड़ने लगेगा।
के बिना उसका होना न होने के बराबर हो जाता है। स्त्री का सारा जिन्हें एक में अनेक देखना है, उनके लिए भक्ति सुगम मार्ग है। | रस, सारा जीवन दूसरे से प्रतिध्वनित होता है। उसका बेटा प्रसन्न मैंने कहा, स्त्रैण चित्त का वह लक्षण है। भक्ति का मार्ग मूलतः | है, और वह प्रसन्न है। पुरुष दूसरे में नहीं जीता, अपने में जीता है, स्त्रैण है। महावीर से भक्ति नहीं करवा सकते आप, मीरा से ही | स्व-केंद्रित जीता है। स्त्री पर-केंद्रित जीती है। करवा सकते हैं। महावीर जैसे कि पुरुष चित्त के प्रतीक हैं। अगर । परमात्मा पर है। इसलिए जैसे-जैसे दुनिया में पुरुष द्वारा निर्मित पुरुष चित्त शुद्ध हो, तो महावीर जैसा होगा। अगर स्त्री चित्त शुद्ध | विज्ञान विजयी हुआ, वैसे-वैसे भक्ति के रूप खंडित हुए। क्योंकि हो, तो मीरा जैसा होगा। एक प्रतीक की तरह ले रहा हूं इन दो को। | विज्ञान पुरुष की खोज है, स्त्री की खोज नहीं है। कोई एक मैडम
स्त्री चित्त शुद्ध हो, तो मीरा जैसा होगा। तो मीरा गई है वृंदावन | क्यूरी नोबल प्राइज पा लेती हो; अपवाद है। और मैडम क्यूरी के और मंदिर के पुजारी ने कहा कि अंदर न आने दूंगा, क्योंकि मैं स्त्री पास पुरुष जैसा चित्त था, स्त्री जैसा नहीं। का चेहरा नहीं देखता। तो मीरा ने खबर भिजवाई कि मैं तो सोचती विज्ञान पुरुष की खोज है। इसलिए जैसे-जैसे विज्ञान जीतता थी, कृष्ण के सिवाय और कोई पुरुष नहीं है। आप भी पुरुष हैं, गया, वैसे-वैसे धर्म की बहुत बुनियादी शिलाएं आदमी तोड़ता इसका मुझे कुछ पता न था! मैं एक दर्शन आपका करना ही चाहती। | चला गया। क्योंकि उसके मार्ग ही अलग हैं। हूं। मैं दूसरे पुरुष को भी देख लूं!
___ अगर आपके पास समर्पण करने की क्षमता है, तो आपके लिए यह एक में अनेक को खोजने वाला चित्त है, जो कहता है कि कोई भी चरण परमात्मा के चरण बन सकते हैं। इसलिए अगर सिर्फ एक ही पुरुष है, कृष्ण। सब उसी में लीन हो गए। दूसरा तो स्त्रियां कह पाईं कि उन्हें पति ही परमात्मा है, और अगर कोई स्त्री
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