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पदार्थ से प्रतिक्रमण-परमात्मा पर -
बढ़िया शब्द है। बुद्ध ने कहा, संपत्ति तो वही है, जिससे संतोष छोटी-सी कहानी से समझाने की कोशिश करूं, मुझे बहुत प्रीतिकर मिल जाए। वहां तो मैंने सिर्फ विपत्ति पाई, क्योंकि सिवाय दुख के | रही है। कुछ भी न पाया। विपत्ति पाई। जिसे तुम संपत्ति कहते हो, वह सुना है मैंने कि एक सांझ, रात उतरने के करीब है, अंधेरा घिर विपत्ति है। मैं उसे छोड़कर जा रहा हूं। विपत्ति को छोड़कर जा रहा | रहा है, और एक वनपथ से दो संन्यासी भागे चले जा रहे हैं। बूढ़े हूं संपत्ति की तलाश में।
संन्यासी ने पीछे युवा संन्यासी से कई बार, बार-बार पूछा, कोई पदार्थ की तरफ से मुंह मोड़ना पड़े। जरूरी नहीं कि बुद्ध की तरह | खतरा तो नहीं है? वह युवा संन्यासी थोड़ा हैरान हुआ कि संन्यासी छोड़कर जंगल जाएं। बुद्ध जैसा छोड़ने को भी तो नहीं है हमारे | | को खतरा कैसा! और जिसको खतरा है, उसी को तो गृहस्थ कहते पास। बुद्ध जैसा हो, तो छोड़ने का मजा भी है थोड़ा। कुछ भी तो | | हैं। खतरा होता ही है कुछ चीज हो पास, तो खतरा होता है! न हो नहीं है, पदार्थ भी नहीं है। परमात्मा नहीं है, वह तो ठीक है। पदार्थ | | कुछ, तो खतरा होता है? और कभी इस बूढ़े ने नहीं पूछा कि कोई भी क्या है! कुछ भी नहीं है।
खतरा है; आज क्या हो गया! मगर बड़े मजे की बात है कि बुद्ध को इतनी संपत्ति विपत्ति | फिर एक कुएं पर पानी पीने रुके। बूढ़े ने अपना झोला जवान दिखाई पड़ी। और हम वह जो छोटा-सा मनीबेग खीसे में रखे हैं, | | संन्यासी के, अपने शिष्य के कंधे पर दिया और कहा, सम्हालकर वह संपत्ति मालूम पड़ती है! बुद्ध को साम्राज्य व्यर्थ मालूम पड़ा। रखना! तभी उसे लगा कि खतरा झोले के भीतर ही होना चाहिए। हमने जो अपने मकान के आस-पास थोड़ी-सी फेंसिंग कर रखी | बूढ़ा पानी भरने लगा, उसने हाथ डालकर खतरे को टटोला। देखा है, वह साम्राज्य मालूम पड़ता है। इसे थोड़ा देखना जरूरी है; कि सोने की ईंट अंदर है। खतरा काफी है! उसने ईंट को निकालकर समझना जरूरी है कि जिसे हम संपत्ति कह रहे हैं, वह संपत्ति है ? | तो फेंक दिया कुएं के नीचे, और एक पत्थर करीब-करीब उसी ‘छोड़ने को नहीं कह रहा हूं, समझने को कह रहा हूं। समझ से | वजन का झोले के भीतर रखकर कंधे पर टांगकर खड़ा हो गया। तत्काल रस छूट जाता है। फिर आप कहीं भी रहें; फिर आप कहीं बूढ़े ने जल्दी-जल्दी पानी पीया। भी रहें-मकान में रहें कि मकान के बाहर-इससे फर्क नहीं | जिसके पास खतरा है, वह पानी भी तो जल्दी-जल्दी पीता है! पड़ता। फिर मकान के भीतर भी आप जानते हैं कि मकान में नहीं। | आप सभी जानते हैं उसको! सबके भीतर वह बैठा हुआ है, जो हैं। फिर आपके हाथ में धन रहे या न रहे, लेकिन भरा हुआ हाथ जल्दी-जल्दी पानी पीता है, जल्दी-जल्दी खाना खाता है, जल्दीभी जानता है कि गहरे अर्थों में सब कछ खाली है। और जिस दिन जल्दी चलता है. जल्दी-जल्दी पजा-प्रार्थना करता है। जल्दी-जल्दी वह समझ पैदा हो जाती है, उस दिन प्रतिक्रमण शुरू हो जाता है। | बेटे-बच्चों को प्रेम की थपकी लगाता है। जल्दी-जल्दी सब चल
पाप है, आक्रमण पदार्थ पर; पुण्य है, प्रतिक्रमण पदार्थ से। और | | रहा है, क्योंकि खतरा भारी है। . समझ के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है। क्योंकि नासमझी के नहीं, पानी पीया भी कि नहीं पीया! प्यास बुझी कि नहीं बुझी!
अतिरिक्त पदार्थ से कोई जोड़ नहीं है हमारा। नासमझी ही हमारा | जल्दी से झोला कंधे पर लिया; टटोलकर देखा, खतरा साबित है; जोड़ है। नासमझ हैं, इसीलिए जुड़े हैं। सोचते हैं, संपत्ति है, | चल पड़े। फिर रास्ते में पूछने लगा कि अंधेरा घिरता जाता है। रास्ता इसलिए पकड़े हैं। जान लेंगे कि संपत्ति नहीं है, हाथ खुल जाएंगे, | सूझता नहीं। कोई दूर गांव का दीया भी दिखाई नहीं पड़ता। बात पकड़ छूट जाएगी।
| क्या है! हम भटक तो नहीं गए? कुछ खतरा तो नहीं है? ध्यान रहे, पकड़ छूट जाने का अर्थ भाग जाना नहीं है, एस्केप | वह युवक खिलखिलाकर हंसने लगा। और उस अंधेरी रात में नहीं है; क्लिगिंग छूट जाना है, पकड़ छूट जाना है। ठीक है, वस्तुएं | उसकी खिलखिलाहट वृक्षों में गूंजने लगी। उस बूढ़े ने कहा, हंसते हैं, उनका उपयोग किया जा सकता है। बराबर किया जाना चाहिए। | हो पागल! कोई सुन लेगा, खतरा हो जाएगा! उस युवक ने कहा, वह परमात्मा की अनुकंपा है कि इतनी वस्तुएं हैं और उनका उपयोग | अब आप बेफिक्र हो जाएं। खतरे को मैं कुएं पर ही फेंक आया हूं। किया जाए। जीवन के लिए उनकी जरूरत है। लेकिन प्रभु को पाने बूढ़े ने घबड़ाकर झोले के भीतर हाथ डाला। निकाला, तो सोने के लिए उन पर जो हमारी पकड़ है...।
| की ईंट तो नहीं है, पत्थर का टुकड़ा है। लेकिन दो मील तक पत्थर पकड़ बड़ी अजीब चीज है। पकड़ सिर्फ खयाल है। एक का टुकड़ा भी खतरा देता रहा! हृदय धड़कता रहा जोरों से!
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