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________________ मन साधन बन जाए हो जाएं, तो सत्व का संतुलित कोण ऊपर प्रकट हो जाता है। वह जो तीसरा कोण प्रकट होता है सत्व का, वही कोण फ्लावरिंग है, वही फूल का खिलना है। यह जो सत्व के फूल का खिलना है, यह अति उच्च श्रेष्ठतम आनंद का शिखर छ लेता है। वह शिखर हैं। इस शिखर को छूने के लिए क्या करें? गति को और अगति को संतुलन में लाएं। कैसे लाएंगे ? क्या रास्ता है, क्या विधि है, क्या मार्ग है कि इनमें से एक चीज विक्षिप्त होकर ओवरफ्लो न करने लगे, बाहर न दौड़ने लगे? एक ही रास्ता है । और वह रास्ता, जैसा मैंने पहले सूत्र में कहा, यदि आपका मन आपके काबू में आ जाए और आप जब चाहें तब मन को ठहरा सकें, और जब चाहें तब मन को चला सकें, तो चलना और ठहरना संतुलित हो जाएगा। क्योंकि आपके हाथ में हो जाएगा। जब तक आपके हाथ में नहीं है, तब तक संतुलन असंभव है। तब तक हम सभी असंतुलित रहते हैं। कोई एक चीज पर ठहर जाता है। एक आदमी को हम कहते हैं, एकदम तामसी है, आलसी है, प्रमादी है । उठता ही नहीं, पड़ा ही रहता है; बिस्तर पर ही पड़ा हुआ है। वह एक तम भारी पड़ गया है उसके ऊपर; रज बिलकुल नहीं उठने का भी मन होता है, तो एक करवट ही ले पाता है, ज्यादा से ज्यादा। करवट लेकर फिर सो जाता है। एक दूसरा आदमी है कि दौड़ता ही रहता है। रात सोने भी बिस्तर पर जाता है, तो सिवाय करवटें लेने के सो नहीं पाता। एक तामसी है, जो करवट लेकर फिर सो जाता है। और एक रजोगुण से भरा हुआ आदमी है, जिसका मन इतना दौड़ता है कि रात सोना भी चाहता तो सिर्फ करवट ही ले पाता है और कुछ नहीं कर पाता। करवटें | बदलता रहता है! रात भी मन ठहरता नहीं, दौड़ता ही रहता है। सारा मनुष्य का व्यक्तित्व ऐसा ही असंतुलित है । और इन दो के बीच असंतुलन है। और अगर यह संतुलन ठीक न हो पाए, जीवन की सारी जटिलताएं पैदा होती हैं - सारी जटिलताएं ! तो सारी जटिलताएं असंतुलन, इम्बैलेंस का फल हैं। सारे पाप इम्बैलेंस का फल हैं। और पाप दो तरह के हैं। एक ऐसा पाप, रजोगुण से पैदा होता है, पाजिटिव । रजोगुण से वह पाप पैदा होता है, जैसा इस आदमी ने पीठ में छुरा भोंक दिया। एक ऐसा पाप भी है, जो तमोगुण से पैदा होता है । उसको उदाहरण के लिए समझ लें कि आप भी इस पीठ में छुरा जब भोंका जा रहा था, तब आप भी बैठे थे। लेकिन आप बैठे ही रहे। आपने उठकर यह भी न कहा हुए कि क्या कर रहे हो ? यह क्या हो रहा है? बल्कि आपने और आंख बंद कर ली और ध्यान करने लगे। आप भी पाप में भागीदार हो रहे हैं, लेकिन निगेटिवली । यह तमोगुण का पाप है । आप भी जिम्मेवार हैं। यह घटना आपके भी नकारात्मक सहयोग से फलित हो रही है। दुनिया में दो तरह के पापी हैं, पाजिटिव और निगेटिव, विधायक और नकारात्मक | विधायक वे, जो कुछ करते हैं; और नकारात्मक वे, जो खड़े होकर देखते रहते हैं। अब बंगाल है। एक गांव में पांच आदमी नक्सलाइट हो जाते हैं। पांच हजार का गांव है। पांच आदमी रोज हत्या करते हैं, पांच | हजार का गांव बैठा देखता रहता है। वे निगेटिव नक्सलाइट हैं, वे जो बैठकर देख रहे हैं। पांच आदमी हत्या कर रहे हैं, और वे कहते हैं कि बड़ा मुश्किल हो गया। पांच आदमी हत्या कर रहे हैं रोज, पांच हजार आदमी रोज देख रहे हैं। कलकत्ता मैं जाता हूं, तो देखकर हैरान होता हूं। ट्राम में सौ आदमी सवार हैं, लटके हैं दरवाजों से। दो लड़के आ जाते हैं, ट्रेन में आग लगा देते हैं। बाकी लोग खड़े होकर देखते हैं, फिर अपने घर चले जाते हैं कि नक्सलाइट बहुत उपद्रव कर रहे हैं। यह निगेटिव पाप है। यह तमस के आधिक्य से पैदा हुआ पाप है । यह करता कुछ नहीं, लेकिन बहुत-सा करना इसके ही सहयोग से फलित होते हैं। यह करता कुछ नहीं; यह देखता रहता है। हम पाजिटिव पापी को तो पकड़ लेते हैं, जेल में डाल देते हैं। लेकिन निगेटिव पापी के लिए अभी तक कोई जेल नहीं है। लेकिन निगेटिव पापी भी छोटा-मोटा पापी नहीं है। इसलिए मैंने कहा कि पाप के आभूषणों को मत पकड़ें। पाप की जड़ को पहचानने की कोशिश करें। अगर आपका चित्त तमस की तरफ ज्यादा झुका, तो आप नकारात्मक पापों में लग जाएंगे। अगर आपका चित्त रज की तरफ ज्यादा झुका, तो आप विधायक पापों में लग जाएंगे। और पाप के बाहर होने का उपाय है कि रज और तम दोनों संतुलित हो जाएं, तो आपकी फ्लावरिंग सत्व में हो जाएगी। और सत्व ही पुण्य है। लेकिन जिन्हें हम पुण्य कहते हैं, वे पुण्य नहीं हैं। अगर हम ठीक से समझें, तो जिन्हें हम पुण्य कहते हैं, वे भी दो तरह के ही होते हैं, जैसे दो तरह के पाप होते हैं। कुछ लोग इसलिए पुण्यात्मा | मालूम पड़ते हैं कि तमस इतना ज्यादा है कि पाप नहीं कर पाते, 191
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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