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________________ दुखों में अचलायमान - दिन, काफी! फिर ऊब गए। फिर छूट गया। कितने संकल्प, कितने होता है, कोई कह रहा है, अगर उसके व्यक्तित्व से वे किरणे निर्णय, धूल होकर पड़े हैं आपके चारों तरफ! दिखाई पड़ती हैं, जो वह कह रहा है, उसका प्रमाण देती हैं; वह जो मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि ध्यान से कुछ हो सकेगा? | कह रहा है, जिस प्राप्ति की बात, वहां खड़ा हुआ मालूम पड़ता मैं उनको कहता हूं कि जरूर हो सकेगा। लेकिन कर सकोगे? वे कहते हैं, बहुत कठिन तो नहीं है? मैं कहता हूं, बहुत कठिन जरा । अर्जुन भलीभांति कृष्ण को जानता है। कृष्ण को कभी विचलित भी नहीं। कठिनाई सिर्फ एक है, सातत्य! ध्यान तो बहुत सरल है। नहीं देखा है। कृष्ण को कभी उदास नहीं देखा है। कृष्ण की बांसुरी लेकिन रोज कर सकोगे? कितने दिन कर सकोगे? तीन महीने, से कभी दुख का स्वर निकलते नहीं देखा है। कृष्ण सदा ताजे हैं। लोगों को कहता हूं कि सिर्फ तीन महीने सतत कर लो। मुश्किल से ___ इसीलिए तो आप, और विशेषकर आधुनिक युग के चिंतक और कभी कोई मिलता है, जो तीन महीने भी सतत कर पाता है। उब विचारक बड़ी मुश्किल में पड़ते हैं। वे कहते हैं, कृष्ण की बुढ़ापे जाता है, दस-पांच दिन बाद ऊब जाता है! की कोई तस्वीर क्यों नहीं है! ऐसा तो नहीं हो सकता कि कृष्ण बूढ़े बड़े आश्चर्य की बात है कि रोज अखबार पढ़कर नहीं ऊबता न हुए हों। जरूरी ही हुए होंगे। कोई नियम तो कृष्ण को छोड़ेगा जिंदगीभर। रोज रेडियो सुनकर नहीं ऊबता जिंदगीभर। रोज फिल्म नहीं। बुद्ध की भी बुढ़ापे की कोई तस्वीर नहीं है। अस्सी साल के देखकर नहीं ऊबता जिंदगीभर। रोज वे ही बातें करके नहीं ऊबता होकर मरे। महावीर की भी बुढ़ापे की कोई तस्वीर नहीं है। जरूर जिंदगीभर। ध्यान करके क्यों ऊब जाता है? आखिर ध्यान में ऐसी कहीं कोई भूल-चूक हो रही है। क्या कठिनाई है। लेकिन जो लोग ऐसा सोचते हैं, उन्हें इस मुल्क के चिंतन के ढंग कठिनाई एक ही है कि संसार की यात्रा पर प्रयत्न नहीं उबाता, का पता नहीं है। यह मुल्क तस्वीरें शरीरों की नहीं बनाता, मनोभावों प्राप्ति उबाती है। और परमात्मा की यात्रा पर प्रयत्न उबाता है, प्राप्ति | की बनाता है। कृष्ण कभी भी बूढ़े नहीं होते, कभी बासे नहीं होते; कभी नहीं उबाती। जो पा लेता है, वह तो फिर कभी नहीं ऊबता। सदा ताजे हैं। बूढ़े तो होते ही हैं, शरीर तो बूढ़ा होता ही है। शरीर इसलिए बुद्ध को मिला ज्ञान, उसके बाद वे चालीस साल जिंदा | तो जराजीर्ण होगा, मिटेगा। शरीर तो अपने नियम से चलेगा। पर थे। चालीस साल किसी आदमी ने एक बार उन्हें अपने ज्ञान से कृष्ण की चेतना अविचलित भाव से आनंदमग्न बनी रहती है, युवा ऊबते हुए नहीं देखा। कोहनूर हीरा मिल जाता चालीस साल, तो बनी रहती है। वह कृष्ण की चेतना सदा नाचती ही रहती है। ऊब जाते। संसार का राज्य मिल जाता, तो ऊब जाते। कृष्ण की हमने इतनी तस्वीरें देखी हैं। कई दफे शक होने लगता महावीर भी चालीस साल जिंदा रहे ज्ञान के बाद, फिर किसी है कि कृष्ण ऐसा एक पैर पर पैर रखे और बांसुरी पकड़े कितनी देर आदमी ने कभी उनके चेहरे पर ऊब की शिकन नहीं देखी। चालीस खड़े रहते होंगे। यह ज्यादा दिन नहीं चल सकता। यह कभी-कभी साल निरंतर उसी ज्ञान में रमे रहे, कभी ऊबे नहीं! कभी चाहा नहीं तस्वीर उतरवाने को, फोटोग्राफर आ गया हो, बात अलग है। कि अब कुछ और मिल जाए! बाकी ऐसे ही कृष्ण खड़े रहते हैं? । नहीं; परमात्मा की यात्रा पर प्राप्ति के बाद कोई ऊब नहीं है। नहीं, ऐसे ही नहीं खड़े रहते हैं। लेकिन यह आंतरिक बिंब है, यह लेकिन प्राप्ति तक पहुंचने के रास्ते पर अथक...। भीतरी तस्वीर है। यह खबर देती है कि भीतर एक नाचती हुई, इसलिए कृष्ण कहते हैं, बिना ऊबे श्रम करना कर्तव्य है, करने | प्रफुल्ल चेतना है, एक नृत्य करती हुई चेतना है, जो सदा नाच रही योग्य है। है। भीतर एक गीत गाता मन है, जो सदा बांसुरी पर स्वर भरे हुए है। यहां एक बात और खयाल में ले लेनी जरूरी है कि कृष्ण ऐसा ___ यह बांसुरी सदा ऐसी होंठ पर रखे बैठे रहते होंगे, ऐसा नहीं है। कहते हैं, अर्जुन कैसे माने और क्यों माने? कृष्ण कहते हैं, करने | यह बांसुरी तो सिर्फ खबर देती है भीतर की। ये तो प्रतीक हैं, योग्य है। अर्जुन कैसे माने और क्यों माने? अर्जुन को तो पता नहीं सिंबालिक हैं। ये गोपियां चारों वक्त, चारों पहर, चौबीस घंटे है। अर्जुन तो जब प्रयास करेगा, तो ऊबेगा, थकेगा। कृष्ण कहते हैं। आस-पास नाचती रहती होंगी, ऐसा नहीं है। ऐसा नहीं है कि कृष्ण इसलिए धर्म में ट्रस्ट का, भरोसे का एक कीमती मूल्य है। श्रद्धा इसी गोरखधंधे में लगे रहे। नहीं; ये प्रतीक हैं, बहुत आंतरिक का अर्थ होता है, ट्रस्ट। उसका अर्थ होता है, भरोसा। उसका अर्थ | प्रतीक हैं। 171
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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