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गीता दर्शन भाग-3
प्रभु-स्मरण तो नहीं करने लगे। लेकिन अभी आधी रात मालूम | रोआं-रोआं शरीर का कंपने लगे। पड़ती है। अंधेरा है।
| ऐसे भी, अगर मैं बहुत प्रेम से भरा हआ हाथ आपके हाथ पर उठे। देखा कि राम तो बिस्तर पर मजे से सो रहे हैं। पर आवाज रखू, तो मेरे हाथ की तरंगों में भेद होगा। और मैं क्रोध से भरकर आ रही है! बहुत हैरान हुए कि कोई और तो आस-पास नहीं है। | और घृणा से भरकर यही हाथ आपके हाथ पर रखू, तो मेरी हाथ एक चक्कर झोपड़े का लगा आए। कोई भी नहीं है। फिर पास | | की तरंगों में भेद होगा। मेरे हृदय के भाव मेरे हाथ की तरंगें बनते आए। लेकिन जैसे राम के पास आते, आवाज बढ़ जाती; दूर जाते, | | तो हैं। इसलिए प्रेम से छुआ गया हाथ कुछ और ही स्पर्श लाता है। आवाज कम हो जाती। तो बहुत पास आकर, पैर के पास कान घृणा से छुआ गया हाथ कोई और ही स्पर्श लाता है। अभिशाप से रखकर सुना। भरोसा नहीं हुआ; विश्वास नहीं आया। हाथ के पास भरे हाथ में जहर आ जाता है। वरदान से भरे हाथ में अमृत बरस जाकर कान रखकर सुना; भरोसा नहीं आया। पूरे शरीर के | जाता है। रोएं-रोएं से जैसे राम की आवाज उठ रही है। घबड़ा गए कि मैं कोई | | तो भाव दौड़ते तो हैं शरीर के कोने-कोने तक। कोई कारण नहीं सपना तो नहीं देख रहा हूं! जाकर आंखें धोईं। मैं किसी भ्रांति, | | है कि प्रभु का स्मरण इतने गहरे में उतर जाए कि शरीर के . किसी हेल्यूसिनेशन में तो नहीं हूं! क्योंकि यह कैसे हो सकता है | कोने-कोने तक उसकी ध्वनि पैदा हो जाए। लेकिन जीवन के कि शरीर से आवाज आए! रातभर जगे बैठे रहे, कि जब राम उठे | | बहत-से रहस्य अज्ञात हैं; उनके नियम अज्ञात हैं। इसलिए वे हमें सुबह, तो उनसे पूछ लें।
रहस्यपूर्ण मालूम होते हैं, क्योंकि उनका विज्ञान हमें ज्ञात नहीं है। सुबह उठकर राम से पूछा, तो राम ने कहा, आ सकती है। | सतत स्मरण आत्मा को परमात्मा का बना रहता है एक बार क्योंकि जब से स्मरण हुआ उसका, तब से दिन हो या रात, भीतर | पदार्थ से चित्त हट जाए, पाप से चित्त हट जाए। तो सतत उसकी अनुगूंज चलती रहती है। हो सकता है, शरीर भी | कृष्ण कहते हैं, वैसा व्यक्ति परम आनंद को उपलब्ध होता है। कंपित हो रहा हो और आवाज आ गई हो। हो सकता है, राम ने कृष्ण हर सूत्र के बाद यही कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति परम आनंद कहा, क्योंकि मैंने तो कभी सोते में उठकर अपने शरीर को सुनने को उपलब्ध होता है, ऐसा व्यक्ति परम आनंद को उपलब्ध होता का उपाय भी नहीं है। हो सकता है। लेकिन भीतर मेरे चलता रहता है, ऐसा व्यक्ति परम आनंद को उपलब्ध होता है। यह परम आनंद है। भीतर चलता रहता है।
| क्या है? कुछ हमारी समझ में आता नहीं है सीधा। आनंद हमने कठिन नहीं है यह। क्योंकि शरीर भी तो विद्युत की तरंगों का जाना ही नहीं। परम आनंद क्या है? कोरा शब्द। कान पर गूंजता जाल है; ध्वनि भी तो विद्युत की तरंग है। दोनों में कोई भेद तो नहीं है, खो जाता है। है। और अगर भीतर बहुत गहरी अनुगूंज हो, तो कोई कारण नहीं हमने सुख जाना है थोड़ा-सा। थोड़ा-सा! जब प्रतीक्षा करते हैं है कि शरीर के तंतु क्यों न ध्वनित होने लगें! कोई कारण तो नहीं। तब, अपेक्षा करते हैं तब, इंतजार करते हैं तब। और हमने दुख
जो संगीत की गहरी पकड़ जानते हैं, उन्हें पता होगा कि अगर | जाना है बहुत-जब मिलता है तब, जब पा लेते हैं तब, जब पहुंच एक सूने कमरे में बंद द्वार करके, खाली कमरे में एक वीणा बजाई जाते हैं तब। जब प्रतीक्षा का होता है अंत और उपलब्धि आती है जाए और दसरी वीणा को दसरे कोने में खाली टिका दिया जाए. हाथ में. तो दख। रास्ते पर जानी हैं सख की कल्पनाएं सख के तो थोड़ी देर में उसके तार रिजोनेंस करने लगते हैं। एक वीणा बजे, | सपने; और मंजिल पर पहुंचकर झेली है पीड़ा दुख की। ये हम दूसरी वीणा जो खाली रखी है, कोई बजाता नहीं, उसके तार भी | जानते हैं, सुख और दुख हम जानते हैं। परम आनंद क्या है? कंपकर जवाब देने लगते हैं। रिजोनेंस पैदा हो जाता है। ध्वनियां । तो आमतौर से हम समझ लेते हैं, सुख का ही कोई बहुत बड़ा टकराती हैं उस वीणा से, उसके तार भी कंपित होकर उत्तर देने | | रूप होगा। नहीं, इस भ्रांति में न पड़ जाना आप। ऐसा मत सोचना लगते हैं।
| कि महा सुख होगा। शब्दकोश में यही लिखा हैं। शब्दकोशों में पूरा शरीर है तो विद्युत की तरंग। ध्वनि भी विद्युत का एक रूप यही लिखा है, आनंद-महा सुख, महान सुख, अनंत सुख। है। कोई आश्चर्य तो नहीं है कि भीतर ध्वनि बहुत गहरे, हृदय की हमारे पास सुख के अलावा तौलने का कोई उपाय नहीं है। अंतर-गुहा तक गूंजने लगे, तो शरीर रिजोनेंस करने लगे, लेकिन एक चम्मच से भी हिंद महासागर तौला जा सके, लेकिन
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