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________________ गीता दर्शन भाग-3 उस आदमी ने कहा, यह मेरी समझ में आया। माफ करो कि मैंने प्रतिक्रमण पुण्य है। वापस लौट आएं। तुमसे कहा कि असंगत बात पूछते हो। संगत बात थी। लेकिन तो एक तो यह आपसे कहना चाहता हूं कि पदार्थ अनंत है, दूसरा क्या सवाल है? इसलिए कितना ही आक्रमण करो, कभी भी पा न सकोगे प्रभु को। उस आदमी ने कहा कि जरा चलकर भी मुझे बताओ कि कितनी और जब तक प्रभु न मिल जाए, तब तक शांति नहीं, संतोष नहीं, चाल से चलते हो। क्योंकि दूरी चाल पर निर्भर करती है, मीलों पर | चैन नहीं। और दूसरी बात यह कहना चाहता हूं कि उस बूढ़े ने कहा नहीं। आठ मील, तेज चलने वाले के लिए चार मील हो जाएंगे; कि पीछे लौटो, दिल्ली आठ मील दूर है। मैं आपसे कहना चाहता धीरे चलने वाले के लिए सोलह मील हो जाएंगे। और एक कदम हूं, पीछे लौटो, परमात्मा आठ इंच भी दूर नहीं है। आठ मील बहुत चलकर बैठ गए, तो आठ मील अनंत हो जाएंगे। इसलिए जरा | ज्यादा है। असल में पीछे लौटो, तो आप ही परमात्मा हो। अगर चलकर बताओ! चाल क्या है? क्योंकि सब रिलेटिव है। दिल्ली ठीक से कहें, तो ऐसा कहना पड़ेगा। जरा-सा भी फासला नहीं है। की दूरी या सभी दूरियां रिलेटिव हैं, सापेक्ष हैं। कितना चलते हो? ___ मोहम्मद ने कहा है—कोई पूछता है मोहम्मद से कि प्रभु कितने उस आदमी ने कहा कि माफ करना। यह भी मेरे खयाल में नहीं | दूर है तो वे कहते हैं कि यह जो गले की धड़कती हुई नस है, इससे . था। तुम ठीक ही पूछते हो। | भी ज्यादा निकट। इसे काट दो, तो आदमी मर जाता है। यह जीवन परमात्मा भी, जिस दिशा में हम जाते हैं, पदार्थ की दिशा में, | के बहुत किनारे है। मोहम्मद कहते हैं, यह जो गले की धड़कती नस वहां हमें कभी नहीं मिलेगा। दिल्ली तो शायद मिल जाए, दिल्ली | है, इससे भी निकट, इससे भी पास, जीवन से भी पास। के उलटे चलकर भी, क्योंकि जमीन का घेरा बहुत बड़ा नहीं है। ___ लौटने भर की देरी है। लौटकर चलना भी नहीं पड़ता, क्योंकि लेकिन पदार्थ का घेरा अनंत है। अगर हम पदार्थ की तरफ खोजते | चलने लायक फासला भी नहीं है। सिर्फ लौटना, जस्ट रिटर्निंग इज़ हुए चलते हैं, तो हम अनंत तक भटक जाएं, तो भी परमात्मा तक इनफ। पर अबाउट टर्न, पूरा का पूरा लौटना पड़े, एकदम पूरा। नहीं लौटेंगे। मुख जहां है, उससे उलटा कर लेना पड़े। तो एक तो पदार्थ का घेरा अनंत है, जमीन का घेरा तो बहुत छोटा | पदार्थ की तरफ जो उन्मुखता है, वह पाप है। और पदार्थ की तरफ है। यह जमीन तो बहुत मीडियाकर प्लेनेट है; बहुत ही गरीब, पीठ कर लेना पुण्य है। इसलिए दान पुण्य बन गया, और कोई कारण छोटा-मोटा, क्षुद्र। इसकी कोई गिनती नहीं है। यह हमारा सूरज इस न था। क्योंकि जिसने धन दिया, उसने प्रतिक्रमण शुरू किया। पृथ्वी से साठ हजार गुना बड़ा है। लेकिन हमारा सूरज भी बहुत जिसने धन लिया, उसने आक्रमण किया। इसलिए त्याग पुण्य बन मीडियाकर है। वह भी बहुत मध्यमवर्गीय प्राणी है, मिडिल क्लास! गया, क्योंकि त्याग का अर्थ है, पदार्थ की तरफ पीठ कर ली। से हजार-हजार. दस-दस हजार गने बडे सर्य हैं. महासर्य हैं। बद्ध घर छोडकर गए हैं. तो जो सारथी उन्हें छोडने गया है. रास्ते इस पृथ्वी की तो कोई गिनती नहीं है। यह तो बड़ी छोटी जगह है। | में बहुत रोने लगा। और उसने कहा कि मैं कैसे लौटूं आपको वह तो हम बहुत छोटे हैं, इसलिए पृथ्वी बड़ी मालूम पड़ती है। छोड़कर! इतना धन, इतना अपार धन छोड़कर जा रहे हैं आप, इसकी स्थिति बहुत बड़ी नहीं है। चले जाएं, तो पहुंच ही जाएंगे | पागल तो नहीं हैं? मैं छोटा हूं, छोटे मुंह बड़ी बात मुझे नहीं कहनी दिल्ली। लेकिन पदार्थ तो अनंत है। उसके फैलाव का तो कोई अंत | चाहिए। लेकिन इस अंतिम क्षण में न कहूं, यह भी ठीक नहीं। आप नहीं। वह तो हम कितना ही चलते जाएंगे, वह आगे-आगे-आगे | पागल हैं! इतना धन छोड़कर जा रहे हैं! मौजूद रहेगा। बुद्ध ने कहा, कहां है धन? तुम मुझे दिखाओ, तो मैं वापस लौट तो एक फर्क तो यह करना चाहता हूं कि पदार्थ अनंत है, इसलिए जाऊं। उन महलों में, तुम तो बाहर ही थे, मैं भीतर था। उन उस दिशा से कभी परमात्मा तक नहीं आ पाएंगे, लौटना ही पड़ेगा। | तिजोड़ियों को तुमने दूर से देखा है; उनकी चाबियां मेरे हाथ में थीं। जैनों के पास एक बहुत अच्छा शब्द है, वह है, प्रतिक्रमण। उस राज्य के रथ के तुम सिर्फ चालक थे, मैं उसका मालिक था। प्रतिक्रमण का अर्थ है, रिटर्निंग बैक, वापस लौटना। आक्रमण का | | मैं तुमसे कहता हूं कि मैंने वहां धन कहीं नहीं पाया। क्योंकि धन अर्थ है, जाना, हमला करना; और प्रतिक्रमण का अर्थ है, वापस तो वही है, जिससे आनंद मिल जाए। लौटना। हम सब आक्रामक हैं पदार्थ की तरफ, वही पाप है। बुद्ध ने जो शब्द उपयोग किया है, वह है, संपत्ति। वह बहुत 198]
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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