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<दुखों में अचलायमान -
हां, एक ही भरोसे की बात कही जा सकती है कि वे जो कह रहे ऊबने में भी ताकत खर्च होती है। ऊबने में भी ताकत खर्च होती हैं, प्राप्ति पर जीवन की सारी खोज पूरी हो जाती है। और प्राप्ति पर है; उस ताकत को भी श्रम में लगा देना। जब ऊब पकड़े मन को, फिर कभी ऊब नहीं आती।
तो और तेजी से श्रम करना। अगर ऊब पकड़े मन को, तो बैठकर और ध्यान रहे, प्रयत्न में ऊब आ जाए तो हर्जा नहीं, प्राप्ति में | ध्यान मत करना, दौड़कर ध्यान करना।। ऊब नहीं आनी चाहिए। अन्यथा जीवनभर का श्रम व्यर्थ गया। और बुद्ध दो तरह का ध्यान करवाते थे भिक्षुओं को। कहते थे, एक इस संसार में प्रयत्न में तो बड़ा रस रहता है और पा लेने पर कुछ | घंटा बैठकर करो; और जैसे ही तुम्हें लगे कि ऊब पकड़ी, कि हाथ नहीं लगता, और ऊब आ जाती है।
दौड़कर करो। जानते थे कि ऊब तो पकड़ेगी ही। तो पहले बैठकर लेकिन यह बात ट्रस्ट पर ही ली जा सकती है, भरोसे पर ही। करो, फिर चलकर करो। यह श्रद्धा का ही सूत्र है।
अगर आप कभी बुद्धगया गए हों, तो आज भी वे पत्थर लगे पर कृष्ण किसी को धोखा किसलिए देंगे? कोई प्रयोजन तो नहीं हुए हैं, जहां बुद्ध घंटों चलते रहते थे। बोधिवृक्ष के नीचे बैठते, है। बुद्ध किसलिए लोगों को धोखा देंगे? महावीर किसलिए लोगों फिर चलते। फिर बैठते, फिर चलते। फिर बैठते, फिर चलते। को धोखा देंगे? क्राइस्ट या मोहम्मद किसलिए लोगों को धोखा आज भी बर्मा, थाईलैंड जैसे मुल्कों में, जहां बुद्ध के ध्यान केंद्र देंगे? कोई भी तो प्रयोजन नहीं है। फिर एकाध आदमी धोखा देता, अभी भी थोड़ा-बहुत काम करते हैं, वहां भिक्षु एक घंटा बैठकर तो भी ठीक था। इस पृथ्वी पर न मालूम कितने लोग! किसलिए ध्यान करेगा, फिर दूसरे घंटे चलेगा। फिर बैठकर ध्यान करेगा, धोखा देंगे?
फिर तीसरे घंटे चलेगा। फिर बैठकर ध्यान करेगा। जब भी बैठकर और फिर मजे की बात यह है कि ये लोग अगर धोखा देने वाले देखेगा कि जरा-सी ऊब का क्षण आया, फौरन उठकर चलने लोग होते, तो इतनी शांति और इतने आनंद और इतनी मौज और लगेगा। ऊबेगा नहीं। ऊब नहीं आने देगा! इतने रस में नहीं जी सकते थे। कोई धोखा देने वाला जीता हुआ और अगर आपने तय कर लिया है कि ऊब को नहीं आने देंगे, दिखाई नहीं पड़ता। ये जो कह रहे हैं, कुछ जानकर कह रहे हैं। | तो आप थोड़े ही दिन में पाएंगे कि आप ऊब का अतिक्रमण कर लेकिन इस जानने के लिए आपको कुछ करना पड़ेगा। अगर आप गए। अब आप अथक योग में प्रवेश कर सकते हैं। सोचते हैं कि सुनकर, पढ़कर, स्मृति से, समझ से काम हो जाएगा, तो कुछ भी काम नहीं होगा। कुछ करना पड़ेगा।
और ध्यान रहे, श्रम का एक कदम भी उतने दूर ले जाता है, संकल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः। जितने विचार के हजार कदम भी नहीं ले जाते। विचार में आप वहीं मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः ।। २४ ।। खड़े रहते हैं। सिर्फ हवा में पैर उठाते रहते हैं; कहीं जाते नहीं। श्रम
शनैः शनैरुपरमेद्बुद्ध्या धृतिगृहीतया। का एक कदम भी दूर ले जाता है। और एक-एक कदम कोई चले, आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किंचिदपि चिन्तयेत् । । २५ ।। तो लंबी से लंबी यात्रा पूरी हो जाती है।
इसलिए मनुष्य को चाहिए कि संकल्प से उत्पन्न होने वाली लेकिन इस बड़ी यात्रा में सबसे बड़ी बाधा आपकी ऊब से पड़ेगी, संपूर्ण कामनाओं को निःशेषता से अर्थात वासना और आपके घबड़ा जाने से पड़ेगी, कि पता नहीं, पता नहीं कुछ होगा कि आसक्ति सहित त्यागकर और मन के द्वारा इंद्रियों के नहीं होगा! आपकी प्रतीक्षा जल्दी ही थक जाएगी। उससे सबसे बड़ी समुदाय को सब ओर से ही अच्छी प्रकार वश में करके, कठिनाई पड़ेगी। साधक के लिए ऊब सबसे बड़ी बाधा है। क्रम-क्रम से अभ्यास करता हुआ उपरामता को प्राप्त होवे
यह अगर स्मरण रहे, तो जब भी आप ऊब जाएं, तब थोड़े तथा धैर्ययुक्त बुद्धि द्वारा मन को परमात्मा में स्थित करके सजग होकर देखना कि ऊब मन को पकड़ रही है, तुड़वा देगी सारी परमात्मा के सिवाय और कुछ भी चिंतन न करे। व्यवस्था को। तो ऊब से बचना। और जब ऊब पकड़े तो और जोर से श्रम करना, तो ऊब की जो ताकत है, वह भी श्रम में कनवर्ट होती है, वह भी श्रम में लग जाती है।
परम 7 रमात्मा के सिवाय और कुछ भी चिंतन न करे, यही
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