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+ पदार्थ से प्रतिक्रमण-परमात्मा पर -
सुख से आनंद नहीं तौला जा सकता। एक चम्मच से भी हिंद मानना ही मत। गीता बंद कर देना, सुख को खोज लेना। कृष्ण सुख महासागर को नाप लेना इनकंसीवेबल नहीं है। इसको हम सोच तक जाने का कोई रास्ता नहीं बता सकते। कृष्ण जो रास्ता बता रहे सकते हैं कि हो सकता है। बहुत वक्त लगेगा, लेकिन फिर भी हो हैं, वह सुख के पार जाने का है। लेकिन जो सुख के पार जाएगा, जाएगा। ऐसी कोई कठिनाई नहीं है। क्योंकि आखिर कितने ही वही दुख के पार जाएगा। अनंत चम्मचों से भरा होगा, लेकिन एक चम्मच कुछ तो सागर को इसलिए बुद्ध ने तो आनंद शब्द का उपयोग ही बंद कर दिया था खाली कर ही लेती है। दूसरी और कर लेगी, तीसरी और कर लेगी। इसी भ्रांति की वजह से। क्योंकि सुख और आनंद में हमें कुछ हो सकता है, पूरी मनुष्य जाति अनंत जन्मों तक भी एक-एक समानता मालूम पड़ती है। तो बुद्ध ने अपने जीवन में कभी आनंद चम्मच निकालती रहे, खाली करती रहे, लेकिन कभी न कभी का उपयोग नहीं किया। जब भी कोई पूछता था कि क्या होगा खाली हो जाएगा। इसकी कल्पना की जा सकती है। यह असंभव | | निर्वाण में? तो वे कहते थे, दुख क्षय हो जाएगा, बस। यह नहीं नहीं है।
| कहते थे कि आनंद मिल जाएगा। अगर कोई बहुत ही जिद्द करता लेकिन सुख की चम्मच से हम आनंद को जरा भी नहीं तौल और कहता कि विधायक रूप से कुछ बताओ, तो बुद्ध कहते, पाएंगे; वह असंभव है। क्यों? कारण है उसका। चम्मच में सागर | शांति। आनंद का उपयोग नहीं करते थे। क्योंकि आनंद से सुख का बंध जाए, तो क्वांटिटी का भर फर्क रहता है, क्वालिटी का फर्क हमारा खयाल बना हुआ है। कहीं ऐसा लगता है कि सुख ही नहीं रहता। एक चम्मच में आपने सागर भर लिया, और नीचे हिंद | बढ़ते-बढ़ते-बढ़ते आनंद हो जाएगा। महासागर है, और चम्मच में थोड़ा-सा सागर आ गया। दोनों में | सुख आनंद नहीं होगा। सुख भी पदार्थ से जुड़ाव है, दुख भी क्वांटिटी का फर्क है, परिमाण का; गुण का कोई भेद नहीं है, पदार्थ से जुड़ाव है। सुख भी पाप है, दुख भी पाप है। दोनों ही क्वालिटी का कोई भेद नहीं है। चम्मच का सागर चखो कि नीचे का महासागर चखो; एक-सा स्वाद है, एक-सा पानी है। चम्मच आपने कोई ऐसा सुख जाना है, जो पदार्थ से न जुड़ा हो? आपने के कणों का विश्लेषण करो, सागर के कणों का विश्लेषण करो, कोई ऐसा दुख जाना है, जो पदार्थ से न जुड़ा हो? अगर जाना हो, एक-सा हाइड्रोजन, आक्सीजन है। चम्मच सागर के बाबत पूरी तो वह आनंद है। लेकिन हम तो जो भी जाने हैं, वह पदार्थ से जुड़ा खबर दे देगी। चम्मच सागर का मिनिएचर रूप है। | है। दुख जाना है तो; धन खो गया, दुख आ गया। सुख जाना है
लेकिन सुख और आनंद में गुणात्मक, क्वालिटेटिव अंतर है, तो; धन मिल गया, सुख आ गया। दुख जाना है तो; प्रियजन क्वांटिटी का नहीं। इसलिए कोई कल्पना सुख से नहीं बनेगी। पर बिछुड़ गया, तो दुख आ गया। सुख जाना है तो; प्रियजन मिल जब भी हम सुनते हैं, अर्जुन, इससे परम आनंद उपलब्ध होगा, तो गया, तो सुख आ गया। लेकिन सब पदार्थ से है। • हमारे मन में होता है, जरूर बड़ा सुख मिलेगा। बिलकुल भूल आमतौर से हमारे मुल्क के लोग पश्चिम के लोगों को जाना, सुख की बात ही भूल जाना। सुख से आनंद का कोई भी मैटीरियलिस्ट कहते हैं। लेकिन इस जमीन पर सभी मैटीरियलिस्ट संबंध नहीं है।
हैं, सभी लोग पदार्थवादी हैं। पश्चिम के लोग हैं, ऐसी बात कहनी तो फिर हम तो दो ही चीजें जानते हैं, सुख और दुख; तीसरी उचित नहीं है। सभी लोग पदार्थवादी हैं। अपदार्थवादी तो वह है, . कोई चीज जानते नहीं। तो या तो सुख से संबंध होगा, अगर सुख जिसकी कृष्ण बात कर रहे हैं। वैसे लोग न पूरब में हैं, न पश्चिम में से नहीं है, तो फिर क्यों हमें उलझाते हैं। क्योंकि फिर दुख ही बच | हैं। कभी-कभी कोई एकाध आदमी होता है। बाकी सब पदार्थवादी रहता है। उसके अलावा तीसरी चीज हमें कुछ पता नहीं है। हैं। चाहे सुख, चाहे दुख, हम पदार्थ की ही तलाश करते हैं।
दुख से भी आनंद का कोई संबंध नहीं है। अगर ठीक से समझें, ___ हां, एक फर्क हो सकता है कि पश्चिम के लोग सिंसियर तो जहां दुख और सुख दोनों शेष नहीं रह जाते, वहां आनंद फलित मैटीरियलिस्ट हैं, और हम इनसिसियर मैटीरियलिस्ट हैं। वे होता है। लेकिन वह अपरिचित है. वह अननोन है।
ईमानदार पदार्थवादी हैं। वे कहते हैं कि ठीक है, हमें तो सुख और इसलिए आप अगर सुख की खोज में हों, तो कृष्ण की बातों में | दुख ही सब कुछ है; आनंद हमें मालूम ही नहीं कि है। हम मानते मत पड़ना। अगर सुख की खोज में हों, तो भूलकर कृष्ण की बात भी नहीं कि है, हम तो सुख और दुख में जीते हैं।
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