________________
- चित्त वृत्ति निरोध -
आदमी मालूम पड़ रहे हैं। वह आपका एक आदमी है। किसी | ऐसा मानकर चलते रहते हैं कि नहीं, सबके बेटों में जग रही होगी; आदमी ने एक धक्का दे दिया; वह जो बाहर आदमी था, भीतर | अपने बेटे में नहीं जग रही है। अपना बेटा बिलकुल सात्विक! चला गया; जो भीतर आदमी था, वह बाहर आ गया। यह दूसरा एक युवक ने संन्यास लिया है। उसने मुझे आकर बड़ी मजेदार आदमी है। यह असली आदमी है। यही असली आदमी है। वह जो | बात कही। वह लौटकर अपने पिता के पास गया, तो पिता ने कहा, नकली आदमी सड़क पर चला जा रहा था बिलकुल मुस्कुराता संन्यास लिया, यह तो बहुत ठीक है। विवाहित युवक है। पिता ने हुआ, एकदम सज्जन मालूम पड़ रहा था, वह असली आदमी नहीं उपदेश दिया कि अब संन्यास लिया है, यह तो बहुत ठीक है। है। वह तो बेकाम है। वह तो सिर्फ एक चेहरा है, जिसका उपयोग लेकिन असली चीज ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य की साधना करना। हम करते रहते हैं, एक मास्क, एक मुखौटा। असली आदमी भीतर वह बेटा मुझसे आकर कह रहा था कि मेरे मन में हुआ कि बैठा है।
पिताजी, अगर आप भी ब्रह्मचर्य की साधना करते, तो मैं संन्यास वह असली आदमी तभी निकलता है, जब कोई जरूरत होती है, लेने को नहीं हो पाता! लेकिन डर के मारे नहीं कहा। लेकिन भीतर नहीं तो वह भीतर रहा आता है। जब जरूरत चली जाती है, वह | के मन ने तो कह ही दिया। अब यह पिता कह रहा है, बिना इस पुनः भीतर चला जाता है। यह नकली आदमी फिर ऊपर आकर बैठ बात को समझे कि संन्यास क्या है! ब्रह्मचर्य क्या है! कामवासना जाता है। असली आदमी क्रोध करता है, नकली आदमी माफी मांग क्या है! कुछ बिना समझे! उड़ते हुए शब्द पकड़ गए हैं दिमाग लेता है। असली आदमी क्रोध करता है, नकली आदमी कसमें में ब्रह्मचर्य! खाता है कि क्रोध नहीं करूंगा। असली आदमी क्रोध करता चला अगर बाप समझदार हो, तो बेटे से कहेगा, कामवासना का जाता है, नकली आदमी गीता पढ़ता चला जाता है; सोचता रहता | | इतना साक्षात कर लो, इतना साक्षात कि तुम उसे पूरा पहचान है, क्रोध का निरोध कैसे करें! असली आदमी गीता नहीं पढ़ता, जाओ। जिस दिन तुम पूरा पहचान जाओगे, ब्रह्मचर्य के कहने की वह जो भीतर बैठा है। यह नकली आदमी क्रोध नहीं करता। और जरूरत नहीं; वह फलित होगा। लेकिन कोई बाप यह नहीं कहेगा। नकली आदमी कसमें खाता है।
बाप कहेगा, ब्रह्मचर्य साधो। न उसने साधा है; न उसके बाप ने ऐसे दोहरे तल पर, समानांतर रेखाओं की तरह दो आदमी हमारे | साधा है; न उसके बाप ने साधा है। क्योंकि साधा होता, तो यह भीतर हो जाते हैं। वे कहीं मिलते हुए मालूम नहीं पड़ते। रेल की | मौका नहीं आता कहने का। पटरियों की तरह दिखाई पड़ते हैं कि आगे मिलते हैं, मिलते कहीं। | कामवासना से भी प्रतीति नहीं है, साक्षात्कार नहीं है। भी नहीं—पैरेलल। बस, चलते चले जाते हैं। पूरी जिंदगी ऐसे ही | कामवासना भी आपके भीतर का आदमी आपकी छाती पर चढ़कर बीत जाती है। काम जब पड़ता है, असली आदमी निकल आता है। | पकड़ लेता है। क्षणभर बाद लौट जाता है भीतर। वह जो ऊपरी जब कोई काम नहीं रहता, नकली आदमी अपने बैठकखाने में बैठा | आदमी था, सतही आदमी, वह फिर पछताता है। वह कहता है, रहता है।
| फिर वही गलती, फिर वही भूल! क्या नासमझी! इस स्थिति को तोड़ना पड़ेगा। इस स्थिति को तोड़ने का एक ही ___ वह करते रहो भूल, चौबीस घंटे तुम सोचते रहो, चौबीस घंटे उपाय है, वृत्तियों का शुद्ध साक्षात्कार। यह बड़े मजे की बात है कि बाद वह भीतर वाला आदमी फिर गर्दन दबाकर सवार हो जाएगा। किसी भी वृत्ति का शुद्ध साक्षात्कार आपको तत्काल निरोध में ले | उस भीतर वाले आदमी को ही समझना कि मैं हूं। इस थोथे चेहरे जाता है; क्योंकि शुद्ध वृत्ति का साक्षात्कार नरक का साक्षात्कार है। को मत समझना कि मैं हूं। वह जो भीतर बैठा है, वही मैं हूं। इसको कोई उपाय ही नहीं है; उसको जाना कि आप बाहर हुए। नहीं जाना, समझना। और वह जो भीतर है, उसकी एक-एक वृत्ति के पूरे के तो भीतर रहेंगे। और हमारी सारी व्यवस्था, उसको न जानने की पूरे शुद्ध प्रत्यक्षीकरण में उतर जाना। और एक बार भी एक वृत्ति व्यवस्था है, निग्लेक्ट करने की।
का शुद्ध साक्षात्कार हो जाए, तो निरोध उपलब्ध होता है। मां जानती है, बाप जानता है कि बेटे की उम्र हो गई है; अब कृष्ण जब कहते हैं, चित्त वृत्ति निरोध, या पतंजलि जब कहते उसमें कामवासना जग रही है। लेकिन मां-बाप ऐसे चलते रहते हैं, हैं, चित्त वृत्ति निरोध, तो पतंजलि कोई फ्रायड से कम समझदार जैसे उन्हें कुछ भी पता नहीं कि बेटे में कामवासना जग रही है। वे आदमी नहीं हैं; ज्यादा ही समझदार हैं। और जब कृष्ण कहते हैं,
159