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________________ पदार्थ से प्रतिक्रमण-परमात्मा पर → हर बार वे आदमी बाहर आते थे, तो बहुत खुश। कुछ बचाकर दौड़ पाएगा। इन दो में से एक ही चुनना पड़ता है। वह गली बहुत लाते थे। आखिरी बार छाती पीटते रोते हुए बाहर निकले और एक संकरी है, उसमें दो नहीं समाते। लाश लेकर बाहर निकले। उस आदमी का इकलौता बेटा अंदर रह __ और उसकी दिशा बड़ी विपरीत है। वह डायमेंशन अलग है। गया था और जलकर समाप्त हो गया था। वह डायमेंशन बिलकुल भिन्न है, वह आयाम भिन्न है। अगर पदार्थ स्वामी राम ने अपनी डायरी में लिखा कि उस दिन उस मकान | की तरफ चित्त दौड़ता है, तो उसकी तरफ कभी नहीं दौड़ पाएगा। से चीजें तो सब बचा ली गईं, लेकिन मकान का मालिक, होने क्योंकि पदार्थ साकार है, और वह निराकार है। क्योंकि पदार्थ जड़ वाला मालिक, जलकर समाप्त हो गया। उन्होंने अपनी डायरी में | है, और वह चेतन है। क्योंकि पदार्थ बाहर है, और वह भीतर है। लिखा है कि करीब-करीब हर आदमी की जिंदगी में ऐसी ही घटना क्योंकि पदार्थ नीचे है, और वह ऊपर है। क्योंकि पदार्थ मृत्यु में ले घटती है। चीजें तो बच जाती हैं, मालिक मर जाता है! चीजें सब जाता, और वह अमृत में। वह बिलकुल उलटा है, बिलकुल बच जाती हैं। आखिर में सब मकान, सब धन, तिजोड़ी, सब | विपरीत। तो पदार्थ की तरफ दौड़ता हुआ चित्त वहां न जा सकेगा। व्यवस्थित हो जाता है। और वह जिसके लिए किया था, वह सुना है मैंने, एक आदमी भागा हुआ जा रहा है एक रास्ते से। मालिक मर जाता है! | तेजी में है। सांझ ढलने के करीब है। राह के किनारे बैठे हुए एक हमारी सारी सफलता सिवाय हमारी कब्र के और कुछ नहीं आदमी से उसने पूछा कि दिल्ली कितनी दूर है? उस बूढ़े आदमी बनती। और हमारे सारे प्रयत्न हमें सिवाय मरघट के और कहीं नहीं | ने कहा, दो बातों का जवाब पहले दे दो, फिर मैं बताऊं कि दिल्ली ले जाते। और जिंदगी का पूरा अवसर, जिन चीजों को जोड़ने में, | कितनी दूर है। उसने कहा, अजीब आदमी मिले तुम भी! इतना इकट्ठा करने में हम गंवाते हैं, कृष्ण जैसे लोग कहते हैं कि उस सीधा बता दो कि दिल्ली कितनी दर है। दो बातों के सवाल और अवसर में हम परमात्मा को भी पा सकते थे, जिसे पाकर परम | जवाब का क्या सवाल है? उस बूढ़े आदमी ने कहा, फिर मुझसे आनंद भी मिलता है और मृत्यु के अतीत भी आदमी हो जाता है। | मत पूछो। क्योंकि मैं गलत जवाब देना कभी पसंद नहीं करता। मरता भी नहीं। कोई और नहीं था, इसलिए मजबूरी में उस जल्दी जाने वाले लेकिन पाप से भरा चित्त यह न कर पाएगा। पाप से भरा चित्त, आदमी को भी उस बूढ़े से कहना पड़ा, अच्छा भाई, पूछ लो तुम्हारे अर्थात पदार्थ की ओर दौड़ता हुआ चित्त। हम सबका दौड़ रहा है सवाल। लेकिन मेरी समझ में नहीं आता; कोई संगति नहीं है। मैं पदार्थ की ओर। इधर पदार्थ दिखा नहीं कि चित्त दौड़ा नहीं। रास्ते | | पूछता हूं, दिल्ली कितनी दूर है, इसमें मुझसे पूछने का कोई सवाल पर देखते हैं एक सुंदर व्यक्ति को गुजरते हुए, चित्त दौड़ गया। देखा ही नहीं है। एक मकान खूबसूरत, चित्त दौड़ गया। एक चमकती हुई कार | पर उस बूढ़े ने कहा, तो तुम जाओ। नहीं तो मेरे दो सवाल! • गुजरी, चित्त दौड़ गया। | पहला तो यह कि तुम जिस तरफ जा रहे हो, इसी तरफ जाने का इस चित्त को समझना पड़ेगा, अन्यथा पाप में ही जीवन बीत | | इरादा है? तो दिल्ली बहुत दूर है। क्योंकि दिल्ली आठ मील पीछे जाता है। यह दौड़ ही रहा है पूरे वक्त, यह तलाश ही कर रहा है। छूट गई है। अगर ऐसे ही जाने का है, तो दिल्ली पहुंचोगे जरूर, और अगर सड़क से कोई कार न गुजरे, और सड़क से कोई स्त्री न | | यह मैं नहीं कहता कि गलत जा रहे हो, लेकिन पूरी जमीन का निकले, और कोई सुंदर भवन न दिखाई पड़े, कोई सुंदर पुरुष न चक्कर लगाकर। और वह भी बिलकुल सीधी, नाक की रेखा में दिखाई पड़े, कुछ भी न दिखाई पड़े, तो हम आंख बंद करके चलना। जरा चूके, कि चक्कर चूक गया, तो दिल्ली से फिर दिवास्वप्न देखने लगते हैं। उसमें कारें गुजरने लगती हैं; स्त्री-पुरुष बचकर निकल जा सकते हो। सिर मत हिलाना जरा भी। बिलकुल गुजरने लगते हैं; धन, शान-शौकत गुजरने लगती है। सब भीतर नाक की सीध में जाना। फिर भी मैं पक्का नहीं कहता कि दिल्ली चलाने लगते हैं। लेकिन चित्त पदार्थ की तरफ ही दौड़ता रहता है। पहुंचोगे। सारी जमीन घूमकर भी जरा भी चूक गए, इरछे-तिरछे हो जागते हैं तो, सोते हैं तो, सपना देखते हैं तो—चित्त पदार्थ की तरफ गए, तो फिर चूक जाओगे। इसलिए मैं पूछता हूं कि इरादा क्या है? ही दौड़ता रहता है। | इसी तरफ जाने का है? और अगर लौटने की तैयारी हो, तो दिल्ली यह पदार्थ की तरफ दौड़ता हुआ चित्त परमात्मा की तरफ नहीं बहुत पास है; पीठ के पीछे है। आठ ही मील का फासला है। 197
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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