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________________ गीता दर्शन भाग-3> करते-करते भी मन ऊब जाता है, नए पाप खोजता है—तो नए पाप | सिर्फ पापी होने की खबर देता है; या ज्यादा से ज्यादा पाप का आपकी पुरानी व्याख्या में पकड़ में नहीं आते हैं, तो आप मजे से | | प्रायश्चित्त करने की खबर देता है; और कोई खबर नहीं देता। करते चले जाते हैं। मजे से करते चले जाते हैं। थोड़ा देखें कि कैसे धनी के घर पैदा होना पुण्य था। धन पुण्य से मिलता था कभी। यह हो जाता है! वह पुरानी परिभाषा थी। अब धनी के घर पैदा होना जैसे भीतर एक और इसलिए हर युग दिक्कत में पड़ता है। परिभाषा होती है। पश्चात्ताप लाता है कि कहीं कोई पाप, कहीं कोई अपराध, कहीं पुरानी और पाप होते हैं नए। पुरानी परिभाषा में कहीं उनके लिए कोई गिल्ट हो रही है। सूचना नहीं होती। जब तक परिभाषा बनती है, तब तक पाप की | प्रधो. पश्चिम का एक बहत बडा विचारक लिखता है कि सब फैशन बदल जाती है। परिभाषा बनने में तो समय लगता है,। | धन चोरी है। पुराने विचारक कहते थे, धन पुण्य से मिलता है। पूंधो डेफिनीशन बनने में समय लगता है, वक्त लगता है। अनुभव से | कहता है, सब धन चोरी है। तो चोरों के घर में पुण्य से कोई पैदा परिभाषा बनती है, तब तक फैशन बदल जाती है। और अब तो नहीं हो सकता, पाप से ही पैदा हो सकता है। स्वभावतः, चोरों के इतने जोर से पाप की फैशन बदल रही है कि बहुत मुश्किल है कि घर-अगर सब धन चोरी है तो चोरों के घर कोई पुण्य से कैसे . कोई परिभाषा काम करेगी। | पैदा होगा! पाप से ही पैदा हो सकता है। अगर धो की बात सच हालत करीब-करीब वैसी है, जैसा मैंने सुना है कि एक आदमी है, तो गरीब के घर पैदा होना बड़ा पुण्य कर्म है। पेरिस की सड़क पर जोर से भागा जा रहा है। एक मित्र रास्ते में | | युग बदलते हैं, परिभाषाएं बदल जाती हैं, लेकिन पाप नहीं मिला, नमस्कार की और कहा कि इतनी जल्दी में कहां जा रहे हो? | | बदलता। परिभाषाएं बदलती हैं। आभूषण बदलते हैं। सोना नया उसने कहा, मेरी पत्नी के कपड़े हैं हाथ में। इतनी दौड़ने की क्या | आभूषण बन जाता है। आकार बदल जाते हैं। बदलने से भूल जरूरत है? पत्नी कोई मुसीबत में है? उसने कहा, मुसीबत में नहीं। होती है। वैसे ही दर्जी ने देर कर दी है। और अगर मेरे पहुंचने में देर हो जाए, इसलिए कृष्ण ने उसमें दूसरी बात तत्काल जोड़ी है, वह मूल की तब तक तो फैशन बदल जाएगी। काफी खर्च उठाया है। कहीं | है। पहले कहा कि पाप से जो मुक्त है और फिर पीछे कहा, रजोगुण पहुंचने के पहले फैशन न बदल जाए। इसलिए क्षमा करो। फिर | के जो बाहर है। क्योंकि रजोगुण ही पाप का आधार है। कभी मिलना। अभी मैं जरा जल्दी में हूं। ___ अगर आपके भीतर रजोगुण है, तो वह नए-नए पाप खोज वह ठीक कह रहा है। पेरिस में इतने ही जोर से बदल रही है। लेगा; पुराने छोड़ेगा, नए खोज लेगा। लेकिन अगर भीतर रजोगुण फैशन। सारी दुनिया में ऐसे ही बदल रही है। और कपड़ों की फैशन | खो गया, तो पाप को खोजने का उपाय खो गया। आपके भीतर बदले, तो बहुत दिक्कत नहीं आती, क्योंकि क्या दिक्कत आने | पाप निर्मित हो सके, उसकी ऊर्जा खो गई। इसलिए बहुत गहरे में वाली है! लेकिन पाप भी फैशन बदलता है। और जब पाप फैशन रजोगुण की क्षमता ही पाप है। बदलता है, तो बड़ी मुश्किल हो जाती है, क्योंकि एकदम पकड़ में रजोगुण का मतलब है-रजोगुण का मतलब क्या है ? तीन गुण नहीं आता है कि यह पाप है। एकदम पकड़ में नहीं आता कि यह इस देश के मनसविद ने खोजे हैं। गहरे हैं वे गुण। मन के तीन गुण पाप है। इस देश की बड़ी गहरी खोज है। इस देश ने जो गहरे से गहरे तो पाप के हम अगर मल को समझ लें. तो ही हम पाप से बच | अनुदान जगत को दिए हैं, उसमें त्रिगण प्रकृति की खोज बड़ी गहरी सकेंगे, अन्यथा पाप से बचना कठिन है। | है। बड़ी गहरी है। वे तीन गुण हैं-सत्व, रज, तम। चित्त भी इन अब जैसे, कोई भी व्यवस्था को हम ले लें। कोई भी व्यवस्था | | तीन गुणों से काम करता है। को हम ले लें; जो कल पाप थी, आज पाप नहीं मालूम पड़ती। । तम का अर्थ है, वह शक्ति, जो चीजों में अवरोध डालती है। कल पुण्य थी, आज पाप हो गई। वक्त था एक, दान पुण्य था; | तम का अर्थ है, वह शक्ति, जो चीजों में अवरोध डालती है, दानी पुण्यात्मा था। आज जो भी दान करता है, हर एक समझता है | स्टैग्नेंसी पै र्स है। और कि बिना पाप किए दान नहीं हो सकता। पहले पाप करो, तब धन | अगर कोई स्टैटिक फोर्स न हो आपके भीतर, तो आप कहीं रुक न इकट्ठा करो, तभी दान कर पाओगे। तो आज जो दान करता है, वह पाएंगे; कहीं भी न रुक पाएंगे। कहीं भी न रुक पाएंगे, परमात्मा में दे चीजों को गोकनी रे। 1188|
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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