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गीता दर्शन भाग-3
तरफ इकट्ठी हो जाती हैं कि उनके बीच में हम कहां समाप्त हो गए, मन में नहीं है। वस्तुओं का रस ही सभी तरह के पाप करवा देता है हमें पता भी नहीं चलता। वस्तुओं में जिसने भी सीधा रस लेने की फिर। फिर वस्तुओं की दौड़ में कौन से पाप करने, कौन से नहीं कोशिश की, वह वस्तुओं से दब जाएगा और स्वयं को खो देगा। करने, इसका विचार करना मुश्किल हो जाता है। वस्तुएं सब पाप
और जिस व्यक्ति ने स्वयं को बचाने की कोशिश की और वस्तुओं करवा लेती हैं। आखिर बड़े सम्राट अगर इतनी हत्याएं कर जाते से अपने को पार रखा; जाना सदा कि वस्तुओं का उपयोग है; हैं–नादिर या सिकंदर या हिटलर या स्टैलिन–अगर बड़े वस्तुएं साधन हैं, साध्य नहीं; मीन्स हैं, एंड नहीं; उनका उपयोग राजनीतिज्ञ सब तरह के पाप कर जाते हैं, तो किसलिए? खयाल कर लेना है; जरूरत है उनकी, लेकिन जीवन का परम सौभाग्य है कि सत्ता हाथ में होगी, तो वस्तुओं की मालकियत हाथ में उनसे फलित नहीं होता है।
होगी। खयाल है कि धन हाथ में होगा, तो सारी वस्तुएं खरीदी जा जीसस का वचन है-विचारणीय है-जीसस ने कहा है, मैन | सकती हैं। कैन नाट लिव बाइ ब्रेड अलोन, आदमी अकेली रोटी से नहीं जी। लेकिन सारी वस्तुएं खरीद ली जाएं और मुझे यह पता न चले सकता।
कि मैं वस्तुओं से अलग भी कुछ हूं, तो मेरे जीवन में पाप घिर इसका यह मतलब नहीं है कि आदमी बिना रोटी के जी सकता जाएगा, अंधकार भी घिर जाएगा, पदार्थ भी भारी पत्थर की तरह है। इसका यह मतलब नहीं है। क्योंकि बिना रोटी के कोई नहीं जी | मेरी छाती पर पड़ जाएंगे, लेकिन मैं खो जाऊंगा। सकता। लेकिन जब जीसस कहते हैं कि आदमी अकेली रोटी से | | स्वामी राम टोकियो में मेहमान थे। और तब की बात है, जब नहीं जी सकता, तो उनका कहना यह है कि रोटी जरूरत तो है, | टोकियो में नए ढंग के मकान बहुत कम थे, सभी लकड़ी के मकान लक्ष्य नहीं है।
थे। एक सांझ निकलते थे, और एक मकान में आग लग गई है; अगर आपकी सब जरूरतें भी पूरी कर दी जाएं, तो भी आपको लोग सामान बाहर निकाल रहे हैं। जिसका मकान है, वह छाती जिंदगी न मिलेगी। तो भी जीवन का फूल नहीं खिलेगा। तो भी पीटकर रो रहा है। राम भी उस आदमी के पास खड़े होकर उस जीवन की सगंध नहीं प्रकट होगी। तो भी जीवन की वीणा नहीं आदमी को गौर से देखने लगे। बजेगी। सब मिल जाए, तो भी अचानक पाया जाता है कि कुछ शेष | | वह छाती पीट रहा है, रो रहा है और चिल्ला रहा है, कह रहा रह गया।
| है, मैं मर गया! राम थोड़े चिंतित हुए, क्योंकि वह आदमी बिलकुल वह शेष वही रह गया, जो हमारे भीतर था और जिसे हम | नहीं मरा है। बिलकुल साबित, पूरा का पूरा है। चारों तरफ उसके वस्तुओं से पार करके कभी न देख पाए, और कभी न जान पाए। | घूमकर भी देखा। उस आदमी ने कहा भी कि क्या देखते हो! मैं मर वही शेष रह गया। वही खाली जगह रह जाएगी।
गया हूं, लुट गया, सब खो गया। इसलिए अक्सर ऐसा होता है. जिनके पास सब होता है. वे बडी राम बडे चिंतित हए. क्योंकि उसका कछ भी नहीं खोया है। वह एंप्टीनेस, बड़ा खालीपन अनुभव करते हैं। सब रिक्त हो जाता है | आदमी पूरा का पूरा है। लेकिन हां, मकान में तो आग लगी है, और भीतर। ऐसा लगता है कि सब तो है, लेकिन अब! जब तक सब लोग ला रहे हैं सामान। तिजोड़ियां निकाली जा रही हैं। कीमती नहीं होता, तब तक एक भरोसा भी रहता है कि एक कार और पोर्च | | वस्त्र निकाले जा रहे हैं। हीरे-जवाहरात निकाले जा रहे हैं। फिर में खड़ी हो जाएगी, तो शायद सब कुछ मिल जाएगा। फिर कारों | आखिरी बार आदमियों ने आकर कहा कि अब एक बार और हम की कतार पोर्च में लग जाती है और कुछ भी नहीं मिलता है। और भीतर जा सकते हैं। अंतिम क्षण है। एक बार और, इसके बाद आदमी को भीतर अचानक पता चलता है कि मेरा सारा श्रम, सारी मकान में जाना असंभव होगा। लपटें बहुत भयंकर हो गई हैं। अगर दौड़-धूप व्यर्थ गई। कारें तो खड़ी हो गईं, पर मैं कहां हूं? मुझे तो कोई जरूरी चीज रह गई हो, तो बता दें। कुछ मिला नहीं। इसलिए जिसको ठीक वस्तुएं उपलब्ध हो जाती उस आदमी ने कहा, मुझे कुछ याद नहीं आता। मुझे कुछ भी हैं, उसे ही पहली दफे पता चलता है कि आत्मा खो गई है। याद नहीं आता कि क्या रह गया और क्या आ गया। मैं होश में कृष्ण कह रहे हैं, पाप से रहित पुरुष!
नहीं हूं। मैं बिलकुल बेहोश हूं। तुम मुझसे मत पूछो। तुम भीतर पापरहित का अर्थ है, वस्तुओं की तरफ लगा हुआ रस जिसके जाओ। तुम जो बचा सको, वह ले आओ।
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