SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - चित्त वृत्ति निरोध और अनुभव होगा दुख है-तब तीसरा सूत्र! जब भी अनुभव हो | पाएंगे कि बाकी कई घंटे बेकार गए, यही एक घंटा काम पड़ा है। कि जीवन दुख है-और ऐसे अनुभव कई बार होते हैं, हम फिर | | लेकिन लोग मुझे आकर कहते हैं कि नहीं, इतना समय कहां? उन्हें खो देते हैं, कई बार सूत्र हाथ में आता है और छूट जाता | और बहुत हैरानी मालूम पड़ती है कि जो लोग यह कहते हैं कि इतना है-जब ऐसा अनुभव हो गहरा कि सच में जीवन दुख है और कोई | समय कहां, वे ही लोग दूसरी दफे कहते हुए सुने जाते हैं कि समय सुख नहीं, तब पीछे लौटकर एक बार देखना कि यह कौन है, जिसे नहीं कटता है! वे ही लोग! समय नहीं कटता है, तो ताश खेलना पता चलता है कि जीवन दुख है, सुख नहीं? यह कौन है ? हू इज़ पड़ता है। समय नहीं कटता है, तो शतरंज बिछानी पड़ती है। समय दिस? यह कौन है, जो सुख चाहता है और दुख पाता है? यह कौन नहीं कटता है, तो उसी अखबार को, जिसे दिन में छः दफे पढ़ चुके है, जो दुखों में झांकता है तो पाता है, अपना ही निमंत्रण है सुख हैं, फिर सातवीं दफे पढ़ना पड़ता है। समय नहीं कटता है, तो वे को दिया गया? यह कौन है, जो सुख की कामना होती है, तो प्रश्न ही बातें, जो हजार दफे कर चुके लोगों से, फिर-फिर करनी पड़ती उठाता है कि क्या सच में ही सुख मिलेगा? | हैं। समय नहीं कटता है, तो उसी आदमी के पास चले जाना पड़ता जब किसी भी क्षण में, एक्यूट इंटेंसिटी के किसी क्षण में, तीव्रता है, जिससे आखिर में यह कहते लौटते हैं कि बहुत बोर करता है। के किसी क्षण में चेतना जागकर जाने कि सब दुख है, तब पीछे | फिर उसी के पास चले जाना पड़ता है! फिर वही फिल्म देख लेते लौटकर पूछना कि यह कौन है, जो जानता है कि सब दुख है? तब | हैं। फिर वही सब कर लेते हैं और कहते हैं, समय नहीं कटता! एक नया जानना शुरू होगा। तब एक नया अनुभव शुरू होगा; एक | और जब प्रभु-स्मरण की कोई बात कहे, तो तत्काल कहते हैं, नया संबंध बनेगा, एक नई पहचान, एक नया परिचय-उससे, समय कहां! जो भीतर है, जो सब जानता है और सबके पीछे खड़ा रहता है। ये दोनों बातें एक साथ चलती हैं। तो ऐसा मालूम होता है कि उससे परिचय हो जाए, तो तत्काल उपराम हो जाता है; चित्त एकदम मन धोखा दे रहा है। मन धोखा दे रहा है। जब भी प्रभु-स्मरण की विश्राम को उपलब्ध हो जाता है। बात चलती है, तो मन कहता है, समय कहां है! और जब इसलिए कृष्ण कहते हैं, योग से शांत हुआ चित्त प्रभु को, प्रभु-स्मरण की बात नहीं कहता, तो मन कहता है कि इतना समय परमात्मा को, परम सत्य को पा लेता है। है, कुछ काटने का उपाय करो। यह तो मैंने योग की आंतरिक विधि आपसे कही। शायद यह तो अपने मन को थोड़ा समझने की कोशिश करना कि मन एकदम कठिन मालूम पड़े। शायद थोड़ी जटिल मालूम पड़े कि कैसे प्रवंचक है, डिसेप्टिव है। कोई दूसरा आपको न समझा सकेगा; हो पाएगा? यह कब हो पाएगा? जिंदगी की धारा में इतनी व्यस्तता आप ही अपने मन को देखना कि किस तरह के धोखे देता है। है, चौबीस घंटे इतने उलझे हैं कि कहां रुककर सोचेंगे? कहां रुककर सच में ही समय नहीं है? इतना दरिद्र आदमी पृथ्वी पर नहीं है, खड़े होंगे? जिंदगी तो बहाए लिए जाती है, भीड़ चारों तरफ धक्का जिसके पास एक घंटा न हो, जो प्रभु को दिया जा सके। है ही नहीं दिए चली जाती है। कहां है वह क्षण, जहां हम सोचें कि दुख क्या ऐसा कोई आदमी। आठ घंटे हम नींद को दे देते हैं बिना कठिनाई है? सुख क्या है? मैं कौन हूं? इसकी फुरसत नहीं है। के, बिना अड़चन के। अगर सारा हिसाब लगाने जाएं, तो अगर जब ऐसा लगे, तो फिर फुरसत खोजनी पड़े। फिर आप जीवन साठ साल आदमी जीए, तो बीस साल सोता है। और अगर हिसाब की धारा में खड़े न हो पाएं, तो घर के एक कोने में घड़ीभर के लिए लगाएं, तो बाकी बीस साल दफ्तर जाना, घर आना, दाढ़ी बनाना, अलग ही वक्त निकाल लें। बाजार में न जाग पाएं, दुकान में न स्नान करना, भोजन करना, इनमें खो देता है। बाकी जो बीस साल जाग पाएं, तो घर में एक कोना खोज लें और घड़ीभर का वक्त बचते हैं, उनको समय काटने में लगाता है। समय काटने में, कि निकाल लें। तय ही कर लें कि चौबीस घंटे में एक घंटा इस चित्त समय कैसे कटे! के उपराम होने के लिए दे देंगे। तो आप कोई जिंदगी काटने के लिए आए हुए हैं, कि किस तरह और एक घंटा कुछ न करें। इन तीन बातों का चिंतन गहरे में ले | | काट दें! तो एकदम से ही काट डालिए। छलांग लगा जाइए किसी जाएं। जीवन दुख है। सब सुख दुखों को निमंत्रण हैं और वह कौन | । पहाड़ से, समय एकदम कट जाएगा। तो ये ग्रेजुअल स्युसाइड, ये है, जो इन्हें जानता है! एक घंटा रोज। और जीवन के अंत में आप धीरे-धीरे आत्महत्या को आप कहते हैं जीवन? यह रोज-रोज [155
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy