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<मन साधन बन जाए
है, विटनेसिंग है, तादात्म्य को तोड़ देना है। तादात्म्य को तोड़ना ही | पसे रहित है जो, रजोगुण जिसका शांत हो गया-इन योग है। योग का अर्थ है, जुड़ जाना।
पा दो बातों को इस सूत्र में समझ लेना चाहिए। संसार से जो टूटने की कला सीख लेता है, वह प्रभु से जुड़ने पाप से मुक्त है जो! पाप क्या है ? चोरी पाप है। हिंसा की कला सीख लेता है। वह एक ही चीज के दो नाम हैं। इसलिए | पाप है। असत्य पाप है। ऐसा हम मोटा हिसाब रखते हैं। लेकिन जैन-शास्त्रों ने योग का बड़ा दूसरा उपयोग किया है। इसलिए कई | | वस्तुतः ये पाप के रूप हैं, पाप नहीं। जब मैं कहता हूं, पाप के रूप दफे बड़ी भ्रांति होती है।
हैं, पाप नहीं, तो मेरा मतलब ऐसा है कि जब हम कहते हैं, यह हार जो लोग हिंदू-शास्त्र को पढ़ते हैं और हिंदू योग की परिभाषा से है गले का, यह हाथ की चूड़ी है, यह पैर की पांजेब है, तो ये रूप परिचित हैं, वे अगर जैन-शास्त्र पढ़ेंगे, तो बड़ी हैरानी में पड़ेंगे। हैं सोने के, आभूषण हैं सोने के, आकार हैं सोने के। क्योंकि जैन-शास्त्र कहते हैं, तीर्थंकर अयोग को उपलब्ध हो जाता | सोने को हम समझ लें. तो सब रूपों को हम समझ लेंगे। और है-अयोग को, योग को नहीं!
अगर रूपों को हमने समझा, तो हम धोखे में पड़ेंगे। धोखे में लेकिन जैन-शास्त्र योग का अर्थ करते हैं, संसार से जुड़ना। तो | इसलिए पडेंगे कि अगर नए रूप का सोना सामने आ गया. तो हम तीर्थंकर अयोग को उपलब्ध हो जाता है; संसार से टूट जाता है। न समझ पाएंगे कि यह सोना है। क्योंकि अनंत रूप हो सकते हैं हिंदू-शास्त्र योग का अर्थ करते हैं, परमात्मा से जुड़ना। इसलिए सोने के। आपने अगर समझा कि चूड़ी सोना है, और आपने गले परम ज्ञानी योग को उपलब्ध हो जाता है, क्योंकि परमात्मा से जुड़ का हार देखा, तो आप न समझ पाएंगे कि यह सोना है। जाता है।
अगर आपने एक चीज को पाप समझा और दूसरी चीज का अगर आप जैन-शास्त्र पढ़ेंगे, तो बड़ी बेचैनी में पड़ेंगे कि ये आपको पता नहीं है, पहचान नहीं है, और वह जिंदगी में आई, तो जैन-शास्त्र कहते हैं, योग से छूटो, अयोग को उपलब्ध हो जाओ। आप न समझ पाएंगे कि पाप है। आकार से बांधकर पाप को समझा हिंदू-शास्त्र कहते हैं, योग को उपलब्ध होओ।
कि भूल होगी। निराकार से समझना जरूरी है। स्वर्ण से समझें, दोनों उपयोग हो सकते हैं। क्योंकि एक जगह से छूटना, दूसरी | आभूषण से नहीं। जगह जुड़ना है। संसार से छूटो, अयोग हो जाए, तो परमात्मा से ___ पाप तो एक ही है, पाप के रूप अनेक हो जाते हैं। सोना तो एक योग हो जाता है। संसार से योग हो जाए, जुड़ जाओ, तो परमात्मा | ही है, आभूषण अनेक हो जाते हैं। मूल को ठीक से समझ लें, तो से अयोग हो जाता है।
सब जगह पहचान लेंगे कि पाप क्या है। और अगर आपने आकार कला, जो आर्ट है जीवन का, जीवन की जो कला है, वह इतनी को पकड़ा-आकार को पकड़ने की ही वजह से दुनिया में ही है कि तुम मालिक हो जाओ। जब चाहो जुड़ सको, जब चाहो अलग-अलग समाज अलग-अलग चीजों को पाप कहता है। टूट सको। मालकियत इतनी हो कि क्षण का इशारा और बात बदल आकार को पकड़ने की वजह से अलग-अलग समाज जाए, हवा का रुख बदल जाए, चेतना दूसरी तरफ बहने लगे। ऐसे, अलग-अलग चीज को पाप कहते हैं। ऐसे स्वतंत्रचेता व्यक्ति को ही प्रभु की उपलब्धि होती है। जो चीज एक समाज में पाप है, वह दूसरे में पाप नहीं है। ऐसा
भी हो सकता है कि जो चीज एक समाज में पुण्य है, वह दूसरे में
पाप है। और जो चीज एक समाज में पाप है, वह दूसरे में पुण्य है। .. प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् ।
और ऐसा भी हो जाता है कि जो एक युग में पाप है, वह दूसरे युग उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ।। २७।।। | में पुण्य हो जाता मालूम पड़ता है। इसलिए बड़ा ही विभ्रम पैदा हुआ क्योंकि जिसका मन अच्छी प्रकार शांत है और जो पाप से है। बड़ा विभ्रम पैदा हुआ है। रहित है और जिसका रजोगुण शांत हो गया है, ऐसे इस आकार को अगर पकड़ेंगे, तो विभ्रम पैदा होगा। क्योंकि सच्चिदानंदघन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को अति | आकार बदलते रहते हैं। पाप की भी फैशन बदलती है, आभूषण उत्तम आनंद प्राप्त होता है।
की ही नहीं। तो अगर आप पुराने पाप की परिभाषा पकड़े बैठे रहे, | तो पाप जो नए रूप लेगा—वह भी फैशन बदलता है; पुराने पाप
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