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________________ 7 गीता दर्शन भाग-3 असल में इस मुल्क की मिथ, इस मुल्क के मिथिक, इस मुल्क के पुराण प्रतीकात्मक हैं। गोपियों से मतलब वस्तुतः स्त्रियों से नहीं है। स्त्रियां भी कभी कृष्ण के आस-पास नाची होंगी। कोई भी इतना प्यारा पुरुष पैदा हो जाए, स्त्रियां न नाचें, ऐसा मौका चूकना संभव नहीं है। स्त्रियां नाची होंगी। लेकिन यह प्रतीक कुछ और है। यह प्रतीक गहरा है। यह प्रतीक यह कह रहा है कि जैसे किसी पुरुष के आस-पास चारों तरफ सुंदर, प्रेम से भरी हुई, प्रेम करने वाली स्त्रियां नाचती रहें और वह जैसा प्रफुल्लित रहे, वैसे कृष्ण सदा हैं। वह उनका सदा होना है। वह उनका ढंग है होने का। जैसे चारों तरफ सौंदर्य नाचता हो, चारों तरफ गीत चलते हों, चारों तरफ संगीत हो, और घूंघर बजते हों, और चारों तरफ प्रियजन उपस्थित हों; और प्रेम की वर्षा होती हो, ऐसे कृष्ण चौबीस घंटे ऐसी हालत में जीते हैं। ऐसा चारों तरफ उनके हो रहा हो, ऐसे वे भीतर होते हैं। अर्जुन जानता है कृष्ण को भलीभांति। उदासी कभी उस चेहरे पर निवास नहीं बना पाई। आंखों ने उस चेहरे पर कभी हताशा नहीं देखी। उस व्यक्तित्व में कहीं कोई पड़ाव नहीं बन सका दुख का कभी। लेकिन अर्जुन को तो अभी भरोसा करना पड़ेगा, ट्रस्ट करना पड़ेगा कि कृष्ण कहते हैं, तो यात्रा की जाए। इसलिए कृष्ण कहते हैं, कर्तव्य । इसलिए कहते हैं, करने योग्य' है अर्जुन! करोगे, तो जान लोगे। नहीं करोगे, तो नहीं जान पाओगे। कुछ जानने ऐसे हैं, जो करने से ही मिलते हैं । और हम सब ऐसे लोग हैं कि हम सोचते हैं, जानने से ही जानना हो जाए। हम सोचते हैं, कुछ बात जान लें और ज्ञान हो जाए। कृष्ण कहते हैं, कर्तव्य है। अर्जुन! करोगे, तो जान पाओगे। करने से ही जानना आएगा। और करने की सबसे बड़ी कठिनाई वे गिना देते हैं साधक को, ऊब । ऊब जाओगे; दो दिन करोगे और ऊब जाओगे । हेरिगेल एक जर्मन विचारक जापान में था तीन वर्षों तक। एक फकीर के पास एक अजीब-सी बात सीख रहा था। सीखने गया था ध्यान, और उस फकीर ने सीखना शुरू करवाया धनुर्विद्या का रिगेल ने एक-दो दफे कहा भी कि मैं ध्यान सीखने जर्मनी से आया हूं और मुझे धनुर्विद्या से कोई प्रयोजन नहीं है। लेकिन उस फकीर ने कहा कि चुप! ज्यादा बातचीत नहीं। हम ध्यान ही सिखाते हैं। हम ध्यान ही सिखाते हैं। दो-चार दिन, आठ दिन, हेरिगेल का पाश्चात्य मन सोचने लगा, भाग जाऊं। किस तरह के आदमी के चक्कर में पड़ गया ! लेकिन एक आकर्षण रोकता भी था। उस आदमी की आंखों में कुछ कहता था कि वह कुछ जानता जरूर है। उसके उठने-बैठने में भनक मिलती थी कि वह कुछ जानता जरूर है। रात सोया भी पड़ा रहता और हेरिगेल उसे देखता, तो उसे लगता कि यह आदमी और लोगों जैसा नहीं सो रहा है। इसके सोने में भी कुछ भेद है ! तो भाग भी न सके, और कभी पूछने की हिम्मत जुटाए, वह फकीर होंठ पर अंगुली रख देता कि पूछना नहीं । धनुर्विद्या सीखो। एक साल बीत गया। सोचा हेरिगेल ने कि ठीक है; अब कोई उपाय नहीं है। इस आदमी से जाया भी नहीं जा सकता; इससे भागा भी नहीं जा सकता। नहीं तो यह फिर जिंदगीभर पीछा करेगा, इसका | स्मरण रहेगा कि उस आदमी के पास था जरूर कुछ, कोई हीरा भीतर था, जिसकी आभा उसके शरीर से भी चमकती थी। मगर | कैसा पागल आदमी है कि मैं ध्यान सीखने आया हूं, वह धनुर्विद्या सिखा रहा है ! तो सोचा कि सीख ही लो, तो झंझट मिटे । सालभर उसने अथक मेहनत की और वह कुशल धनुर्धर हो गया। उसके निशान सौ प्रतिशत ठीक लगने लगे। उसने एक दिन | कहा कि अब तो मेरे निशान भी बिलकुल ठीक लगने लगे। अब मैं धनुर्विद्या भी सीख गया। अब वह ध्यान के संबंध में कुछ पूछ सकता हूं? उसके गुरु ने कहा कि अभी धनुर्विद्या कहां सीखे ? निशान ठीक लगने लगा, लेकिन असली बात नहीं आई। उसने कहा कि निशान ही तो असली बात है! अब मैं सौ प्रतिशत ठीक निशाना मारता हूं। एक भी चूक नहीं होती। अब और क्या सीखने को बचा ? उसके गुरु | ने कहा कि नहीं महाशय ! निशाने से कुछ लेना-देना नहीं है। जब तक तुम तीर चलाते वक्त मौजूद रहते हो, तब तक मैं न मानूंगा कि तुम धनुर्विद्या सीख गए। ऐसे चलाओ तीर, जैसे कि तुम नहीं हो। उसने कहा कि अब बहुत कठिन हो गया। अभी तो हम आशा रखते थे कि साल छः महीने में सीख जाएंगे, अब यह बहुत कठिन हो गया । यह कैसे हो सकता है कि मैं न रहूं! तो तीर चलाएगा | कौन? और आप कहते हो कि तुम न रहो और तीर चले! एब्सर्ड | है। तर्कयुक्त नहीं है। कोई भी गणित को थोड़ा समझने वाला, तर्क को थोड़ा समझने वाला कहेगा कि पागल के पास पहुंच गए। अभी भी भाग जाना चाहिए। लेकिन सालभर उस आदमी के पास रहकर भागना निश्चित और मुश्किल हो गया, क्योंकि आठ दिन बाद ही भागना मुश्किल 172
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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