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________________ पदार्थ से प्रतिक्रमण-परमात्मा पर - जैसे कि गेहूं के साथ भूसा पैदा होता है। गेहूं बो देते हैं, बालियां मरते हैं। कम भोजन से बहुत कम लोग बीमार पड़ते हैं, ज्यादा लग जाती हैं, गेहूं फल जाता है और साथ में भूसा पैदा हो जाता है। भोजन से ज्यादा लोग बीमार पड़ते हैं। कभी भूलकर भूसे को सीधा मत बो देना। ऐसा मत सोचना कि अगर आज अमेरिका सबसे ज्यादा बीमार कौम है, तो उसका भूसा बो देंगे, तो पौधा पैदा होगा; पौधे में और भी ज्यादा भूसा कारण कुछ और नहीं है, अत्यधिक भोजन उपलब्ध है। पहली दफा लगेगा। क्योंकि गेहूं में इतना भूसा लग गया, तो भूसे में कितना ओवरफेड मुल्क है, जिसके पास खाने को जरूरत से ज्यादा है। भूसा नहीं लगेगा। और खाए चला जा रहा है सुबह से शाम तक, पांच बार! सारी कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। हाथ का भूसा भी सड़ जाएगा। भूसा बीमारी घेर रही है। सारी तकलीफ, सारी पीड़ा घेर रही है। बाइ-प्रोडक्ट है; गेहूं के साथ पैदा होता है, सीधा पैदा नहीं होता। खयाल है कि भोजन ज्यादा कर लेंगे, तो सुख मिलेगा। जब सुख बाइ-प्रोडक्ट है। थोड़े भोजन से थोड़ा मिलता है, ज्यादा भोजन से ज्यादा मिल दुख सीधा पैदा होता है। दुख गेहूं की तरह है। अब मैं आपको जाएगा, तो भोजन करते चले जाओ। सुख तो नहीं मिलता, सिर्फ कहूं, दुख गेहूं की तरह है। सुख उसके भूसे की तरह है। दुख हाथ लगता है। आस-पास दिखाई पड़ता है; सत्व नहीं होता सुख में कुछ। बीज में भोजन से सिर्फ उसे ही सुख मिलता है, जो भोजन में रस लेने दुख छिपा होता है। नहीं जाता, सिर्फ भोजन का उपयोग करता है; भोजन करता है। ध्यान रहे, जब हम जमीन में बोते हैं, तो गेहूं बोते हैं। गेहूं भीतर और जो ठीक से भोजन करता है, रस की फिक्र छोड़कर, वह होता है, भूसा बाहर होता है। लेकिन जो बाहर से देखता है, उसे | भोजन से बहुत रस उपलब्ध करता है। क्योंकि वह चबाकर भूसा पहले दिखाई पड़ता है। भूसे को खोले, तब गेहूं मिलता है। खाएगा। स्वाद से खाने वाला कभी चबाकर खाने वाला नहीं होगा। प्रकृति में गेहूं पहले आता है, भूसा पीछे आता है। दृष्टि में भूसा स्वाद से खाने वाला गटकेगा, क्योंकि इतनी फुर्सत कहां! जितना पहले आता है, गेहूं पीछे आता है। ज्यादा गटक जाए। पेट का उपयोग स्वाद वाला ऐसे करता है, जैसे दुख तो बीज है। उसके चारों तरफ सुख का भूसा छाया रहता है। कोई तिजोरी में रुपए डाल रहा हो। देखने वाले को सुख पहले दिखाई पड़ता है, और जब सुख को लेकिन जो भोजन का उपयोग करता है, वह गटकता नहीं; वह छीलता है, तब दुख हाथ लगता है। लेकिन बोने वाले को दुख ही | चबाता है। और जो चबाता है, उसको रस मिल जाता है। मैं आपसे बोना पड़ता है। और अगर आपने सीधा सुख बोने की कोशिश की, कह रहा हूं, बाइ-प्रोडक्ट है। और जो रस पाना चाहता है, गटक तो कुछ हाथ नहीं लगने वाला है। कुछ भी हाथ लगने वाला नहीं है। जाता है, उसे रस तो नहीं मिलता, सिर्फ बीमारी हाथ लगती है। पदार्थ में जो आदमी जितना ज्यादा सीधा रस लेगा. उतना ही कम जीवन में जो भी रसपर्ण है. वह उपयोग से मिलता हैरस उपलब्ध कर पाएगा। अगर पदार्थ में कोई सीधा रस न ले. सिर्फ उपयोग। सम्यक उपयोग तब संभव हो पाता है. जब पदार्थ से पदार्थ का उपयोग करे-उपयोग सीधी बात है तो बड़े हैरानी की | हमारी आत्मा का कोई आसक्ति, कोई राग, कोई लगाव न हो। हम बात है कि पदार्थ का उपयोग करने वाला पदार्थ से बहुत रस ले सिर्फ उपयोग कर रहे हों। पाता है। और पदार्थ में रस लेने वाला उपयोग तो कर ही नहीं पाता, ___ आसक्ति बहुत और बात है। आसक्ति का मतलब है, हम सीधा बहुत तरह के दुखों में पड़ जाता है। रस लेने की कोशिश कर रहे हैं। आसक्ति का अर्थ है कि हम लेकिन हम पदार्थ का उपयोग नहीं करते हैं, हम पदार्थ में रस सोचते हैं कि जितना ज्यादा पदार्थ हमारे पास होगा, हम उतने सुखी लेने की कोशिश करते हैं। इसका फर्क समझें। थोड़ा बारीक है, हो जाएंगे। ऐसा होता नहीं। अक्सर इतना ही होता है कि जितनी इसलिए एकदम से शायद खयाल में न आए। ज्यादा वस्तुएं होती हैं, उतने हम चिंतित हो जाते हैं। और हर वस्तु जो आदमी भोजन में रस लेने की कोशिश करेगा, उसे भोजन | | की रक्षा के लिए और वस्तुएं चाहिए, और वस्तुओं की रक्षा के लिए से नुकसान पहुंचेगा, रस नहीं मिलने वाला है। इसलिए अक्सर | और वस्तुएं चाहिए। और अंत में हम पाते हैं कि आदमी खो गया ज्यादा भोजन से लोग पीड़ित और परेशान हैं। चिकित्सक कहते हैं, | और वस्तुओं का ढेर रह गया। कम भोजन से बहुत कम लोग मरते हैं, ज्यादा भोजन से ज्यादा लोग आदमी खो ही जाता है। वस्तुएं धीरे-धीरे इतने जोर से चारों 1951
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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