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गीता दर्शन भाग-3
मालूम तो नहीं पड़ता। जरा-सा कांटा चुभता है, तो भी संसर्ग टूटता लगता है कि तीर हाथ को उठवा रहा है। ऐसा नहीं लगता कि नहीं मालूम पड़ता। इस विराट संसार से संसर्ग कैसे टूट जाएगा? | प्रत्यंचा को हाथ खींच रहे हैं, बल्कि ऐसा लगता है, चूंकि प्रत्यंचा कैसे इसके पार हो जाएंगे दुख के? दुख के पार होना असंभव खिंच रही है, इसलिए हाथ खिंच रहे हैं। तीर चल गया, ऐसा नहीं मालूम पड़ता है। लेकिन कृष्ण आदमी भरोसे के मालूम पड़ते हैं। | लगता कि उसने किसी निशाने के लिए भेजा है, बल्कि ऐसा लगता वे जो कह रहे हैं, जानकर ही कह रहे होंगे।
| है कि निशाने ने तीर को अपनी तरफ खींच लिया है। हेरिगेल और रुक गया, एक साल और। लेकिन तीन साल! उठा। दौड़कर गरु के चरणों में गिर पड़ा। हाथ से प्रत्यंचा ले उसके बच्चे उसकी पत्नी वहां से पकार करने लगे कि अब बहतली . तीर उठाया और चलाया। गरु ने उसकी पीठ थपथपाई और हो गया, तीन साल बहुत हो गए ध्यान के लिए! वह भी जर्मन पत्नी | कहा कि आज! आज तू जीत गया। आज तूने इस तरह तीर चलाया थी, तीन साल रुकी। हिंदुस्तानी होती, तो तीन दिन मुश्किल था। कि तू मौजूद नहीं है। यही ध्यान का क्षण है। तीन साल बहुत वक्त होता है। वह चिल्लाने लगी कि अब आ हेरिगेल ने कहा, लेकिन आज तक यह क्यों न हो पाया? तो जाओ। अब यह कब तक और! अभी वह लिखता जा रहा है कि | | उसके गुरु ने कहा, क्योंकि तू जल्दी में था। आज तू कोई जल्दी में
अभी तो शुरुआत भी नहीं हुई। गुरु कहता है कि नाट ईवेन दि नहीं था। क्योंकि तू करना चाहता था। आज करने का कोई सवाल बिगनिंग, अभी तो शुरुआत भी नहीं हुई। और तू बुलाने के पीछे | | न था। क्योंकि अब तक तू चाहता था, सफल हो जाऊं। आज पड़ी है!
| सफलता-असफलता की कोई बात न थी। तू बैठा हुआ था, जस्ट आखिर जाना पड़ा। तो उसने एक दिन गुरु को कहा कि अब मैं | | वेटिंग, सिर्फ प्रतीक्षा कर रहा था। लौट जाता हूं, यह जानते हुए कि आप जो कहते हैं, ठीक ही कहते | __ अथक श्रम का अर्थ है, प्रतीक्षा की अनंत क्षमता। कब घटना होंगे. क्योंकि आप इतने ठीक हैं। यह जानते हए कि इन तीन वर्षों घटेगी, नहीं कहा जा सकता। कब घटेगी? क्षण में घट सकती है; में बिना जाने भी मेरे भीतर क्रांति घटित हो गई है। और अभी आप और अनंत जन्मों में न घटे। कोई प्रेडिक्टेबल नहीं है मामला। कोई कहते हैं कि दिस इज़ नाट ईवेन दि बिगनिंग, यह अभी शुरुआत | घोषणा नहीं कर सकता कि इतने दिन में घट जाएगी। और जिस बात भी नहीं है। और मैं तो इतने आनंद से भर गया हूं। अभी शुरुआत | | की घोषणा की जा सके, जानना कि वह क्षुद्र है और आदमी की भी नहीं है, तो मैं सोचता हूं कि जब अंत होता होगा, तो किस परम | | घोषणाओं के भीतर है। परमात्मा आदमी की घोषणाओं के बाहर है। आनंद को उपलब्ध होते होंगे! लेकिन दुखी हूं कि मैं आपको तृप्त | | हम सिर्फ प्रतीक्षा कर सकते हैं। प्रयत्न कर सकते हैं और प्रतीक्षा न कर पाया; मैं असफल जा रहा हूं। मैं इस तरह तीर न चला पाया कर सकते हैं। और ऊब गए, तो खो जाएंगे। और ऊब पकड़ेगी। कि मैं न मौजूद रहूं और तीर चल जाए। तो मैं कल चला जाता हूं। | ऊब बुरी तरह पकड़ती है। सच तो यह है कि जितने लोग मंदिरों
गुरु ने कहा कि तुम चले जाओ। जाने के पहले कल सुबह मुझसे | | और मस्जिदों में आपको ऊबे हुए दिखाई पड़ेंगे, उतने कहीं न मिलते जाना।
| दिखाई पड़ेंगे। मधशालाओं में भी उनके चेहरों पर थोडी रौनक दोपहर उसका हवाई जहाज जाएगा, वह सुबह गुरु के पास पुनः | | दिखेगी, मंदिरों में वह भी नहीं दिखेगी। होटलों में बैठकर वे जितने गया। आज कोई उसे तीर चलाना नहीं है। वह अपनी प्रत्यंचा, | ताजे दिखाई पड़ते हैं, उतने भी मस्जिदों और गुरुद्वारों में दिखाई नहीं अपने तीर, सब घर पर ही फेंक गया है। आज चलाना नहीं है; | पड़ते। ऊबे हुए हैं! जम्हाइयां ले रहे हैं! सो रहे हैं! आज तो सिर्फ गुरु से विदा ले लेनी है। वह जाकर बैठ गया है। मैंने सुना है कि एक चर्च में एक पादरी बोल रहा है। एक आदमी
गुरु किसी दूसरे शिष्य को तीर चलाना सिखा रहा है। बेंच पर जोर से घुर्राटे लेने लगा, सो गया है। पादरी उसके पास आया और वह बैठ गया है। गुरु ने तीर उठाया है, प्रत्यंचा पर चढ़ाया है, तीर कहा कि भाई जान, थोड़ा धीरे से घुर्राटे लें, क्योंकि दूसरे लोगों की चला। और हेरिगेल ने पहली दफा देखा कि गुरु मौजूद नहीं है, तीर नींद न टूट जाए! पूरा चर्च ही सो रहा है। चल रहा है। मौजूद नहीं है का मतलब यह नहीं कि वहां नहीं है, | | मंदिरों में लोग सो रहे हैं। धर्मसभाओं में लोग सो रहे हैं। ऊबे वहां है। लेकिन उसके हाव-भाव में कहीं भी कोई एफर्ट, कहीं कोई हुए हैं; जम्हाइयां ले रहे हैं। कैसे, फिर कैसे होगा? प्रयास, ऐसा नहीं लगता कि हाथ तीर को उठा रहे हैं, बल्कि ऐसा कृष्ण कहते हैं, अथक! बिना ऊबे श्रम करना पड़े योग का।
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