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गीता दर्शन भाग-3 >
दिया। मुकदमा इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि उस आदमी ने, छुरा भोंकने वाले ने, जिसकी पीठ में छुरा भोंका, उसका चेहरा कभी नहीं देखा था। झगड़े का तो कोई सवाल नहीं; दुश्मनी का कोई सवाल नहीं। पहचान ही नहीं थी । दुश्मनी के लिए कम से कम पहचान तो अनिवार्य शर्त है। दुश्मनी के लिए पहले तो मित्रता बनानी ही पड़ती है। बिना मित्रता बनाए, तो दुश्मनी नहीं बन सकती।
कोई मित्रता ही नहीं थी, कोई पहचान नहीं थी। कोई एक्वेनटेंस भी नहीं था, परिचय भी नहीं था। वह यह भी नहीं जानता था, इस आदमी का नाम क्या है। सिर्फ पीठ देखी पीठ तो फेसलेस होती है। उसका तो कोई चेहरा नहीं होता। उसने छुरा भोंक दिया!
अदालत उससे पूछती है कि तूने छुरा क्यों भोंका इस आदमी की पीठ में? क्योंकि न तू इसे पहचानता है, न तू इसे जानता है। न तो तेरी कोई दुश्मनी है, न कोई तेरा संबंध है !
वह आदमी कहता है कि मैं सिर्फ कुछ करने को बेचैन था। कुछ करने को बेचैन ! और कुछ दिन से ऐसा बेचैन था कि कुछ सूझ ही नहीं रहा था, क्या करूं! और कुछ ऐसा करना चाहता था, जिसको कहा जा सके ईवेंट, घटना! मन बड़ा बेचैन था । मैं प्रफुल्ल हूं, प्रसन्न हूं। अखबार में फोटो भी छप गई है; चर्चा भी हो रही है। आई हैव डन समथिंग, कुछ मैंने किया। और जब आदमी कुछ करता है, ही बिकम्स समबडी, वह कुछ हो जाता है। मैं प्रसन्न हूं, आप कारण वगैरह मत पूछें मुझसे।
वह मजिस्ट्रेट कहता है कि कैसा मामला है! कुछ तो कारण होना चाहिए ?
वह आदमी कहता है, मुझे बताइए कि मेरे जन्म का कारण क्या है ? और जब मैं मर जाऊंगा, तो कोई कारण होगा? कुछ कारण नहीं है। मेरे जवान होने का कारण क्या है? और मैं एक स्त्री के प्रेम में गिर गया था, तो अदालत बता सकती है कि कारण क्या है? कोई कारण जब किसी चीज के लिए नहीं है, तो इस नाहक छोटी-सी घटना को इतना तूल क्यों दे रहे हैं कि मैंने इसकी पीठ में छुरा भोंक दिया!
मजिस्ट्रेट निर्णय करने में बड़ी मुश्किल में पड़ा हुआ है कि क्या निर्णय करे, क्या सजा दे !
यह शुद्ध पाप है! शुद्ध पाप की सजा किसी कानून में नहीं लिखी है। आभूषणों की सजा लिखी हुई है। यह बिलकुल शुद्ध पाप है, जो सिर्फ शक्ति की गति की वजह से हो गया है।
लेकिन मजिस्ट्रेट कहता है कि फांसी तो मुझे तुझे देनी ही होगी ।
वह आदमी कहता है, आप फांसी दे दें। कारण न बताएं। कारण बताने की कोई जरूरत नहीं है। हम राजी हैं। मैं बिलकुल राजी हूं। आप फांसी दे दें। कारण बताने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन मजिस्ट्रेट कहता है, जजमेंट मुझे लिखना पड़े, तो कारण तो चाहिए ही । वह कैदी कहता है, तो सारी जिरह आप इसीलिए कर रहे हैं, ताकि फांसी लगाने का कारण मिल जाए ! और मैं कहता हूं, मैंने अकारण छुरा भोंका है। छुरा भोंकने के आनंद के लिए छुरा भोंका है। और जब उसकी पीठ में छुरा भुंका और खून का फव्वारा फैला, तो मैंने जिंदगी में पहली दफा, जिसको कहें, थ्रिल, पुलक अनुभव की। मैं प्रसन्न हूं।
आप सोचें, क्या सारे पाप ऐसी ही पुलक से पैदा नहीं होते ? नहीं, आप सब कारण खोज लेते हैं । और कारण खोजकर आप | रेशनलाइज कर लेते हैं। आप कहते हैं, मैंने इसलिए किया। लेकिन अगर गहरे में जाएंगे, तो पाप करने के लिए ही किया जाता है; कोई और कारण नहीं होता। आपके भीतर ऊर्जा होती है, रज होता है, | जो कुछ करना चाहता है। कुछ धक्के देना चाहता है। कुछ करना चाहता है। उस करने से ही सारे पाप रूप लेते हैं।
कृष्ण कहते हैं, वह जो रजोगुण है, उस रजोगुण के पार जाना जरूरी है।
लेकिन पार जाने का अर्थ ? रजोगुण और तमोगुण इस संतुलन आ जाएं कि शून्य हो जाएं। अगर आप रजोगुण को बिलकुल काट डालें, जो कि संभव नहीं है। क्योंकि काटेगा कौन? काटने | का काम रजोगुण ही करता है, गति । काटेगा कौन? अगर एक आदमी कहता है कि मैं करूंगा साधना और रजोगुण को काट दूंगा, तो साधना रजोगुण करता है, एफर्ट रजोगुण से आता है। काटेगा कौन? काटने वाला बच जाएगा पीछे। काटने में मत पड़ें, सिर्फ | संतुलन काफी है। रज और तम बराबर अनुपात में आ जाएं जीवन में, तो आपकी प्रतिष्ठा सत्व में हो जाती है।
और वैसे सत्व को उपलब्ध हुआ व्यक्ति, कृष्ण कहते हैं, अति उच्च, अति श्रेष्ठ आनंद को उपलब्ध होता है। अति उत्तम आनंद को उपलब्ध होता है, वैसे सत्व में खिल गया व्यक्ति । सत्व खिल जाना फूल की भांति । उस खिलने का राज तम और रज का संतुलित हो जाना है।
यह ट्राएंगल है जीवन की शक्तियों का, एक त्रिभुज । दो भुजाएं, दो कोणों को नीचे बनाती हैं। वे जो नीचे के दो कोण हैं, वे रज और तम हैं। अगर वे बिलकुल संतुलित हो जाएं, साठ-साठ डिग्री के
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