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पदार्थ से प्रतिक्रमण - परमात्मा पर >
तो कबीर, कोई पूछ रहा था, उसे उठाकर अपने झोपड़े के बाहर ने गए और कहा, यहां आ ! क्योंकि शायद मैं कह न सकूं, लेकिन बता तो सकता हूं।
विगिंस्टीन ने अपनी एक अदभुत किताब में, ट्रेक्टेटस में एक वाक्य लिखा है कि कुछ चीजें हैं, जो कही नहीं जा सकतीं, लेकिन बताई जा सकती हैं। देअर आर थिंग्स व्हिच कैन नाट बी सेड, बट | व्हिच कैन बी शोड । कही नहीं जा सकतीं, बताई जा सकती हैं। बहुत-सी चीजें हैं। जो भी महत्वपूर्ण चीजें हैं, कही नहीं जा सकतीं। लेकिन इशारा तो किया ही जा सकता है।
विगिंस्टीन तो बड़ा तर्क - निष्णात व्यक्ति था। शायद इस सदी में उससे बड़ा कोई तार्किक नहीं था । पर उसने भी यह अनुभव किया कि कुछ चीजें हैं, जो नहीं कही जा सकतीं, सिर्फ बताई जा सकती हैं।
तो कबीर ने कहा कि बाहर आओ, शायद कोई चीज से मैं तुम्हें बता दूं। कबीर उस आदमी को लेकर चले। थोड़ी देर बाद उस आदमी ने कहा, अब बताइए भी! कबीर ने कहा, जरा कोई मौका तो आ जाने दो। मुझे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है कि कैसे तुम्हें बताऊं । वही मैं खोज रहा हूं। जरा और चलें। थोड़ी देर में वह आदमी थ गया। उसने कहा, मैं घर जाऊं, मुझे दूसरे काम करने हैं। कब बताइएगा? कबीर ने कहा कि ठहरो-ठहरो, आ गया मौका।
नदी से एक स्त्री पानी की गागर भरकर सिर पर रखकर चल पड़ी है। शायद उसका प्रियजन उसके घर आया होगा – कोई अतिथि, कोई मेहमान | उसके चेहरे पर बड़ी प्रसन्नता है। उसकी चाल में तेज गति है। वह उमंग से भरी और नाचती जैसी चलती है, और ऐसी चल रही है। गागर उसने बिलकुल छोड़ रखी है, सिर पर गागर संभली है।
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कबीर ने कहा, इस स्त्री को देखो। यह कुछ गुनगुना रही है गीत । शायद उसका प्रियजन आया होगा, उसका प्रेमी आया होगा। प्रेमी प्यासा होगा, उसके लिए पानी लेकर जाती है। दौड़ती जाती है ! हाथ दोनों छूटे हुए हैं, गागर सिर पर है। मैं तुमसे पूछता हूं, इसको गागर की याद होगी या नहीं होगी ? गीत गाती है, चलती है रास्ते पर; काम में लगी है पूरा गागर का स्मरण होगा कि नहीं होगा ? उस आदमी ने कहा, स्मरण नहीं होगा, तो गागर नीचे गिर जाएगी!
तो कबीर ने कहा, यह साधारण-सी औरत रास्ता पार करती है, गीत गाती है, फिर भी गागर का स्मरण इसके भीतर बना है। तो तुम
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मुझे इससे भी गया-बीता समझते हो कि मैं कपड़ा बुनता हूं और परमात्मा का खयाल करने के लिए मुझे अलग से समय निकालना पड़ेगा? मेरी आत्मा उसमें निरंतर लगी ही है। इधर कपड़ा बुनता रहता है, कपड़े के बुनने का काम शरीर करता है, आत्मा उधर प्रभु के गुणों में लीन बनी रहती है, डूबी रहती है । और ये हाथ भी, आत्मा प्रभु में डूबी रहती है, इसलिए आनंद से मग्न होकर कपड़ा बुनते हैं।
कपड़ा भी फिर कबीर का साधारण नहीं बुना जाता। और कबीर जब ग्राहक को बेचते थे कपड़ा, तो कहते थे, राम, बहुत सम्हलकर | वापरना। साधारण कपड़ा नहीं है; प्रभु की स्मृति भी इसमें बुनी है। वे ग्राहक से कहते थे, राम, जरा सम्हलकर वापरना।
कोई ग्राहक कभी-कभी पूछ भी लेता कि मेरा नाम राम नहीं है ! तो कबीर कहते कि मैं तुम्हारे उस नाम की बात कर रहा हूं, जो इस | नाम के भी पहले तुम्हारा था और इस नाम के बाद भी तुम्हारा होगा।
तुम्हारे असली नाम की बात कर रहा हूं। यह बीच में तुमने कौन से नाम रखे, तुम हिसाब-किताब रखो। बाकी जब आखिर में सब नाम गिर जाएंगे, तो जो बच रहेगा, मैं उसकी बात कर रहा हूं।
प्रभु का स्मरण, आत्मा का उसमें सतत लगा रहना, तभी संभव है, जब चित्त पाप से मुक्त हो जाए। चित्त पाप से मुक्त हो जाए, पार हो जाए, अतीत हो जाए, उठ जाए ऊपर, पदार्थ की दौड़ छूट तो फिर लगा ही रहता है। यह ऐसा लग जाता है, जिसका कोई हिसाब नहीं। सब करते हुए भी लगा रहता है।
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और जिस दिन सब करता हुआ लगा रहे, उसी दिन योग पूर्ण | हुआ। अगर कोई कहे कि मैं काम करता हूं, तो मुझे प्रभु की स्मृति भूल जाती है, तो उसका प्रभु बड़ा बचकाना है, बड़ा छोटा है। काम से हार जाता है ! क्षुद्र-सा काम और प्रभु की स्मृति को तोड़ दे, तो अभी प्रभु की स्मृति नहीं है, कोई नकली स्मृति होगी। ऐसा जबर्दस्ती थोप - थापकर बैठ गए होंगे अपने को कि प्रभु का स्मरण कर रहे हैं। लेकिन होगा नहीं । हो नहीं सकता। अगर प्रभु की स्मृति आ गई है, पदार्थ से मन छूट गया है और प्रभु की याद आ गई है, तो अब कुछ भी करिए और कहीं भी चले जाइए, और जागिए कि सोइए, स्मृति जारी रहेगी।
राम एक रात सो रहे हैं अपने कमरे में। एक मित्र सरदार पूर्णसिंह उनके कमरे पर मेहमान थे स्वामी राम के । आधी रात कुछ गर्मी थी, नींद खुल गई; बड़े चौंककर हैरान हुए। जोर-जोर से राम की आवाज आ रही है, राम सोचा कि कहीं रामतीर्थ उठकर