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________________ 4 गीता दर्शन भाग-3> इस सूत्र का सार है। शेष सब कृष्ण ने पुनः दोहराया है। कामनाओं कृष्ण और बुद्ध जैसे आदमी को दोहराना पड़ता है। बार-बार वही को वश में करके, मन के पार होकर, इंद्रियों के अतीत उठकर, बात दोहरानी पड़ती है। फिर नए कोण से वही बात कहनी पड़ती संकल्प-विकल्प से दूर होकर-सब जो उन्होंने पहले कहा है, पुनः है। शायद सुन ली जाए। दोहराया है। और अंत में, सदा परमात्मा के चिंतन में लीन रहे। । | और एक कारण है। सुनने के भी क्षण हैं, मोमेंट्स। नहीं कहा दो बातें। एक, कृष्ण क्यों बार-बार वही-वही बात दोहराते हैं? जा सकता कि किस क्षण आपकी चेतना द्वार दे देगी। किस क्षण इतना रिपीटीशन, इतनी पुनरुक्ति क्यों है ? बुद्ध ने तो इतने वचन | आप उस स्थिति में होंगे कि आपके भीतर शब्द प्रवेश कर जाए, दोहराए हैं कि बुद्ध के जो नए वचनों के संग्रह प्रकाशित हुए हैं, नहीं कहा जा सकता। उनको संपादित करने वाले लोगों को बड़ी कठिनाई पड़ी। क्योंकि | अमेरिका में एक बहुत बड़ा करोड़पति, अरबपति था, अगर बुद्ध के ही हिसाब से पूरे वचन कहे जाएं, तो संग्रह कम से रथचाइल्ड। उससे किसी नए युवक ने, संपत्ति के तलाशी ने पूछा कम दस गुना बड़ा होगा। इतनी बार वचन दोहराए हैं कि फिर कि आपकी सफलता का रहस्य क्या है? तो रथचाइल्ड ने कहा कि संपादित करने वाले लोग वचन लिख देते हैं और बाद में डिट्टो | मेरी सफलता का एक ही रहस्य है कि मैं किसी अवसर को चूकता . निशान लगाते जाते हैं कि वही, जो ऊपर कहा है, फिर कहा। वही, नहीं, छलांग मारकर अवसर को पकड़ लेता हूं। पर, उस आदमी जो ऊपर कहा है, फिर कहा। दस गुना छंटाव करना पड़ता है। । ने कहा कि यह पता कैसे चलता है कि यह अवसर है? और जब लेकिन संपादन करने वाले लोगों से बुद्ध ज्यादा बुद्धिमान थे। तक पता चलता है, तब तक तो अवसर हाथ से निकल जाता है। इतने दोहराने की बात क्या हो सकती है? इस दोहराने का...कृष्ण तो छलांग मारने का मौका कैसे मिलता है ? रथचाइल्ड ने कहा कि भी क्या गीता में कुछ सूत्र दोहराए चले जा रहे हैं। फिर, और फिर, मैं खड़ा रहता ही नहीं; मैं तो छलांग लगाता ही रहता हूं। जब और फिर। बात क्या है? अर्जुन बहरा है? | अवसर आता है, उस पर सवार हो जाता हूं। मैं छलांग लगाता ही होना चाहिए। सभी श्रोता होते हैं। सुनता हुआ मालूम पड़ता है, | रहता हूं। अवसर के लिए रुका नहीं रहता कि जब आएगा, तब शायद सुन नहीं पाता। बिलकुल दिखाई पड़ता है कि सुन रहा है, | | छलांग लगाऊंगा। एक सेकेंड चूके, कि गए। हम तो छलांग लगाते लेकिन कृष्ण को दिखाई पड़ता होगा उसके चेहरे पर कि नहीं सुना।। रहते हैं। अवसर आया, हम सवार हो जाते हैं। । फिर दोहराना पड़ता है। ठीक ऐसे ही व्यक्ति की चेतना में कोई क्षण होते हैं, जब द्वार ये किताबें लिखी गई नहीं हैं, बोली गई हैं। दुनिया में जो भी खुलता है। श्रेष्ठतम सत्य हैं, वे लिखे हुए नहीं हैं, बोले हुए हैं। वह चाहे कुरान तो कृष्ण जैसे व्यक्ति तो कहे चले जाते हैं सत्य को। अर्जुन के हो, कि चाहे बाइबिल, कि चाहे गीता, चाहे धम्मपद। जो भी चारों तरफ गुंजाते चले जाते हैं सत्य को। पता नहीं कब, किस क्षण श्रेष्ठतम सत्य इस जगत में कहे गए हैं, वे बोले गए सत्य हैं। वे में अर्जुन की चेतना उस बिंदु पर आ जाए, उस ट्यूनिंग पर, जहां किसी के लिए एड्रेस्ड हैं। कोई सामने मौजूद है, जिसकी आंखों में आवाज सुनाई पड़ जाए और सत्य भीतर प्रवेश कर जाए! इसलिए कृष्ण देख रहे हैं कि कहा मैंने जरूर, लेकिन सुना नहीं। इतना दोहराना पड़ता है। ___ जीसस तो बहुत जगह बाइबिल में कहते हैं-बहुत जगह कहते पर दोहराने में भी हर बार वे कोई एक नई बात साथ में जोड़ते हैं—कान हैं तुम्हारे पास, लेकिन सुन सकोगे क्या? आंख है चले जाते हैं। हर बार कोई एक नया सत्य, कोई एक नया इंगित। तुम्हारे पास, लेकिन देख सकोगे क्या? बार-बार कहते हैं कि नहीं तो अर्जुन भी उनसे कहेगा कि आप क्या वही-वही बात जिनके पास कान हों, वे सुन लें। जिनके पास आंख हो, वे देख दोहराते हैं! लें। तो क्या अंधों और बहरों के बीच बोलते होंगे? ___ मजा यह है कि जो बिलकुल नहीं सुनते, वे भी इतना तो समझ नहीं; इतने अंधे और बहरे तो कहीं भी नहीं खोजे जा सकते कि ही लेते हैं कि बात दोहराई जा रही है। जिनकी समझ में कुछ भी सारी बाइबिल उन्हीं के लिए उपदेश दी जाए। हमारे जैसे ही लोगों नहीं आता, वे भी शब्द तो सुन ही लेते हैं। उनको यह तो पता चल के बीच बोल रहे होंगे, जिनके कान भी ठीक मालूम पड़ते हैं, आंख ही जाता है कि आपने यही बात पहले कही थी, वही बात आप अब भी ठीक मालूम पड़ती है, फिर भी कहीं कोई बात चूक जाती है। तो भी कह रहे हैं। शब्द पुनरुक्त हो रहे हैं, यह जानने के लिए समझ 1176/
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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