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- गीता दर्शन भाग-3
छूटता। क्रोध को रहने दो। कृपा करके यह छोड़ दो कि क्रोध बुरा है। रहा है!
वह आदमी कहता कि क्रोध बुरा है, यह जानकर मैं इतना क्रोध | | दमन हम करवा रहे हैं। कभी बच्चा क्रोध को जान नहीं पाएगा कर रहा हूं! और अगर यह छोड़ दूं कि क्रोध बुरा है, तब तो बहुत कि क्रोध क्या है। बस, इतना ही जान पाएगा, क्रोध बुरा है। और मुसीबत हो जाएगी!
कुनकुने क्रोध को जान पाएगा, जो बीच-बीच में फूटता रहेगा। गुरजिएफ कहता कि तुम रुको। हम मुसीबत को लेने को तैयार कुनकुने क्रोध से कभी पहचान नहीं हो सकती। कुनकुने पानी में हैं। मुसीबत होने दो। और गुरजिएफ ऐसे उपाय करता कि उस । हाथ डालने से कभी वह स्थिति न आएगी कि गरम पानी जलाता आदमी के क्रोध को जगाए। ऐसी सिचुएशंस, ऐसी स्थितियां पैदा । है, इसका पता चले। एक बार उबलते पानी में हाथ जाना जरूरी करता कि उस आदमी का क्रोध भभककर जले। और उस आदमी | है। फिर हाथ बाहर रहने लगेगा। फिर कोई कहेगा कि प्यारे आओ, से कहता कि पूरा करो। थोड़ा भी छोड़ना मत। पूरा ही कर डालो। बहुत अमृत उबल रहा है। हाथ डालो! कहोगे कि प्यारे बिलकुल उबल जाओ। रोआं-रोआं जल उठे। आग बन जाओ। पूरा कर नहीं आएंगे। अनुभव है! लो। और वह ऐसी स्थितियां पैदा करता-अपमान कर देता, गाली वृत्तियों का साक्षात्कार-उनकी शुद्धतम स्थिति में-निरोध . दे देता या किसी और से उस आदमी को फंसवा देता-उस आदमी | बनता है; कोई भी वृत्ति का शुद्धतम साक्षात्कार। लेकिन मनुष्य की के घाव को छू देता कि वह एकदम किसी क्षण में होश खो देता और | संस्कृति ने इतने जाल खड़े कर दिए हैं कि कोई भी आदमी किसी उबल पड़ता। और भयंकर रूप से। और वह उसको बढ़ावा दिए | वृत्ति का शुद्ध साक्षात्कार नहीं कर पाता। न तो कामवासना का शद्ध जाता, उसके क्रोध को, और घी डालता।
साक्षात्कार कर पाता है; न क्रोध का, न लोभ का, न भय का। और जब वह पूरी आग में जल रहा होता, तब वह चिल्लाकर | किसी चीज का शुद्ध साक्षात्कार नहीं होता है। इसलिए किसी से कहता कि मित्र! इस वक्त देख लो कि क्रोध क्या है। यह है मौका। छुटकारा नहीं होता; कोई चीज निरुद्ध नहीं होती। अभी देख लो कि क्रोध क्या है। पहचान लो कि क्रोध क्या है। यह भय है। कोई भय का शुद्ध साक्षात्कार नहीं कर पाता। क्योंकि है। आंख बंद करो, एंड मेडिटेट आन इट। आंख बंद कर लो, और हर बच्चे को सिखाया जा रहा है कि निर्भीक रहो, डरना मत। डरे अब ध्यान करो इस क्रोध पर। रो-रोआं जल रहा है। खून का हुए आदमी से कह रहे हो, डरना मत! जटिलता और बढ़ गई। कण-कण आग हो गया है। हृदय फूट पड़ने को है। मस्तिष्क की | | भीतर डरेगा; ऊपर एक खोल तैयार कर लेगा कि मैं डरता नहीं हूं। शिरा-शिरा खून से भर गई है और पागल है। रुको भीतर। अब तुम | अंधेरी गली में से निकलेगा, सीटी बजाएगा, और सोचेगा, मैं डरता जरा ठीक से देख लो, क्रोध पूरा मौजूद है। और यह आश्चर्य की | नहीं हूं। सीटी इसीलिए बजा रहा है कि डर लग रहा है। अपनी ही बात है कि गरजिएफ जिसको भी ऐसा क्रोध दिखा देता, वह आदमी सीटी सुनकर ऐसा भ्रम पैदा होता है कि अकेला नहीं है। कहेगा दुबारा क्रोध करने में असमर्थ हो जाता-असमर्थ!
यही कि मैं तो सीटी बजाकर निकल जाता हूं अंधेरे में से। लेकिन लेकिन हमारी पूरी व्यवस्था उलटी है। छोटे-से बच्चे को हम इसको उजाले में कभी किसी ने सीटी बजाते नहीं देखा! अंधेरे में दमन शुरू करवा देते हैं, क्रोध मत करना। क्रोध दबाना; क्रोध बहुत सीटी बजाता है, ताकि भूल जाए कि डर है। बुरा है। और बच्चा देखता है कि बाप क्रोध करता है; मां क्रोध दोहरा व्यक्तित्व हमारा हो जाता है, डबल बाइंड। ऊपर एक करती है। सब जारी है। वह बाप बच्चे को समझा रहा है कि क्रोध थोथी खोल चढ़ जाती है सिखाई हई, सिखावन की, कंडीशनिंग मत करना; क्रोध बुरा है। और बच्चा अगर न माने, तो बाप क्रोध की, और भीतर असली आदमी रहता है वृत्तियों का। वह वृत्तियों में आ जाता है उसी वक्त! वह बच्चा देखता है कि बड़ा मजा चल वाले आदमी को हम ऊपर के झूठे आदमी से दबाए चले जाते हैं। रहा है, बड़ा खेल चल रहा है!
हां, जब जरूरत नहीं रहती, तब वह दबा रहता है। जब जरूरत और बच्चे बहुत एक्यूट आब्जर्वर्स हैं, बड़े गौर से देखते हैं। | आती है, वह इसको धक्का देकर बाहर आ जाता है। जब जरूरत क्योंकि अभी उनकी निरीक्षण की क्षमता बहुत शुद्ध है। वे बिलकुल | निकल जाती है, वह फिर भीतर चला जाता है। ठीक देखते हैं कि हद बेईमानी चल रही है! बाप कह रहा है, क्रोध । ___ हमारे भीतर दो आदमी हैं। एक आदमी वह, जो साधारण मत करना, और अगर हम क्रोध करते हैं, तो वह खुद ही क्रोध कर स्थितियों में काम करता है। रास्ते पर आप जा रहे हैं, बड़े भले
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